शोले भारत की सफलतम फिल्मों में से एक है। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर पैसों की बरसात कर दी थी। गली-गली फिल्म के संवाद गूंजे। पक्के दोस्तों को जय-वीरू कहा जाने लगा तो बक-बक करने वाली लड़कियों को बसंती की उपमा दी जाने लगी। मांओं ने अपने छोटे बच्चों को गब्बर का डर दिखाकर सुलाया। भारतीय जनमानस पर इस फिल्म का गहरा असर हुआ। 38 वर्ष बाद इस फिल्म को थ्री डी में परिवर्तित कर फिर रिलीज किया गया था। 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई 'शोले' को 46 वर्ष हो रहे हैं। इस फिल्म से जुड़े कई किस्से मशहूर हुए। पेश है शोले से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां :
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1) शोले जब रिलीज हुई तो शुक्रवार और शनिवार बॉक्स ऑफिस पर इस फिल्म को अपेनक्षानुरूप सफलता नहीं मिली। भारी बजट की भव्य फिल्म का यह हाल देख निर्देशक रमेश सिप्पी चिंतित हुए। रविवार को उन्होंने अपने घर पर मीटिंग रखी जिसमें लेखक सलीम-जावेद को भी बुलाया गया। फिल्म के कमजोर प्रदर्शन का अर्थ ये निकाला गया कि अंत में अमिताभ के किरदार की मौत को दर्शक पसंद नहीं कर रहे हैं। रमेश सिप्पी ने प्रस्ताव रखा कि फिल्म का अंत बदला जाए। लोकेशन पर पहुंच कर वे नया अंत शूट कर लेंगे और बाद में फिल्म में जोड़ देंगे। सलीम- जावेद को नया अंत लिखने की जिम्मेदारी दी गई। सलीम-जावेद ने रमेश सिप्पी को सलाह दी कि जल्दबाजी करने के बजाय एक-दो दिन रूकना चाहिए। यदि फिल्म का फिर भी खराब रहता है तो वे नया अंत शूट कर लेंगे। उनकी बात मान ली गई। एक-दो दिन बाद फिल्म का प्रदर्शन बॉक्स ऑफिस पर सुधर गया और फिर बेहतर होता चला गया।
2) फिल्म सीता और गीता (1972) की शानदार सफलता की पार्टी जीपी सिप्पी के घर की छत पर दी गई थी। उसमें पिता जीपी और बेटे रमेश सिप्पी ने तय किया था कि इससे भी चार कदम आगे चलकर एक बड़े बजट की भव्य एक्शन फिल्म बनाई जाए। यहीं से शोले का बीज जमीन में पड़ा।
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3) शोले फिल्म की कहानी मार्च 1973 से लिखना आरंभ हुई थी। रोजाना सुबह दस से ग्यारह बजे के बीच सलीम-जावेद तथा रमेश सिप्पी अपने को सिप्पी फिल्म लेखन कक्ष में बंद कर लेते थे। घंटों चर्चा करते थे। इस दौरान चाय-सिगरेट और बीयर की ढेर सारी बोतलें खाली हो जाती थी।
4) सलीम-जावेद जब शोले की पटकथा लिख रहे थे तब राज खोसला की फिल्म आई थी- मेरा गांव मेरा देश (1971) और नरेन्द्र बेदी की फिल्म खोटे सिक्के भी डकैत समस्या पर आधारित थी। इन फिल्मों ने सलीम-जावेद को काफी आइडियाज दिए।
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5) लोकेशन हंटर येडेकर, रमेश सिप्पी की टीम में कोलम्बस की तरह थे। रमेश नहीं चाहते थे कि इस बार चम्बल की घाटी या राजस्थान जाकर दर्शकों की परिचित डकैत लोकेशन पर शूटिंग की जाए। मंगलौर-बंगलौर और कोचीन में सफर करते आखिर में येडेकर को बंगलौर के पास की जगह जो पहाडि़यों से घिरी थी, पसंद आई। इस लोकेशन पर इंग्लिश फिल्म माया की शूटिंग पहले हुई थी।
