तो बात पक्की : कच्ची है

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निर्माता : रमेश एस. तौरानी
निर्देशक : केदार शिंदे
संगीत : प्रीतम
कलाकार : तब्बू, शरमन जोशी, वत्सल सेठ, युविका चौधरी, अयूब खान, उपासना सिंह, हिमानी शिवपुरी, शरत सक्सेना, सुहासिनी मुले
यू सर्टिफिकेट * 16 रील * दो घंटे 10 मिनट
रेटिंग : 1.5/5

‘तो बात पक्की’ की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसमें दर्शकों को हँसाने की कोशिश साफ नजर आती है। कुछ गैर जरूरी सीन सिर्फ हास्य पैदा करने के लिए लिखे गए हैं (खासतौर पर शरत सक्सेना वाला ट्रेक), लेकिन इन्हें देख बोरियत होती है। न फिल्म में ऐसी सिचुएशन है, जिन्हें देख चेहरे पर मुस्कान आए और न ही ऐसे डायलॉग्स हैं जिन्हें सुनकर ठहाके लगाए जाए।

अच्छी कॉमेडी फिल्म के लिए दमदार एक्टिंग भी एक आवश्यक शर्त है। वत्सल सेठ और युविका चौधरी से उम्मीद करना बेकार है, लेकिन शरमन जोशी और तब्बू जैसे कलाकार भी निराश करते हैं।

राजेश्वरी (तब्बू) अपनी छोटी बहन निशा (युविका) के लिए दूल्हा ढूँढ रही है। उसकी खास शर्तें हैं। लड़का सक्सेना होना चाहिए। हैंडसम होने के साथ-साथ उसके पास अच्छा जॉब होना चाहिए।

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इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर के स्टुडेंट राहुल सक्सेना (शरमन जोशी) की नौकरी लगने ही वाली है और उसमें सारी खूबियाँ राजेश्वरी को नजर आती हैं। उसकी कोशिश से निशा और राहुल एक-दूसरे को चाहने लगते हैं। उनकी शादी की तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं।

इसी बीच राजेश्वरी के घर पर युवराज सक्सेना (वत्सल सेठ) किराएदार बनकर आ जाता है। वह ज्यादा कमाता है। उसके पास बंगला और कार भी है। राजेश्वरी अब अपनी बहन का रिश्ता ‍युवराज के साथ तय कर देती है। राहुल किस तरह से निशा को फिर से पाने में कामयाब होता है यह फिल्म का सार है।

यह कहानी पढ़ने या सुनने में अच्छी लगती है, लेकिन स्क्रीन पर देखते समय बोरियत महसूस होती है। स्क्रीनप्ले में वो पंच, वो गर्माहट नहीं है जो दर्शकों को बाँधकर कर रखे। फिल्म से दर्शक कनेक्ट नहीं हो पाता।

निशा को वापस पाने के लिए और अपने रास्ते से युवराज को हटाने के लिए राहुल जो प्लानिंग बनाता है वो फिल्म का प्रमुख आकर्षण होना चाहिए था, लेकिन यह पार्ट निहायत ही घटिया तरीके से लिखा गया है। युवराज और उसकी माँ को बेवकूफ बताया गया है।

कैरेक्टर को स्थापित करने के लिए बहुत सारे दृश्य खर्च किए गए हैं। तब्बू और शरमन की पहली मुलाकात और तब्बू के स्वभाव को बताने के लिए फिल्म के आरंभ में दिखाए गए वाले शादी के सीन बेहद कमजोर और लंबे हैं।

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केदार शिंदे का डायरेक्शन ठीक है, लेकिन स्क्रिप्ट कमजोरी होने के कारण वे भी ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। संगीतकार प्रीतम ने ‍फिल्म की स्टारकास्ट और सेटअप को देखते हुए अपनी कमजोर धुनें टिका दी हैं। गानों के लिए ठीक से सिचुएशन नहीं बनाई गई है और उनका पिक्चराइजेशन भी कमजोर है।

तब्बू अपने रोल में असहज नजर आईं। कॉमेडी रोल बेहतर तरीके से निभाने वाले शरमन जोशी इम्प्रेस नहीं कर पाते। वत्सल सेठ और युविका चौधरी को अभिनय सीखने की जरूरत है।

कुल मिलाकर ‘तो बात पक्की’ ज्यादातर बातों में कच्ची है।

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