चलो दिलदार चलो, चाँद के पार चलो- फिल्म पाकीजा का यह गाना मीनाकुमारी की जिंदगी का ऐसा फलसफा है, जिसके रहस्य से चादर हटाई जाना अभी बाकी है। महज 38 साल की उम्र में महजबीं उर्फ मीना कुमारी खुद-ब-खुद मौत के मुँह में चली गईं। इसके लिए मीना के इर्दगिर्द कुछ रिश्तेदार, कुछ चाहने वाले और कुछ उनकी दौलत पर नजर गढ़ाए वे लोग हैं, जिन्हें ट्रेजेडी क्वीन की अकाल मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
आर्थिक तंगी से बनीं बाल कलाकार
मीना कुमारी को एक अभिनेत्री के रूप में, एक पत्नी के रूप में, एक प्यासी प्रेमिका के रूप में और एक भटकती-गुमराह होती हर कदम पर धोखा खाती स्त्री के रूप में देखना उनकी जिंदगी का सही पैमाना होगा।
मीना कुमारी की नानी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के छोटे भाई की बेटी थी, जो जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही प्यारेलाल नामक युवक के साथ भाग गई थीं। विधवा हो जाने पर उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया। दो बेटे और एक बेटी को लेकर बम्बई आ गईं। नाचने-गाने की कला में माहिर थीं इसलिए बेटी प्रभावती के साथ पारसी थिएटर में भरती हो गईं।
प्रभावती की मुलाकात थियेटर के हारमोनियम वादक मास्टर अली बख्श से हुई। उन्होंने प्रभावती से निकाह कर उसे इकबाल बानो बना दिया। अली बख्श से इकबाल को तीन संतान हुईं। खुर्शीद, महज़बी (मीना कुमारी) और तीसरी महलका (माधुरी)।
अली बख्श रंगीन मिजाज के व्यक्ति थे। घर की नौकरानी से नजरें चार हुईं और खुले आम रोमांस चलने लगा। परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। महजबीं को मात्र चार साल की उम्र में फिल्मकार विजय भट्ट के सामने खड़ा कर दिया गया। इस तरह बीस फिल्में महजबीं (मीना) ने बाल कलाकार के रूप में न चाहते हुए भी की। महज़बीं को अपने पिता से नफरत सी हो गई और पुरुष का स्वार्थी चेहरा उसके जेहन में दर्ज हो गया।
कमाल साब के साथ दूसरी बीवी का सफर
फिल्म बैजू बावरा (1952) से मीना कुमारी के नाम से मशहूर और लोकप्रिय महजबीं ने अपने पिता की इमेज को धकियाते हुए उससे हमदर्दी जताने वाले कमाल अमरोही के व्यक्तित्व में अपना सुनहरा भविष्य देखा। वे उनके नजदीक होती चली गईं। नतीजा यह रहा कि दोनों ने निकाह कर लिया। लेकिन यहाँ उसे कमाल साब की दूसरी बीवी का दर्जा मिला। उनके निकाह के एकमात्र गवाह थे जीनत अमान के अब्बा अमान साहब।
कमाल अमरोही और मीना कुमारी की शादीशुदा जिंदगी करीब दस साल तक एक सपने की तरह चली। मगर संतान न होने से उनके संबंधों में दरार आने लगी। फिल्म फूल और पत्थर (1966) के नायक ही-मैन धर्मेन्द्र से मीना की नजदीकियाँ, बढ़ने लगीं। इस दौर तक मीना एक सफल, लोकप्रिय तथा बॉक्स ऑफिस सुपर हिट हीरोइन के रूप में अपने को स्थापित कर चुकी थीं।
धर्मेन्द्र का करियर डाँवाडोल चल रहा था। उन्हें मीना का मजबूत पल्लू थामने में अपनी सफलता महसूस होने लगी। गरम धरम ने मीना को सूनी-सपाट अंधेरी जिंदगी को एक ही-मैन की रोशन से भर दिया। कई तरह के गॉसिप और गरमा-गरम खबरों से फिल्मी पत्रिकाओं के पृष्ठ रंगे जाने लगे। इसका असर मीना-कमाल के रिश्ते पर भी हुआ।
मीना एक : प्रेमी अनेक
मीना कुमारी का नाम कई लोगों से जोड़ा गया। फिल्म बैजू बावरा के निर्माण के दौरान नायक भारत भूषण भी अपने प्रेम का इजहार मीना के प्रति कर चुके थे। जॉनी राजकुमार को मीना कुमार से इतना इश्क हो गया कि वे मीना के साथ सेट पर काम करते अपने संवाद भूल जाते थे।
बॉलीवुड के जानकारों के अनुसार मीना-धर्मेन्द्र के रोमांस की खबरें हवा में बम्बई से दिल्ली तक के आकाश में उड़ने लगी थीं। जब दिल्ली में वे तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन से एक कार्यक्रम में मिलीं तो राष्ट्रपति ने पहला सवाल पूछ लिया कि तुम्हारा बॉयफ्रेंड धर्मेन्द्र कैसा है?