6) रमेश सिप्पी को जैसे ही लोकेशन की खबर मिली, वह सिनेमाटोग्राफर द्वारका दिवेचा के साथ हवाई जहाज से आ गए। बड़ी-बड़ी बिल्डिंग साइज की चट्टानें। बीहड़। सूखे पेड़। उबड़-खाबड़ रास्ते। और क्या चाहिए था द्वारका दिवेचा को। मनपसंद लोकेशन सामने मौजूद थी। नाम था- रामनगरम्।
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7) शोले फिल्म में गब्बर की गुफा और ठाकुर का घर मीलों दूर दिखाया गया है। लेकिन सचमुच में दोनों पास-पास थे। रामनगरम् को फिल्म के सेट के मुताबिक मुंबई के तीस और स्थानीय सत्तर लोगों ने रात-दिन मेहनत कर पूरा गांव बसा दिया।
8) रामनगरम् में रोजाना यूनिट के एक हजार लोगों के खाने के लिए बाकायदा मॉडर्न किचन बनाया गया। राशन-फल-सब्जी के लिए गोडाउन तैयार किया। घोड़ों के लिए तबेले का इंतजाम करना पड़ा। बंगलौर हाई-वे से रामनगरम् तक एक सड़क भी बनाई गई। टेलीफोन लाइन, बिजली के खम्बे खड़े कराए गए।
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9) शोले फिल्म ने पांच साल लगातार बम्बई के सिनेमाघर में चल कर एक कीर्त्तिमान कायम किया था। इसके पहले बॉम्बे टॉकीज की फिल्म 'किस्मत' (1943) कलकत्ता में लगातार साढ़े तीन साल तक चली थी। शोले का रिकॉर्ड दिलवाले दुल्हनियां ने तोड़ा। यह फिल्म अभी भी मुंबई के मराठा मंदिर में चल रही है।
10) शोले फिल्म ने बाजार में कई तरह की चीजों को बेचने में कामयाबी हासिल की थी। ग्लुकोज बिस्किट्स से लेकर ग्राइप वॉटर तक।
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11) सन् 2000 में पॉप स्टार बाली ब्रह्मभट्ट ने रि-मिक्स अलबम बनाया था- शोले 2000। उसे शीर्षक दिया था- 'द हथौड़ा मिक्स'। यह शोले के ठाकुर का संवाद है, जो वीरू तथा जय को कहा गया था- लोहा गरम है, मार दो हथौड़ा।
12) फिल्मकार शेखर कपूर ने कहा है कि हिन्दी सिनेमा को इतिहास को दो भागों में विभाजित कीजिए- शोले के पहले बीसी शोले के बाद एडी
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13) 1947 में जीपी सिप्पी कराची से बम्बई एक शरणार्थी की तरह आए थे। उनके पास शरीर पर पहने शर्ट के अलावा कुछ नहीं था।
14) फिल्म में अमजद खान को गब्बर सिंह डाकू का जो नाम दिया गया, वह असली डाकू का नाम है। सलीम के पिता उन्हें डकैत गब्बर के बारे में बताया करते थे। वह पुलिस पर हमला करता और उनके कान-नाक काट कर छोड़ दिया करता था।
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15) सूरमा भोपाली का नाम जावेद की उपज है। यह किरदार उन्हें भोपाल निवास के दौरान सूझा था।
16) वीर और जय नाम के दो सहपाठी सलीम के साथ कॉलेज में पढ़ते थे। वहीं से इनके नाम जस का तस ले लिए गए।
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17) हेमा मालिनी फिल्म शोले में बसंती तांगेवाली का रोल करने को तैयार नहीं थी। इसके पीछे फिल्म अंदाज तथा सीता और गीता की जबरदस्त सफलता थी। रमेश सिप्पी ने उन्हें समझाया और वे मान गईं।
18) जय के रोल के लिए शत्रुघ्न सिन्हा का नाम फाइनल था। मगर सलीम-जावेद तथा धर्मेन्द्र ने अमिताभ का नाम सुझाया। जबकि अमिताभ की कई फिल्में फ्लॉप हो रही थी, लेकिन सलीम-जावेद को जंजीर फिल्म की पटकथा पर भरोसा था। उनका मानना था कि जंजीर सफल रहेगी और अमिताभ स्टार बन जाएंगे। हुआ भी ऐसा ही। अमिताभ को जंजीर रिलीज होने के पहले ही साइन किया जा चुका था।
