बेजवाड़ा विल्सन का जन्म कर्नाटक की कोलार गोल्ड फील्ड्स में हुआ था और वो मैला ढोने वाले समुदाय से थे। वो देखते थे कि बहुत-से बच्चे स्कूल छोड़कर मैला ढोने का काम कर रहे थे। इस बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, मैं 13 साल का था, जब मैंने देखा कि मेरे मां-बाप और मेरा भाई गुजारा चलाने के लिए मानव मल ढोते थे। यह देखकर मुझे बड़ा झटका लगा था।
उन्होंने कहा, स्कूल में मेरे दोस्त मुझे चिढ़ाते थे। जब मैं अपने माता-पिता से पूछता था कि वो जीने के लिए क्या करते हैं, तो वो हमेशा मुझसे यह छुपाते थे। लेकिन जब मुझे हमारी पृष्ठभूमि के बारे में पता चला तो मैं मर जाना चाहता था।
इसके बाद से ही वे इस नीच पेशे के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं और इसे जड़ से उखाड़कर यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि मैला ढोने का काम कर रहा आखिरी इंसान भी इस काम को छोड़ दे। बेजवाड़ा विल्सन ने यह भी बताया, एक दिन के लिए भी गंदगी ढोना बहुत मुश्किल है। हर साल करीब 200 लोग इस काम के कारण बीमारी का शिकार होकर मर जाते हैं।