हिंदी सिनेमा में कौन-सा सितारा कब चमक उठेगा और कब डूब जाएगा, यह तय करना कठिन होता है। साल 1971 में जब विनोद मेहरा 'एक थी रीटा' फिल्म से बतौर नायक नजर आए, तो दर्शकों को उनका सुदर्शन चेहरा तुरंत भा गया। तनूजा उनकी पहली हीरोइन थीं और इस जोड़ी ने नई उम्मीदें जगाईं।
चर्चगेट से सिनेमा तक
मुंबई के चर्चगेट इलाके में स्थित 'गेलार्ड' रेस्तरां, 50 और 60 के दशक में संघर्षरत कलाकारों का अड्डा हुआ करता था। यहीं पर डायरेक्टर रूप के. शोरी की नजर विनोद पर पड़ी और उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के उन्हें अपनी फिल्म में मुख्य भूमिका दे दी। इससे पहले विनोद बाल कलाकार के रूप में 'रागिनी', 'बेवकूफ', और 'अंगुलिमाल' जैसी फिल्मों में काम कर चुके थे।
मौसमी चटर्जी ने बदली किस्मत
13 फरवरी 1945 को जन्मे विनोद मेहरा की किस्मत में नया मोड़ तब आया जब उन्हें शक्ति सामंत की फिल्म 'अनुराग' (1972) में मौसमी चटर्जी के साथ काम करने का मौका मिला। मौसमी ने दृष्टिहीन लड़की का किरदार निभाया और विनोद एक आदर्शवादी प्रेमी के रूप में नजर आए। इसके बाद 'उस पार', 'दो झूठ', और 'स्वर्ग नरक' जैसी फिल्मों में यह जोड़ी नजर आई।
बी-ग्रेड हीरो के रूप में सीमित रोमांस
हालांकि विनोद को लीड हीरो के तौर पर पहचान मिली, लेकिन ए-ग्रेड निर्देशकों ने उन्हें ज्यादातर सेकेंड लीड या मल्टीस्टार फिल्मों में ही जगह दी। राजेश खन्ना, धर्मेंद्र, संजीव कुमार, अमिताभ जैसे सितारों के रहते उन्हें बहुत सीमित स्पेस मिला। 'द बर्निंग ट्रेन' जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स में वे भीड़ का हिस्सा भर बनकर रह गए।
दक्षिण भारतीय निर्देशकों का सहारा
बॉलीवुड में उपेक्षा के बाद उन्हें दक्षिण भारतीय निर्देशकों का सहारा मिला। कृष्णन-पंजू ('शानदार'), आर. कृष्णमूर्ति ('अमरदीप'), एस. रामनाथन ('दो फूल'), और दसारी नारायण राव ('स्वर्ग नरक') ने उन्हें मौके दिए। लेकिन इससे उनकी बॉलीवुड में पकड़ कमजोर होती चली गई।
अस्सी का दशक और हाशिए का हीरो
80 के दशक में विनोद को विविध भूमिकाएँ मिलीं, लेकिन लोकप्रियता दूसरे सितारे ले गए। 'कर्तव्य' में धर्मेंद्र-रेखा, 'बेमिसाल' और 'खुद्दार' में अमिताभ, 'लाल पत्थर' में राजकुमार-हेमा जैसे सितारों ने उन्हें पीछे छोड़ दिया। अमजद खान की फिल्म 'चोर पुलिस' में भी वे फीके ही रहे।
रेखा के साथ प्रेम, शादी और रहस्य
विनोद और रेखा का प्रेम बॉलीवुड में लंबे समय तक चर्चा में रहा। कहा जाता है कि दोनों ने शादी भी की थी, हालांकि इस पर कभी मुहर नहीं लगी। विनोद ने तीन शादियाँ की—पहली पत्नी मीना ब्रोका थीं। इसके बाद बिंदिया गोस्वामी से रिश्ता जुड़ा, लेकिन जल्दी टूट गया। तीसरी पत्नी किरण से उन्हें दो संतानें हुईं—सोनिया और रोहन। सोनिया मेहरा ने फिल्मों में भी हाथ आजमाया।
'गुरुदेव' और अधूरी ख्वाहिशें
अपने एक्टिंग करियर से असंतुष्ट विनोद ने निर्देशन का रास्ता चुना और 'गुरुदेव' फिल्म बनाई जिसमें ऋषि कपूर, अनिल कपूर और श्रीदेवी मुख्य भूमिकाओं में थे। लेकिन शूटिंग में देरी और सितारों के डेट्स ना मिलने से विनोद तनाव में रहने लगे। फिल्म पूरी होने से पहले ही 30 अक्टूबर 1990 को महज 45 साल की उम्र में हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हो गई।
आखिरी फिल्में और अधूरा सपना
विनोद की मृत्यु के बाद 'प्रतीक्षा' (1993), 'सरफिरा' (1992), और 'इंसानियत' (1994) जैसी फिल्में रिलीज़ हुईं। लेकिन वह कलाकार जिसने 70 के दशक में चमकते हुए एंट्री ली थी, वह अंततः हाशिए पर आकर विदा हो गया।
प्रमुख फिल्में
लाल पत्थर (1972), अनुराग (1972), सबसे बड़ा रुपैया (1976), नागिन (1976), अनुरोध (1977), घर (1978), कर्तव्य (1979), द बर्निंग ट्रेन (1980), बेमिसाल (1982), लॉकेट (1986), प्यार की जीत (1987) जैसी कई फिल्मों में विनोद ने अहम भूमिकाएं निभाईं, लेकिन वे कभी स्टारडम के शीर्ष तक नहीं पहुंच पाए।