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19) ठाकुर के रोल के लिए प्राण के नाम पर विचार किया गया जो सिप्पी फिल्म्स की कई फिल्में पहले कर चुके थे। लेकिन रमेश सिप्पी, संजीव कुमार की प्रतिभा के कायल थे। सीता और गीता में वे संजीव के साथ काम कर चुके थे। अत: परिणाम संजीव के पक्ष में रहा।
20) गब्बर सिंह और सांभा के संवाद खड़ी बोली में होकर अवधि बोली का टच लिए थे। सलीम ने इस संवादों को अमिताभ और संजीव कुमार के बीच सुनाया, तो अमिताभ गब्बर का रोल करने के इच्छुक लगे। ऐसा ही कुछ संजीव कुमार के मन में भी था।
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21) फिल्म की कहानी जब धर्मेन्द्र ने सुनी तो उन्हें ठाकुर का रोल दमदार लगा क्योंकि कहानी ठाकुर और गब्बर के लड़ाई के बीच की है। उन्हें वीरू के रोल में ज्यादा दम नजर नहीं आया। रमेश सिप्पी को तरकीब सूझी। उन्होंने धर्मेन्द्र से कहा कि ठाकुर को तो फिल्म में रोमांस करने का मौका ही नहीं मिलेगा जबकि वीरू के हीरोइन हेमा मालिनी के साथ कई रोमांटिक सीन हैं। धर्मेन्द्र का दिल उस समय हेमा पर आया हुआ था। संजीव कुमार भी हेमा को पसंद करते थे। सिप्पी ने कहा कि वे वीरू का रोल संजीव कुमार को दे देंगे। तरकीब काम कर गई और धरम पाजी वीरू का किरदार निभाने के लिए राजी हो गए।
22) हेमा मालिनी के साथ रोमांटिक सीन करते समय धर्मेन्द्र जानबूझ कर गलतियां करते थे ताकि रीटेक हो और उन्हें हेमा के साथ ज्यादा वक्त गुजारने का अवसर मिले। जब यह बात समझ में आ गई कि गरम धरम जानबूझ कर ये हरकतें कर रहे हैं तो धरम ने दूसरी चाल चली। वे यूनिट मेंबर्स को गलतियां करने के बदले में पैसे देते थे।
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23) कहा जाता है कि शोले की शूटिंग के कुछ दिनों पहले संजीव कुमार ने हेमा मालिनी के आगे शादी का प्रस्ताव रखा था, जिसे हेमा ने ठुकरा दिया था। इसी वजह से ‘शोले’ में दोनों के बीच दृश्य नहीं के बराबर हैं।
24) धर्मेन्द्र जानते थे कि संजीव कुमार भी हेमा पर लट्टू हैं इसलिए वे हेमा के इर्दगिर्द ही रहते थे ताकि संजीव कुमार को हेमा से बात करने का अवसर नहीं मिल सके।
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25) शोले में गब्बर सिंह को मॉडर्न डकैत के रूप में दिखाया गया, जो सैनिक पोषाख पहनता है। इसके पहले दिलीप कुमार की गंगा-जमुना या सुनील दत्त की मुझे जीने दो फिल्म में डाकू धोती-कुर्त्ता में आए थे। ललाट पर लम्बा तिलक। यह सिप्पी को पसंद नहीं था।
26) मुंबई में रमेश सिप्पी, आरडी बर्मन के साथ बैठकर फिल्म के गानों की धुनों की जांच-परख करते रहे। आरडी बर्मन सत्तर के दशक में बेहद व्यस्त और लोकप्रिय थे। उनसे टाइम लेना मुश्किल था। जैसे-तैसे कर पहले गाने की धुन फाइनल हुई- कोई हसीना जब रूठ जाती है तो... ।
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27) सूरमा भोपाली से पहले कव्वाली कराने का इरादा था। जावेद अख्तर ने कहा कि भोपाल से भांड बुलाए जाएं, तो उसका मजा कुछ और होगा। लिहाजा चार भांड ग्रुप बम्बई आए। उन्होंने पंचम के म्युजिक रूम में गाया- चांद-सा कोई चेहरा ना पहलू में हो तो चांदनी का मजा नहीं आता। जाम पीकर शराबी ना गिर जाए तो मैकशी का मजा नहीं आता। इसे बाद में गाया किशोर कुमार, मन्ना डे, भूपिंदर और आनंद बक्षी ने। यह कव्वालीनुमा भांड सांग रिकॉर्ड तो किया गया, मगर फिल्माया नहीं जा सका, क्योंकि शोले की लम्बाई तीन घंटों से ज्यादा होती जा रही थी।
