डैनी बॉलीवुड का मशहूर नाम है। अपनी शर्तों पर जीने और काम करने वाले बहुत कम लोग होते हैं और डैनी उनमें से एक हैं। वे रविवार के दिन कभी शूटिंग नहीं करते हैं। मार्च-अप्रैल-मई में अपने परिवार के साथ छुट्टियां मनाते हैं। इसलिए वे बहुत कम फिल्मों में नजर आते हैं। डैनी अपने सेहत के प्रति सबसे अधिक सावधान रहते हैं। उनका तर्क है कि यदि आप बीमार हैं, तो फिर करोड़पति-अरबपति होने का कोई अर्थ नहीं है। 25 फरवरी 1948 को सिक्किम में जन्में डैनी का पूरा वास्तविक नाम शेरिंग फिंसो डेंग्जोंग्पा है। सिक्किम की राजकुमारी गावा से उनका विवाह हुआ है और उनका एक बेटा रिनझिंग और बेटी पेमा है। ये तो हुईं वो बातें जो डैनी के बारे में ज्यादातर लोग जानते हैं। अब आपको बताने जा रहे हैं डैनी के 3 ऐसे किस्से, जो बहुत कम को पता है।
किस्सा नंबर 1 : पुलिस की बजाय पति
डैनी ने अपना फिल्म करियर नेपाली फिल्म सैइनो से शुरू किया था। बचपन से उनकी इच्छा भारतीय सेना में भर्ती होने की थी। पुणे के आर्म्ड फोर्सेस मेडिकल कॉलेज के लिए उनका चयन भी हो गया था। इसी दौरान फिल्म एंड टीवी इंस्टीट्यूट के एक्टिंग कोर्स में प्रवेश हो जाने से वे वहां चले गए। डैनी को बड़ी सफलता और पहचान मिली मिली बी.आर. चोपड़ा की फिल्म धुंध (1973) से। इस फिल्म के मिलने का किस्सा दिलचस्प है। जब डैनी पुणे इंस्टीट्यूट में पढ़ाई कर रहे थे तो चोपड़ा साहब परीक्षक बनकर आए थे। डैनी की एक्टिंग देख वे प्रभावित हुए और वादा किया कि भविष्य में काम देंगे।
कुछ दिनों बाद डैनी को पता चला कि चोपड़ा साहब फिल्म 'धुंध' की कास्टिंग कर रहे हैं। वे फौरन जाकर उनसे मिले। चोपड़ा साहब को याद आ गया कि वे डैनी से पुणे में मिल चुके हैं। उन्होंने अपनी फिल्म में डैनी को पुलिस इंसपेक्टर का रोल ऑफर किया। डैनी नए जरूर थे, लेकिन अपनी बात कहने का दम रखते थे। उन्होंने बीआर चोपड़ा को कह दिया कि वे फिल्म की नायिका के पति का रोल करना पसंद करेंगे। चोपड़ा साहब ने कहा कि पति के रोल के लिए उनकी उम्र छोटी है। डैनी ने दूसरे दिन मेकअप मैन पंढरी दादा से उम्रदराज पति का गेटअप बनवाया और सीधे चोपड़ा साहब के सामने जाकर हाजिरी दी। बीआर चोपड़ा को डैनी का यह अंदाज पसंद आया और उनका फौरन सिलेक्शन हो गया।
इस तरह धुंध फिल्म में एक कुंठित, विकलांग और लाचार पति के रोल को दर्शकों ने बेहद पसंद किया। खासतौर पर उनके द्वारा कैमरे की ओर फेंकी गई प्लास्टिक की प्लेट वाले सीन पर सिनेमाघरों में देर तक तालियां बजाई गईं। यह प्लेट फेंकने वाला सीन डैनी के दिमाग की उपज थी। इस फिल्म ने उन्हें स्टार विलेन का दर्जा दिलाया।
किस्सा नंबर 2 : फकीरा मचाए शोर
