गेम : फिल्म समीक्षा

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निर्माता : फरहान अख्तर, रितेश सिधवानी
निर्देशक : अभिनय देव
संगीत : शंकर-अहसान-लॉय
कलाकार : अभिषेक बच्चन, कंगना, सेरा जेन डिएस, जिमी शेरगिल, गौहर खान, शहाना गोस्वामी, बोमन ईरानी, अनुपम खेर
सेंसर सर्टिफिकेट : यू/ए * 2 घंटे 10 मिनट
रेटिंग : 1/5

थ्रिलर और मर्डर मिस्ट्री फिल्म बनाना हर किसी के बस की बात नहीं है। राज खुलने तक दर्शक को बाँधकर रखना और कातिल के चेहरे से परदा हटने के बाद दर्शक को संतुष्ट करना कठिन काम है क्योंकि सभी को अपने प्रश्नों का ठोस उत्तर ‍चाहिए। इसके लिए कसी हुई स्क्रिप्ट और चुस्त निर्देशन की आवश्यकता होती है।

‘गेम’ इन कसौटियों पर खरी नहीं उतरती और एक उबाऊ फिल्म के रूप में सामने आती है। हैरत इस बात की होती है कि इस फिल्म से फरहान अख्तर का नाम जुड़ा है जिनका बैनर अच्छी फिल्मों के लिए जाना जाता है।

फिल्म से जुड़े सारे लोगों का ध्यान केवल स्टाइलिश फिल्म बनाने की ओर रहा। सारे कलाकार स्टाइलिश नजर आते हैं, हत्या के बाद हत्यारे की खोज आधुनिक तरीकों से की जाती है, पाँच देशों की शानदार लोकेशन पर भागम-भाग होती है, लेकिन ठोस कहानी और स्क्रीनप्ले के अभाव में ये सभी चीजें खोखली नजर आती हैं।

कबीर मल्होत्रा (अनुपम खेर) अपने प्राइवेट आयलैंड पर ओपी रामसे (बोमन ईरानी), नील मेनन (अभिषेक बच्चन), तिशा खन्ना (शहाना गोस्वामी) और विक्रम कपूर (जिम्मी शेरगिल) को बुलाता है। इनमें से एक नेता है, दूसरा कैसिनो मालिक है, तीसरा पत्रकार है और चौथा फिल्म स्टार।

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कबीर की एक नाजायज बेटी थी जिसकी जिंदगी को बरबाद करने में इन चारों का हाथ है। वह इनसे अपना बदला लेना चाहता है। लेकिन इसके पहले ही एक ऐसी घटना घटती है और एक ऐसा राज खुलता है जिसका असर सभी की जिंदगियों पर होता है। सिया (कंगना) नामक ऑफिसर इस मामले की जाँच करती है।

लगता है कि फिल्म की स्क्रिप्ट एक बार लिखकर ही फाइनल कर दी गई है। इतने सारे अगर-मगर हैं, प्रश्न हैं, जिनका जवाब देने की कोई जरूरत नहीं समझी गई है। कबीर गहरी छानबीन कर इन चारों को अपने आयलैंड पर बुलाता है, लेकिन एक व्यक्ति के बारे में वह यह नहीं जान पाता कि वह पुलिस इंसपेक्टर है और उसकी बेटी को चाहता था।

पुलिस इंसपेक्टर अपनी पहचान क्यों छिपाकर रखता है यह भी समझ से परे है। साथ ही मामले की पड़ताल के दौरान वह अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए अपना बदला भी लेता है। कई सवाल ऐसे हैं, जिनके बारे में यहाँ बात की गई तो कहानी के राज खुल सकते हैं। फिल्म का अंत बेहद खराब है और एकदम फिल्मी है।

निर्देशक अभिनय देव ने कहानी के बजाय शॉट्स कैसे फिल्माए जाए, फिल्म को रिच लुक कैसे दिया जाए, इन्हीं बातों पर गौर किया है। कहानी का उन्होंने इस तरह फिल्मांकन किया है उससे दर्शक कभी जुड़ नहीं पाता है।

मनोरंजक दृश्यों की फिल्म में कमी है और एक भी ऐसा सीन नहीं है कि दर्शकों में रोमांच पैदा हो। ‍फिल्म में दो-तीन गाने भी हैं, जिनकी न धुन अच्छी है और न ही फिल्मांकन।

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लगता है कि सारे कलाकारों को भी स्क्रिप्ट समझ में नहीं आई, जिसका असर उनके अभिनय पर दिखता है। अभिषेक बच्चन भावहीन (एक्सप्रेशन लेस) रहे, हालाँकि ये उनके किरदार पर सूट करता है।

बोमन ईरानी ने ओवर एक्टिंग की है। जिमी शेरगिल और शहाना गोस्वामी जैसे कलाकार भी रंग में नजर नहीं आए। पहली फिल्म में सेरा जेन डिएस प्रभावित नहीं कर पाईं। कंगना को तुरंत हिंदी और अँग्रेजी के उच्चारण सीखने की की जरूरत है। उनका अभिनय भी बनावटी है। इनकी तुलना में अनुपम खेर का अभिनय ठीक है।

कुल मिलाकर इस गेम को ना खेलना ही बेहतर है।

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