28) शोले का म्युजिक पोलिडार कम्पनी को पांच लाख और रॉयल्टी बेसिस पर एडवांस में बेच दिया गया था। पांच गानों के पांच लाख। उस समय के यह सबसे महंगे अधिकार बिके थे। पोलिडार को एक लाख ग्रामोफोन रिकॉर्ड बिकने के बाद मुनाफा होना था। मगर पोलिडार के मालिक शशि पटेल की बहन गीता से रमेश सिप्पी की शादी हुई थी, इसलिए इतना महंगा डील पूरा हुआ।
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29) गब्बर का रोल पहल डैनी करने वाले थे, लेकिन वह फिरोज खान की फिल्म धर्मात्मा के लिए डेट दे चुके थे। इस फिल्म की शूटिंग अफगानिस्तान में होना थी। फिरोज और रमेश सिप्पी दोनों अपने शेड्युल बदलना नहीं चाहते थे। लिहाजा डैनी के हाथ से शोले फिसल गई।
30) अमजद खान का नाम गब्बर के लिए फाइनल करने में सलीम खान का हाथ है। हालांकि जावेद अख्तर यह नाम पहले सुझा चुके थे। अमजद के पिता जयंत एक अच्छे एक्टर थे। सलीम साहब का उनके घर आना-जाना था। तब अमजद छोटे थे। एक दिन वह अमजद के पास गए और कहा कि किस्मत अच्छी होगी, तो इस बड़ी फिल्म में काम मिल जाएगा और तुम भी बड़े कलाकार बन जाओगे।
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31) रमेश सिप्पी शोले को भारत की भव्य फिल्म बनाना चाहते थे। 35 एमएम का फॉर्मेट फिल्म को महान बनाने के लिए छोटा था। लिहाजा तय किया गया कि इसे 70 एमएम और स्टीरियोफोनिक साउंड में बनाया जाए। लेकिन विदेशों से कैमरे मंगाकर शूटिंग करने से शोले का बजट बढ़ जाता। लिहाजा अधिकांश शूटिंग 35 एमएम में कर 70 एमएम में ब्लोअप किया गया।
32) शोले फिल्म को अधिकांश टेरिटरी में राजश्री पिक्चर्स ने रिलीज किया। राजश्री के मालिक ताराचंद बड़जात्या को विश्वास था कि महंगी फिल्म होने के बावजूद लागत निकाल लेगी। वे सही साबित हुए।
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33) अमिताभ-जया ने 3 जून 1972 को शादी कर ली। प्रकाश मेहरा की जंजीर रिलीज हुई। अनेक फ्लॉप फिल्में दे चुके बच्चन दम्पत्ति एकाएक सुपरस्टार हो गए। इसका लाभ शोले को मिला।
34) फिल्म की शूटिंग के दौरान जया बच्चन प्रेग्नेंट हो गई थी।
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35) गब्बर नाम का डाकू सचमुच में चम्बल घाटी में हुआ था। उसके जीवन पर जया भादुड़ी के पिता ने 'अभिशप्त चम्बल' नामक किताब लिखी थी। वह अमजद को पढ़ने को दी गई। अमजद की पत्नी शैला उसे पढ़ कर अमजद को समझाती जाती थी। सचमुच के गब्बर ने बचपन में एक धोबी को अपनी पत्नी को पुकारते सुना था- अरे ओ शांति। यही संवाद आगे चल कर अरे ओ सांभा बन गया।
36) अमजद खान नमाजी मुसलमान नहीं थे। लेकिन शोले की शूटिंग में जाते हुए उन्होंने कुरान शरीफ सिर पर रख ली। पत्नी शैला को आश्चर्य हुआ। जैसे-तैसे अमजद हवाई जहाज में बैठे। प्लेन उड़ा बम्बई के आकाश में। उड़ते ही उसका हायड्रोलिक सिस्टम फेल हो गया। मजबूरी में प्लेन बम्बई एअरपोर्ट पर उतरा। अमजद घर नहीं गए। एअरपोर्ट पर बैठे रहे। घंटों बाद प्लेन उड़ने को तैयार हुआ, तो सिर्फ पांच यात्री सवार हुए। बाकी सब वापस चले गए। अमजद ने उड़ते हुए आकाश में सोचा कि यदि प्लेन क्रेश हो गया, तो गब्बर का रोल डैनी को मिल जाएगा।
