राजनाथसिंह चार साल के कार्यकाल में जो नहीं कर सके, उसे अंजाम देने का जिम्मा वे नितिन गडकरी को सौंपकर निश्चिंत हो गए हैं। संघ के एजेंडे पर चलने की बाध्यता को पूरा करने में नाकाम राजनाथ ने रिले रेस के धावक की तरह एजेंडे का बैटन गडकरी को थमा दिया है।
राजग की केंद्र में सरकार नहीं बनवा पाने का दुःख तो उन्होंने कार्यसमिति की बैठक में भी प्रकट किया था और राष्ट्रीय अधिवेशन में अध्यक्षीय पद से विदाई के उद्बोधन में भी वे इसका उल्लेख करना नहीं भूले। लेकिन यह क्यों नहीं हो सका इसकी टीस उन्होंने सीधे बताने की बजाय शीतल पेय पेप्सी और कोक की मार्केटिंग रणनीति की मिसाल देते हुए कही।
इशारों ही इशारों में सिंह ने काफी कुछ कह डाला। उनका कहना था कि पेप्सी की बिक्री बढ़ने पर कोक ने अपने उत्पाद के अवयवों को ही बदल डाला। लेकिन हालत यह हुई कि कोक की बची-खुची बिक्री भी कम हो गई, बाद में जब कोक ने सर्वे कराया तो पता चला कि बिक्री टेस्ट बदलने से घटी है। बचे-खुचे ग्राहक भी उससे छिटक गए।
सिंह का कहना था कि किसी उत्पाद की तरह हर संस्था की भी एक पहचान होती है। भाजपा की पहचान उसकी विचारधारा है। इसलिए इसे नहीं भूलना चाहिए। यानी सिंह ने भाजपा की हार का दुःख जताते हुए यह भी बता दिया कि इसके लिए सीधे तौर पर वे नहीं, बल्कि पार्टी के वे नेता जिम्मेदार हैं जिन्होंने भाजपा की स्वीकार्यता की खातिर भाजपा को मूल वैचारिक अधिष्ठान से हटा दिया।
इससे नया जनाधार जुटाना तो दूर भाजपा पुराना जनाधार भी गँवा बैठी। संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाने की चुनौती अब गडकरी के कंधे पर है और उसको रोकने वाली ताकतों से निपटने का जिम्मा भी गडकरी के माथे है। (नईदुनिया)