'ओएमजी 2' को 'ए सर्टिफिकेट' मिलने पर यामी गौतम बोलीं- बच्चों को हर बात खुलकर बताने की जरूरत...

रूना आशीष

शुक्रवार, 18 अगस्त 2023 (15:34 IST)
Yami Gautam interview: 'ओह माय गॉड 2' की स्क्रिप्ट पढ़ते टाइम मुझे बहुत अलग-अलग तरीके की चीजों को समझने का मौका मिला। बचपन से लेकर आप बड़े होते हैं एक विचारधारा को अपने सामने रखते हैं उसी को मानते हुए चलते हैं। लेकिन फिर कई बार ऐसे वाकये आपकी जिंदगी में आते हैं, जो सोच को बदल कर रख देते हैं। मिसाल के तौर पर जब मैं यह सब पढ़ रही थी तब मुझे लगा कि हमारा जो सनातन धर्म है, उसमें क्या-क्या नहीं है। इतना पुराना धर्म है। उसमें अलग-अलग तरीके की शास्त्र है। ज्ञान विज्ञान की बातें हैं।
 
फिर कहां यह हो गया कि सेक्स एजुकेशन जैसी चीज छूट गई। यह दिमाग में मेरे भी आया था। लेकिन आपके इन सारे सवालों का जवाब फिल्म पूरी तरीके से दे देती है। यह कहना है यामी गौतम का जो फिल्म 'ओएमजी 2' में एक वकील की भूमिका निभा रही है। यह फिल्म एक कोर्ट रूम ड्रामा है जिसमें कि यामी गौतम बचाव पक्ष की वकील बनी हैं। 
 
अपनी बातों को आगे बढ़ाते हुए यामी ने कहा कि मेरा किरदार अगर देखा जाए तो ग्रे शेड्स वाला कहा जा सकता है। पूरी तरीके से नहीं लेकिन एक हल्का सा उसमें रंग दिखाई देता है। मैं अपनी बातों को बहुत सीधे तरीके से रखती हूं और इन सारी चीजों के बीच में थोड़ा सा गुस्ताखी करने की हिम्मत भी कर देती हूं और बतौर कलाकार मुझे यह सब करने में बड़ा मजा आया।
 
सेंसर बोर्ड की तरफ से ए सर्टिफिकेट मिलने से क्या आपको लगता है कि विषय को न्याय नहीं हो पाया है। 
मुझे आप ही लोगों में से कुछ लोगों ने बताया कि सेंसर बोर्ड में और भी कई कैटेगरी को शामिल किया जाएगा। मिसाल के तौर पर अगर इस फिल्म की बात कहूं तो मिडिल ईस्ट में हमारी फिल्म को 12 और 12 से बड़े उम्र के बच्चों के लिए दर्शनीय है बताया गया है। इस बात का सर्टिफिकेट मिला है। मुझे ऐसा लगता है कि 12 से 17 साल की उम्र वह होती है जहां पर सभी बच्चों को हर बात के बारे में खुलकर बताने की जरूरत होती है। 
 
मुझे याद है जब मैं स्कूल में हुआ करती थी और इस विषय पर सिखाया जाता था तो हमारी क्लास की टीचर ने तो उसे बस दौड़ा दौड़ा के सिखा दिया, लेकिन वही दूसरे सेक्शन की टीचर ने इतने खुलकर इस पर बात की और वह सारी बातें बच्चों को समझाईं जो शायद किताबों में भी नहीं लिखी थी और हम सोचने में आ गए थे कि अच्छा ऐसा भी होता है। अब होता क्या है इंटरनेट के इस दुनिया में जहां पर इतनी सारी जानकारियां मौजूद होती है। वहां हर बात को लेकर हर एक का अपना मत होता है। 
 
आप एक छोटा सा पिक्चर पोस्ट करते हैं और तरह तरह के लोग उस पर अपने कमेंट देते हैं। अभी हाल ही में मुझे पंकज जी ने बताया कि उन्होंने कुछ पोस्ट किया और उस पर किसने कमेंट कर दिया कि आपको पैदल नहीं चलना चाहिए। अब वही जरा सोच कर देखिए यह वेबसाइट जो हर व्यक्ति के साथ जीवन भर तक चलने वाला उसके बारे में अगर कोई बच्चा जिज्ञासा रखता है। कुछ पूछना चाहता है तो पूछेगा कैसे? हम यहां पर यह नहीं कह रहे हैं कि यह सही है या गलत है। यहां हम अपनी सोच रख रहे हैं यहां हम अपना मत रख रहे हैं और बता रहे हैं कि इस विषय को नए तरीके से देखने की जरूरत है। और सेक्स एजुकेशन जैसी विषय को इतने संजीदा बात को अगर हम पाठ्यक्रम में पढ़ाएं और विधिवत पढ़ाएं तो शायद बात कुछ अलग ही निकल कर आए। 
 