इसी तरह फिल्मकार मेहबूब खान ने महाराष्ट्र के गर्वनर से कमाल अमरोही का परिचय यह कहकर दिया कि ये प्रसिद्ध स्टार मीना कुमारी के पति हैं। कमाल अमरोही यह सुन नीचे से ऊपर तक आग बबूला हो गए थे। धर्मेन्द्र और मीना के चर्चे भी उन तक पहुँच गए थे। उन्होंने पहला बदला धर्मेन्द्र से यह लिया कि उन्हें पाकीजा से आउट कर दिया। उनके स्थान पर राजकुमार की एंट्री हो गई। कहा तो यहाँ तक जाता है कि अपनी फिल्म रजिया सुल्तान में उन्होंने धर्मेन्द्र को रजिया के हब्शी गुलाम प्रेमी का रोल देकर मुँह काला कर दिया था।
छोटी बहू बन गई मीना
पाकीजा फिल्म निर्माण में सत्रह साल का समय लगा। इस देरी की वजह मीना-कमाल का अलगाव रहा। लेकिन मीना जानती थी कि फिल्म पाकीजा कमाल साब का कीमती सपना है। उन्होंने फिल्म बीमारी की हालत में की। मगर तब तक उनकी लाइफ स्टाइल बदल चुकी थी।
गुरुदत्त की फिल्म साहिब, बीवी और गुलाम की छोटी बहू परदे से उतरकर मीना की असली जिंदगी में समा गई थी। मीना कुमारी पहली तारिका थीं, जिन्होंने बॉलीवुड में पराए मर्दों के बीच बैठकर शराब के प्याले पर प्याले खाली किए। धर्मेन्द्र की बेवफाई ने मीना को अकेले में भी पीने पर मजबूर किया। वे छोटी-छोटी बोतलों में देसी-विदेशी शराब भरकर पर्स में रखने लगीं। जब मौका मिला एक शीशी गटक ली।
दादा मुनि अशोक कुमार, मीना कुमारी के साथ अनेक फिल्में कर चुके थे। एक कलाकार का इस तरह से सरे आम मौत को गले लगाना उन्हें रास नहीं आया। वे होमियोपैथी की छोटी गोलियाँ लेकर इलाज के लिए आगे आए। लेकिन जब मीना का यह जवाब सुना 'दवा खाकर भी मैं जीऊँगी नहीं, यह जानती हूँ मैं। इसलिए कुछ तम्बाकू खा लेने दो। शराब के कुछ घूँट गले के नीचे उतर जाने दो' तो वे भीतर तक काँप गए।
आखिर 1956 में मुहूर्त से शुरू हुई पाकीजा 4 फरवरी 1972 को रिलीज हुई और 31 मार्च 1972 को मीना चल बसी। तमाम बंधनों को पीछे छोड़ तनहा चल दी बादलों के पार अपने सच्चे प्रेमी की तलाश में।
पाकीजा सुपरहिट रही। अमर हो गए कमाल अमरोही। अमर हो गईं ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी। मगर अस्पताल का अंतिम बिल चुकाने लायक भी पैसे नहीं थे उस तनहा तारिका के पास। उस अस्पताल का बिल अदा किया वहाँ के एक डॉक्टर ने, जो मीना का जबरदस्त प्रशंसक था।