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37) वीरू का पानी की टंकी पर खड़े होकर बसंती के साथ शादी के लिए मौसी को राजी करने वाला दृश्य एक सच्ची घटना से प्रेरित है।
38) शूटिंग के दौरान अमजद खान बेहद नर्वस थे। अपने पहले शॉट में ही उन्होंने ढेर सारे रिटेक दे डाले। उनकी आवाज भी यूनिट वालों को पसंद नहीं आई। उन्हें बाहर करने पर भी विचार किया गया था।
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39) शोले की शुरुआत में एक बेहतरीन सीन है जिसमें जय, वीरू और ठाकुर गुंडों से ट्रेन में सफर करते हुए लड़ते हैं। ये सीन 7 सप्ताह की शूटिंग में पूरा हुआ। इसे मुंबई-पुणे रेलवे रूट पर पनवेल के निकट फिल्माया गया।
40) दर्शकों की अदालत में ब्लॉकबस्टर साबित हुई ‘शोले’ को केवल एक फिल्मफेअर पुरस्कार (बेस्ट एडिटिंग) मिला।
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41) फिल्म में एक कमाल का सीन है जिसमें जया बच्चन लालटेन जला रही हैं और अमिताभ माउथ आर्गन बजा रहे हैं। बमुश्किल दो मिनट वाले इस सीन को फिल्माने में 20 दिन का समय लगा था।
42) कैमरामैन द्वारका दिवेजा के काम से खुश होकर ‘शोले’ के निर्माता ने उन्हें एक फिएट कार गिफ्ट में दी थी।
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43) सांभा का रोल मैकमोहन ने निभाया था। जब उन्हें पता चला कि फिल्म में उनके संवाद नहीं के बराबर हैं तो वे दु:खी हो गए। निर्देशक रमेश सिप्पी ने उन्हें भरोसा दिलाया कि यदि फिल्म चल निकली तो वे बेहद लोकप्रिय हो जाएंगे और ऐसा ही हुआ।
44) माना जाता है कि सांभा का फिल्म में केवल एक ही संवाद है, जब गब्बर सिंह सभी से पूछता है कि उस पर सरकार ने कितना इनाम रखा है, तो सांभा जवाब देता है पूरे पचास हजार। लेकिन एक और डायलाग सांभा का है। सांभा और उसके साथी ताश खेलते हैं तब सांभा कहता है ‘चल बे जुंगा, चिड़ी की रानी है’ इस पर उनका साथी बोलता है ‘चिड़ी की रानी तो ठीक है सांभा, वो देख चिड़ी का गुलाम आ रहा है।‘
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45) पहले फिल्म में दिखाया गया था कि गब्बर को ठाकुर मार डालता है, लेकिन सेंसर बोर्ड के यह पसंद नहीं आया। बाद में इसे बदला गया।
46) कहा जाता है कि अभिनेता सचिन को फिल्म में काम करने के बदले में एक रेफ्रीजरेटर दिया गया था।
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47) 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई शोले ने भारत में 60 जगह गोल्डन जुबिली (50 सप्ताह) और 100 से ज्यादा सिनेमाघरों में सिल्वर जुबिली (25 सप्ताह) मनाई थी।
48) तीन से चार करोड़ रुपये में बनी शोले का मुंबई स्थित मिनर्वा सिनेमा में प्रीमियर हुआ था।
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49) शोले जब रिलीज हुई थी तो फिल्म समीक्षकों ने इसकी काफी आलोचना की थी, लेकिन जब यह फिल्म ब्लॉकबस्टर हो गई तो अचानक ज्यादातरों के सुर बदल गए। इसे क्लासिक और कल्ट मूवी कहा जाने लगा।
50) बीबीसी इंडिया ने 1999 में ‘शोले’ को फिल्म ऑफ द मिलेनियम घोषित किया। शोले की कहानी और किरदारों से प्रेरणा लेकर कई फिल्में बाद में बनी।