हॉलीवुड के ख्यात कलाकार टॉम हैंक्स ने पिछले दिनों एक फिल्म बनाई है, "लैरी क्राऊन"। इस फिल्म को टॉम ने न केवल डायरेक्ट किया है बल्कि इसके स्क्रिप्ट लेखन में भी सहयोग दिया है और इसमें मुख्य भूमिका तो वे निभा ही रहे हैं...।
सालों बाद टॉम ने एक बार फिर से निर्देशन के क्षेत्र की तरफ रुख किया है। फिल्म में उनकी "हीरोइन" हैं ख्यात अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स। खास बात यह कि टॉम सालों बाद फिल्म डायरेक्ट करने का इरादा करते हैं और उसमें हीरोइन के रोल के लिए चुनते हैं "44" साल की जूलिया को। क्या बॉलीवुड में यह इतना ही सहज होता?
पहनावे, रहन-सहन तथा पुरस्कार समारोह से लेकर खान-पान, सौंदर्य प्रसाधन और अंग्रेजी बोलने के तरीके तक के मामले में बॉलीवुड, हॉलीवुड की नकल करता है। यही नहीं हॉलीवुड की फिल्मों से "इन्सिपिरेशन" लेने तक का काम यहाँ आसानी से होता है लेकिन जब बात असल मुद्दों से जुड़ने की आती है तो बॉलीवुड में परंपरावाद हावी हो जाता है। हीरोइनों के मामले में बी टाऊन शुरू से एक ही "लीक" पर चला है। यहाँ हीरोइन का मतलब ही सुंदर और कम उम्र युवती से होता है जिन्हें पर्दे पर हीरो के साथ गाना गाने, रोमांस करने थोड़े-बहुत इमोशनल सीन करने और नाचने के अलावा ज्यादा कुछ करना नहीं होता।
जो हीरोइनें इससे ज्यादा कुछ "वजनदार" भूमिका चाहती हैं वे या तो समानानंतर सिनेमा तक सिमट कर रह जाती हैं या फिर किनारे कर दी जाती हैं। यहाँ नायिकाएँ हर सीन में लेटेस्ट फैशन फॉलो करती, ग्लैमर डॉल बनी नजर आ सकती हैं लेकिन धाँसू डायलॉग से लेकर धाँसू सीन तक... सबकुछ हीरो के ही खाते में दर्ज होता है। ठीक इसी तरह 60 साल के हीरो को भी 20 साल की हीरोइन मिल सकती है लेकिन 35 साल की हीरोइन के लिए रोल ही नहीं लिखे जाते। हीरो अगर शादीशुदा होता है तो भी उसके करियर पर कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन शादी के कुछ महीने बाद भी हीरोइन के लिए कमबैक करना मुश्किल हो जाता है।
यह परंपरा बॉलीवुड में शुरुआत से ही है कि एक ही हीरो अपने जमाने से लेकर अपने बेटे के जमाने के आने तक नई हीरोइनों के साथ काम करता चला जाता है लेकिन उसके साथ काम करने वाली हीरोइन आने वाले दिनों में उसकी हीरोइन नहीं बन सकती, हाँ वो उसकी माँ के रोल में जरूर आ सकती है।
बात अगर शाहरुख, आमिर या सलमान की ही करें तो उनके साथ काम करने वाली जूही, माधुरी, उर्मिला, सोनाली आदि आज भले ही उतनी बूढ़ी न हुई हों लेकिन उनके लिए खास रोल लिखने वाला कोई नहीं है...हाँ लेकिन शाहरुख, सलमान और आमिर आज भी न केवल बतौर हीरो परदे पर छाए हुए हैं बल्कि उन्हें हर फिल्म में अनुष्का, असिन, सोनाक्षी, कैटरीना, दीपिका, जरीन खान जैसी कम उम्र युवतियाँ बतौर हीरोइनें भी खुशी-खुशी मिल जाती हैं।
बॉलीवुड के इस पक्षपातपूर्ण रवैये के पीछे हमेशा से दर्शकों की मानसिकता को कारण बताया जाता रहा है। निर्देशकों-निर्माताओं का कहना है कि दर्शक हीरोइन के रूप में सुंदर और कम उम्र युवती को ही देखना चाहते हैं इसलिए कमर्शियल सिनेमा में इसी तरह की हीरोइनें टिक पाती हैं और हीरोइनों के रिटायरमेंट की उम्र भी बहुत जल्दी आ जाती है।
अब बात चाहे दर्शकों की पसंद की हो या फिर ग्लैमर के जरिए मुनाफा कमाने की.. सच यही है कि हमारे यहाँ पटकथा तथा भूमिका के मामले में हीरोइनों के बैंक बैलेंस किसी अतिसाधारण मध्यमवर्गीय नौकरीपेशा आदमी के जैसे ही होते हैं। जिन अभिनेत्रियों में अभिनय की प्यास होती है वे समानानंतर सिनेमा की ओर मुड़ती हैं और भीतर के कलाकार को जगाए रखती हैं। जो सिर्फ ग्लैमर के चलते फिल्म लाइन में आती हैं वे अपनी जमा राशि के साथ ही भविष्य को सहेजने में लग जाती हैं। बहुत हुआ तो फिल्मों में बतौर प्रोड्यूसर पैसा लगाने लगती हैं।
रेड कारपेट पर विदेशी एक्सेंट में बोलते भारतीय सितारे जब हेयर स्टाइल और पहनावे से हॉलीवुड स्टार्स की नकल करते चलते हैं तो वे यह भूल जाते हैं कि वे नकल ही कर रहे हैं और वो भी ऊपरी दिखावे की..असल चीज़ तो उनकी प्रयोगशीलता और ठोस मुद्दों पर बनाई जा रही फिल्में हैं जिनसे प्रेरणा लेना बॉलीवुड भूल जाता है।
आज अमिताभ बच्चन, अनिल कपूर जैसे 50-70 साल तक के बुजुर्गों से लेकर शाहरुख, सलमान, आमिर तथा अक्षय कुमार जैसे अधेड़ हीरो को भी 16.-19 साल की हीरोइनें आसानी से मिल जाती हैं लेकिन माधुरी दीक्षित, जूही चावला, उर्मिला मातोंडकर, तब्बू या अन्य 35 पार अभिनेत्रियों को विज्ञापन फिल्मों या फिर लीक से हटकर फिल्मों से संतोष करना होता है और उनका कमबैक भी नकार दिया जाता है।
काजोल जैसे इक्का-दुक्का हीरोइन ही होती है जो शादी के बाद भी दमदार रोल्स कर रही होती हैं। इसी मानसिकता के चलते अक्सर अभिनेत्रियाँ कम समय में ही ज्यादा से ज्यादा फिल्में करके अपने लिए पैसा भी सिक्योर कर लेती हैं और फिर किसी बिजनेसमैन से शादी करके सैटल हो जाती हैं। बहुत हुआ तो अपना कोई व्यवसाय शुरू कर लेती हैं, क्योंकि उन्हें भी मालूम होता है कि एक उम्र के बाद उन्हें कोई पूछने वाला नहीं।