गूगल ने डूडल के जरिये केएल सहगल को किया याद

लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार जैसे महान गायक यदि कुंदनलाल सहगल को अपनी प्रेरणा मानते हों, तो यह कहने की जरूरत ही महसूस नहीं होती कि केएल सहगल कितने महान गायक थे। 11 अप्रैल को सहगल के 114 वर्ष पूरे होने पर गूगल ने डूडल बना कर इस महान गायक को याद किया है। 
 
सहगल ने मात्र 185 गीत गाए, जिसमें गज़ल, गैर फिल्मी और अन्य भाषाओं के गीत भी शामिल हैं, लेकिन इतने कम गीतों के जरिये ही उन्होंने ऐसी ख्याति प्राप्त कर ली कि आज भी उन्हें याद किया जा रहा है। 
 
उन्होंने संगीत श्रोताओं को 'जब दिल ही टूट गया', 'बंगला बने न्यारा', 'बाबुल मोरा', 'हम उन्हें अपना ना बना सके', 'दो नैना मतवाले तिहारे', 'मैं क्या जानूं क्या जादू' जैसे अजर-अमर गीत दिए। संगीत को समझने वाले जानते हैं कि सहगल के गीत किसी अनमोल मोती की तरह हैं, किसी पुरानी शराब की तरह हैं जिसका असर वक्त बीतने के साथ-साथ और गहराता जाता है। 
 
एक दशक लंबे करियर में सहगल की जादू का आवाज फिल्म इंडस्ट्री में छा गया था और तमाम गायकों पर उनका असर रहा। रफी, लता और किशोर के शुरुआती गानों को अगर सुना जाए तो यह असर साफ महसूस किया जा सकता है। बाद में इन गायकों ने अपनी शैली विकसित की। 
 
उस दौर में उन लोगों को जल्दी फिल्मों में काम मिल जाता था जो गाना जानते थे क्योंकि प्ले बैक की परंपरा नहीं थी। इसलिए सहगल ने भी कुल 36 फिल्मों में काम किया जिसमें से 28 हिंदी में थी। देवदास पर कई फिल्में बनीं, लेकिन सहगल अभिनीत देवदास को महानतम माना जाता है। 
 
11 अप्रैल 1904 को जम्मू में जन्मे सहगल को भारत का पहला सुपर सितारा भी माना जाता है। फिल्मों में आने के पहले वे सेल्समैन के बतौर काम करते थे। सहगल की गायन में रूचि को देखते हुए उनकी मां केसरबाई सहगल ने संगीतकार रायचंद बोराल से उनकी मुलाकात कराई। 
 
सहगल की गायकी से प्रभावित होकर बोराल ने उनकी गजले रिकॉर्ड की। बाद में सहगल का उन्होंने न्यू थिएटर्स नामक स्टूडियो से करार करवाया जिसके बदले में सहगल को दो सौ रुपये प्रतिमाह मिलते थे। 'मोहब्बत के आंसू' नामक फिल्म में पहली बार सहगल ने गीत गाया। इसके बाद सहगल ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। 
 
1935 में सहगल ने आशा रानी से शादी की। उनकी दो बेटियां और एक बेटा था। 1941 में फिल्म इंडस्ट्री कलकत्ता से मुंबई आ गई तो सहगल भी मुंबई जा पहुंचे। 
 
इसी दौरान सहगल को शराब की लत लग गई जो जानलेवा साबित हुई। 42 वर्ष की उम्र में ही 1947 में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा। 
 
लता ने तोड़ दिया था रेडियो
चलते-चलते एक मशहूर किस्सा। लता मंगेशकर ने पहली बार रेडियो खरीदा। रेडियो सुनने के लिए पहली बार ऑन किया तो समाचार का वक्त था और पहली खबर थी कि कुंदनलाल सहगल नहीं रहे। लता सुन कर सन्न रह गईं और रेडियो ही तोड़ दिया। 

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