आप कितना भगवान को मानती हैं और क्या आप पूजा पाठ करती हैं।
मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से नाता रखती हूं और जैसा कि सब लोगों के घर में पूजा होती है, ध्यान रखा जाता है, उतना ध्यान नहीं रखती हूं। मिसाल के तौर पर कोई नया घर देखने जा रही हूं तब देखती हूं कि सबसे पहले पूजा घर कहां रखा जाएगा। कौन सी दिशा होंगी। या फिर हमारी नानी के घर पर ही अगर दिन का कोई खाना बन रहा है तो उसमें फिर भले ही आप दाल चावल बनाया हो या कोई मीठा बनाए तो फिर वह सबसे पहले देवी मां को चढ़ता था। अगर कोई फिल्म रिलीज हो गई है तो प्रसाद बनाया जाता है, मीठा भगवान को चढ़ाते हैं या फिर कोई अच्छा काम हो गया है तो भगवान के लिए प्रसाद बनाया जाता है।
 
मैं हिमाचल से हूं और मेरे दोनों ही परिवार यानी कि मेरे शादी के पहले और शादी के बाद के परिवार पुजारी खानदान से ताल्लुक रखते हैं। हमारे यहां ज्वालामुखी देवी हो या कांगड़ा देवी हो या ब्रजेश्वरी देवी हो या नैना देवी हो इन सभी के मंदिर में हम जाया करते थे और मंदिर में जाने के बाद बहुत सारी यादें मुझे ताजा हो जाती हैं। वैसे भी कहते हैं ना कि जब आप किसी भी मंदिर में जाते हो तो वहां थोड़ी देर के लिए बैठ जाना चाहिए ताकि आप वहां के आसपास की वाइब को महसूस कर सके और समझ सके। बिना कुछ सोचे आप भगवान से अपना एक नया रिश्ता स्थापित कर लें। 
 
भगवान से वह रिश्ता चाहे वो डर भी हो जिसमें प्यार भी हो जिसमें दोस्ती भी हो जिसमें दिल से कुछ मांगने की भाव हो या ना हो लेकिन भक्ति जरूर हो। और मैं यह जानती हूं कि हमारे यहां जहां भी देवियों के अलग-अलग अंग गिरे हैं, वहां पर मंदिर बनाए गए हैं। हमारे देश में 51 शक्ति पीठ है। तो जब भी मौका पड़ता है, मैं जाती हूं और अगर में नहीं भी जा सकूं तो घर में कभी पूजा करने के लिए भी बैठ सकूं तो मैं आंखें बंद करके अपने देवी को याद करती हूं और मुझे लगता है कि उनका मेरा एक अलग सा कनेक्शन है।
 
सेंसर बोर्ड और फिल्मकारों का रिश्ता बड़ा अनोखा रहा है। साथ में चलना है लेकिन कई बार मनमुटाव हो जाता है। इस बात पर आपकी क्या राय है। 
मुझे हमेशा लगता है कि सेंसर बोर्ड के ऊपर एक बड़ी जिम्मेदारी है कि उन्हें फिल्म में सब लोगों के ध्यान में रखकर पास करनी होती है ताकि किसी के मनभाव को दुख ना पहुंचे। उसके पहले मैं खुद भी अपने अंदर एक सोच रखती हूं। जैसे हाल ही में किसी और फिल्म के सीन में कुछ फनी था जो मुझे लगा कि वह उस समय फनी शायद ना भी लगे। उसका दूसरा अर्थ भी निकल जाए। तब मैंने कहा कि क्यों ना इस बात को अलग तरीके से बताने की कोशिश की जाए क्योंकि अगर यह फनी है तो फिर कुछ 10 लोग ही क्यों हंसे। क्यों न इस तरीके से लोगों के सामने लाया जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग उस मस्ती का हिस्सा बन सकें। 
 
इसके साथ ही मैं अब यह भी कहना चाहूंगी कि जिस बात को लिखने में सालों साल लगे हो। वह अगर फिल्म के तौर पर लोगों के सामने आ रही है तो उसमें बहुत सारे दिमाग लड़ाया जा चुका है। अब हर किसी व्यक्ति को शांत नहीं कर सकते हैं। मैं समझती हूं कि सेंसर बोर्ड के पर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। कल के समय में अगर कुछ उल्टी सीधी बात हो जाती है तो जिम्मेदारी उनकी बन जाती है। यहां पर इतना करना चाहते हो कि काश ऐसा कोई बीच का रास्ता निकाला जा सके ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग मिलकर काम कर सके और फिल्म को लोगों के सामने पहुंचाया जा सके।

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