एक बाल कलाकार के रूप में कई फिल्मों में काम करने वाले तेजा सज्जा अपनी नई फिल्म 'मिराई' के साथ लोगों के सामने आए हैं। इस फिल्म में भरपूर वीएफएक्स तो दिखेगा ही साथ ही कहानी में भी कुछ अलग परोसने की कोशिश है। यह एक ऐसे योद्धा की कहानी है जो ग्रंथों को संभालता है और अगर इन ग्रंथों को ना संभाला जाए तो इसे पढ़कर कोई भी व्यक्ति देवताओं के स्वरूप में बदल जाएगा।
अपनी इस फिल्म के प्रमोशन के दौरान तेज सज्जा ने मुंबई में मीडिया से बातचीत की। तेज का कहना है कि मैं जब फिल्म में काम करता हूं। मुझे बहुत अच्छा लगता है, लेकिन मैंने इस फिल्म की डबिंग नहीं की है। ऐसा नहीं कि मुझे हिंदी नहीं आती है। लेकिन हर भाषा की अपनी खूबसूरती होते हैं। उसे एक तरीके को मानते हुए और उसी पर चलते हुए भाषा बोली जाती है। मुझे लगता है कि मैं अभी इतना परिपक्व नहीं हूं।
लेकिन साथ ही में मैं यह भी कहना चाहूंगा कि मुझे बहुत खुशी है कि जो लोग अलग-अलग भाषाओं में मेरी फिल्म देखने के लिए सिनेमाघरों में आएंगे सभी को यह अच्छी लगेगी। मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है और ना ही मैं ऐसा सोचता हूं कि यह फिल्म तेलुगु में है या किसी और भाषा में है। मेरे लिए यह एक फिल्म है जिसमें मैंने काम किया है। अब इन दोनों के अंतर में यानी कि तेलुगु भाषा की आप कोई और भाषा में जो अंतर हुआ करता था, वह रेखाएं अब धूमिल होने लगी है। मिटने लगी है।
करण सर ने ही इस फिल्म को एक नया स्तर दे दिया है वहीं प्रोडक्शन हाउस के जरिए हम भी इसी कोशिश में है कि चाहे वह फिल्म का प्रमोशन हो या फिर मेकिंग हो या फिर इसकी मार्केटिंग हो कहीं कोई कमी ना रह जाए। हम अलग भाषा होने के बावजूद भी भाषाई सुंदरता को बहुत संजीदगी से लेते हैं।"
इस फिल्म को बनाने के लिए आप ने किन बातों का ध्यान रखा?
इस फिल्म को बनाते समय हमें बहुत सारा चुनौती भरा समय देखना पड़ा। सबसे बड़ी चुनौती तो हमारी यह थी कि बजट में कैसे फिल्म को बनाया जाए। और कैसे कम से कम वीएफएक्स का प्रयोग हो या ना हो? मैंने तो कहीं कोई बॉडी डबल या वीएफएक्स का प्रयोग नहीं किया। हम हर जगह पर जाकर खुद शूट कर रहे थे। एक्शन सीक्वेंसेस मैं खुद कर रहा था इसमें कई सारी जगह पर मुझे ऐसा लगा कि शायद नहीं कर पाएंगे, लेकिन इतनी सारी मेहनत हमने की है और इतना ज्यादा लगन के साथ काम किया है। यह एक बहुत ही महत्वकांक्षी फिल्म है और इसके लिए हम जो कर सकते थे, वह सारे काम हमने किए हैं।
फिल्म की कहानी के बारे में बताइए?
हम सभी जानते हैं कि सम्राट अशोक काल के ग्रंथ भारत के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं। इन बहुमूल्य ग्रंथों को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रखा गया है और इनके अपने योद्धा हैं जो इन ग्रंथों की रक्षा करते हैं ताकि यह कभी किसी गलत व्यक्ति के हाथ में ना पड़ जाए? लेकिन फिर भी यह सब होने के बावजूद भी कोई दुश्मनी ताकत इन पर हमला करती है तो यह काम मेरा यानि की हीरो का है जो इन योद्धाओं को और बहुमूल्य किताबों को दुश्मन से बचाए रखें।
अब इन बहुमूल्य किताबों में क्या ज्ञान छुपा है और मैं कैसे इन योद्धाओं की दुनिया से संपर्क में रहता हूं और कैसे जुड़ा हुआ हूं। यह सब फिल्में आपको देखना होगा। कभी ऐसा हुआ कि यह बहुमूल्य किताबे यहां ग्रंथ नष्ट हो गए और दुनिया से मानव प्राणी भी नष्ट हो गया। तब उन्हें इन किताबों को पढ़कर समझना होगा कि कैसे इन घटना को रोका जा सके। यह बहुत ही रोचक कहानी है।
आपकी पिछली फिल्म हनुमान को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला कैसा लगता है?
बहुत अच्छा लगता है। आपको बहुत शांति महसूस होती है। गर्व महसूस होता है। साथ ही साथ ही लगता है कि आपके काम को किसने देखा और परखा और साथ ही साथ उसकी तारीफ भी की है। मैं ऐसी फिल्मों में यकीन रखता हूं जिसमें हम इतिहास की बात करते हैं हमारे देवी देवताओं की बात करते हैं। मुझे बहुत मजा आता है। फिर ऐसा लगता है कि देखो हम नई पीढ़ी को कितनी सुंदर बात सिखाने की कोशिश कर रहे हैं?
लेकिन साथ ही साथ यह भी कहना चाहता हूं कि नेशनल अवार्ड मिल जाने से हमारा काम नहीं रुक रुकेगा। हम उतनी ही मेहनत करेंगे। हम उतनी ही शिद्दत के साथ अपने रोल में लगे रहेंगे। मेहनत और हिम्मत कि कहीं कमी नहीं रहेगी।
राष्ट्रीय पुरस्कार मिलजाने के बाद आपकी फीस बढ़ गई है?
सभी लोग कहते हैं कि मैं अपनी फीस बढ़ा देता हूं, लेकिन ऐसा है नहीं, मुझे तो उल्टा ही लगता है कि मैं जब भी कोई ऐसी फिल्म बनाने जाता हूं, जिसमें बहुत मेहनत हो। बहुत सारी तकनीकी काम करने की जरूरत पड़े तो मैं उसको ज्यादा प्राथमिकता दे देता हूं और अपना जो मेहनताना है, उसको कहीं काट छांट करवाने पर तुल जाता हूं। सच कहूं तो हनुमान के बाद इस फिल्म के लिए मैंने एक पैसे की भी फीस में बढ़ोतरी नहीं की है।
आप अपने बारे में कुछ बताइए।
मैं कुछ ढाई साल का था तब से फिल्म इंडस्ट्री में काम कर रहा हूं। शायद 1998 से ही मेरे सफर की शुरुआत हो गई थी। वह भी बहुत अनोखे तरीके से हुई थी। मेरा तो कहीं कोई फिल्मी कनेक्शन भी नहीं है पर जब छोटा सा था तब मैं अपने भाई के साथ खिलौने की दुकान में था। वहीं पर मुझे निर्देशक साहब ने देखा और उन्होंने मुझे रोल ऑफर कर दिया। पहले तो मां-बाप ने मना कर दिया था। फिर बाद में निर्माता अश्वनी जी ने बहुत ज्यादा उन्हें समझाया। अंत में वह मान गए और यह फिल्म चुडालिनी वुंडी नाम से थी। इसमें चिरंजीवी साहब के साथ मैंने काम किया और भगवान की कृपा है कि तब से लेकर आज तक मुझे कभी पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी।