ऑलवेज कभी कभी

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निर्माता : गौरी खान
निर्देशक : रोशन अब्बास
संगीत : आशीष, श्री डी, प्रीतम
कलाकार : अली फजल, गिसेलो मोंटेरो, जोया मोरानी, सत्यजीत दुबे, सतीश शाह, लिलेट दुबे, विजय राज, मुकेश तिवारी, मनोज जोशी, नवनीत निशान, मेहमान कलाकार- शाहरख खान
सेंसर सर्टिफिकेट : यू/ए * 14 रील * 2 घंटे 10 मिनट
रेटिंग : 1/5

शाहरुख खान भी यह बात समझ गए थे कि उनके द्वारा बनाई गई फिल्म ‘ऑलवेज कभी कभी’ के चलने की कोई उम्मीद नहीं है। इसलिए उन्होंने ‍भी‍ फिल्म के प्रचार में कोई रूचि नहीं ली। पिछले कई दिनों से वे ‘रा-वन’ का प्रचार कर रहे हैं, लेकिन ऑलवेज कभी कभी के बारे में उन्होंने एक भी शब्द नहीं बोला।

फिल्म इतनी उबाऊ है कि बार-बार सिनेमाघर छोड़ने का मन करता है। दर्शक कितना पक जाता है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जैसे ही फिल्म खत्म होती है और स्क्रीन पर शाहरुख खान के आइटम सांग के साथ नाम आने शुरू होते हैं, कोई भी इस सुपरस्टार पर फिल्माया गया गाना देखने के लिए रूकना भी पसंद नहीं करता।

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‘ऑलवेज कभी कभी’ में वही बात की गई है जो हम हाल ही में फालतू और थ्री इडियट्स में देख चुके हैं। पैरेंट्स के सपनों को पूरा करने का बच्चों पर दबाव। पढ़ाई का टेंशन आदि। कई बार दोहराई जा चुकी यह बात फिल्म में इतने बचकाने तरीके से पेश की गई है कि कही भी फिल्म अपना असर नहीं छोड़ पाती। सब कुछ सतही तरीके से कहा गया है। ऐसा लगता है कि फिल्म के जरिये कई बातें निर्देशक और लेखक कहना चाहते थे, लेकिन वे ठीक से कह नहीं पाए और सारा मामला गड़बड़ हो गया।

कहने को तो फिल्म टीनएजर्स को ध्यान में रखकर बनाई गई है, लेकिन फिल्म में वो मौज-मस्ती नदारद है जो इस वर्ग को पसंद है। न ही ये फिल्म इस तरह की कोई बात या मुददा सामने लाती है कि पैरेंट्स इसे देखकर कुछ सीख सकें।

निर्देशक रोशन अब्बास पर अभी भी कुछ कुछ होता है टाइप फिल्मों का हैंगओवर छाया हुआ है। फिल्म को उन्होंने उसी अंदाज में बनाया है और उनका ध्यान फिल्म के लुक और स्टाइलिंग पर रहा है। स्क्रीनप्ले लिखने वालों में उनका भी नाम है और यहाँ पर वे निर्देशक से भी ज्यादा कमजोर साबित हुए हैं। सारे घटनाक्रम ठूँसे हुए लगते हैं और इन घटनाओं को बेहूदा तरीके से आपस में जोड़ा गया है।

रोमियो जूलियट के नाटक के बारे में ढेर सारी बातें कर खूब बोर किया गया है। पुलिस वाला ट्रेक भी बचकाना है। हँसाने के लिए जो दृश्य रखे गए हैं वो खीज पैदा करते हैं। आखिर में पैरेंट्स का अचानक हृदय परिवर्तन होना तर्कसंगत नहीं लगता है। फिल्म का संगीत इसकी एक और कमजोर कड़ी है।

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नंदी के रूप में जोया मोरानी अपना प्रभाव छोड़ने में सफल हैं और उन्होंने नैसर्गिक अभिनय किया है। समीर का किरदार निभाया है अली फज़ल ने और उनका अभिनय भी ठीक कहा जा सकता है।

गिसेले मोंटेरो सुंदर है, लेकिन उनकी एक्टिंग के बारे में ये बात नहीं कही जा सकती है। सत्यजीत दुबे भी ओवर एक्टिंग करते रहे। विजय राज, सतीश शाह और मुकेश तिवारी जैसे अभिनेताओं ने पता नहीं क्या सोचकर दोयम दर्जे की भूमिका स्वीकारी।

कुल मिलाकर ऑलवेज कभी कभी को ‘नेवर’ कहना ही उचित है।

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