कामयाब होने के बाद डैनी को कई फिल्मों के ऑफर मिले, लेकिन उन्होंने चुन कर काम करना ही पसंद किया, जैसा दिलीप कुमार किया करते थे या आमिर खान करते हैं। कम काम और बेहतर परिणाम यह डैनी की सफलता का मूलमंत्र रहा है। फिल्म चोर मचाए शोर (1974) डैनी की मशहूर और कामयाब फिल्म है। इसमें लोकल दादा का रोल निभाकर डैनी ने दर्शकों को खुश कर दिया था। चोर मचाए शोर में उनके साथी नायक शशि कपूर थे। इस फिल्म से शशि कपूर से उनकी दोस्ती हो गई, जो अगली फिल्म फकीरा (1976) में परवान चढ़ी।
फकीरा फिल्म के कालखण्ड में 'खोया-पाया' फार्मूले पर धड़ाधड़ फिल्में बन रही थीं। निर्माता एन.एन. सिप्पी ने डैनी को शशि कपूर के भाई का रोल ऑफर किया। यह बात सुन डैनी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि चॉकलेटी चेहरे के धनी शशि कपूर के भाई के रूप में दर्शक उन्हें कैसे स्वीकार करेंगे? वे चाहते तो चुपचाप बैठ कर फिल्म साइन कर सकते थे, लेकिन सवाल एनएन सिप्पी के सामने फेंक दिया कि शशि और मैं भाई-भाई के रोल में? किस एंगल से हम भाई-भाई दिखते हैं? हमको ही यकीन नहीं तो दर्शकों को कैसे यकीन होगा? लेकिन सिप्पी अपनी जिद पर अड़ गए। चूंकि डैनी को रोल और कहानी पसंद थी इसलिए मजबूर होकर वे शशि के भाई बने।
फिल्म के आखिरी सीन में खोया भाई शशि उन्हें मिलता है। पहले वे उसकी पिटाई कर समुद्र में फेंक देते हैं। फिर यह सोचकर कि अरे वह तो उनका सगा भाई है, वे समुद्र में डूबकी लगाकर उसे निकालते हैं। भावुक होकर दोनों भाई भरत-मिलाप करते हैं। इस भावना-प्रधान सीन को देख दर्शक भूल गए कि डैनी जैसे चेहरे वाला शशि का भाई कैसे हो सकता है। इस फिल्म से डैनी ने यह सबक सीखा कि रोल कैसा भी हो, अगर पसंद है तो मना नहीं करना चाहिए।
किस्सा नंबर 3 अमिताभ के साथ अग्निपथ
फिल्मी दुनिया में अठारह साल गुजारने के बाद भी डैनी को सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म करने का अवसर नहीं मिला। दर्शकों की इच्छा थी कि दोनों दिग्गज अभिनेताओं को एक साथ देखें। आखिरकार निर्देशक मुकुल एस. आनंद इन दोनों को पहली बार फिल्म 'अग्निपथ' (1991) में साथ लाएं। डैनी चाहते थे कि पहली बार में वे अपने को अमिताभ के सामने प्रूव करें वरना हमेशा बौना-एक्टर होकर रह जाएँगे।
शूटिंग के पहले दिन डैनी अपने कमरे में चहलकदमी कर रहे थे और पटकथा मुहैया नहीं कराने पर एक सहायक निर्देशक पर नाराज हो रहे थे। अमिताभ के सामने वे पूरी तैयारी के साथ जाना चाहते थे। पास के कमरे में ठहरे अमिताभ सब सुन रहे थे। सहायक के जाने के बाद वे खुद डैनी के कमरे में आए। पटकथा की कॉपी दी और कहा- चलो, एक बार रिहर्सल कर लेते हैं।' अपने सामने इतने महान कलाकार को इतना विनम्र पाकर डैनी बर्फ की तरह पिघल गए। उनके मन में अमिताभ के प्रति सम्मान कई गुना बढ़ गया। इसके बाद हम और खुदा गवाह जैसी फिल्मों में वे फिर साथ दिखाई दिए। इन तीनों फिल्मों में अमिताभ के सामने डैनी ने पूरे दमखम के साथ अदाकारी दिखाई। दोनों एक्टर्स की टक्कर ने दर्शकों को बहुत रोमांचित किया।