फॉक्स : नहीं बनी बात

IFM
बैनर : तिजोरी इंटरनेशनल, रोहित कुमार प्रोडक्शन्स, ज़ी मोशन पिक्चर्स
निर्देशक : दीपक तिजोरी
संगीत : मोंटी शर्मा
कलाकार : सनी देओल, अर्जुन रामपाल, सागरिका घाटगे, उदिता गोस्वामी
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 14 रील * 116 मिनट
रेटिंग : 2/5

सस्पेंस-थ्रिलर ‘फॉक्स’ के साथ के साथ वहीं समस्या है जो आमतौर पर इस तरह की फिल्मों के साथ होती है। रहस्य का ताना-बाना तो अच्छी तरह बुन लिया जाता है, लेकिन जब रहस्य पर से परदा उठाने की बारी आती है तो लेखक ऐसे तर्क और घटनाक्रम सामने रखता है जो तर्कसंगत नहीं लगते और मामला टाँय-टाँय फिस्स हो जाता है। इस तरह की फिल्म बनाना हर किसी के बस की बात नहीं है और इसे निर्देशक और लेखक दीपक तिजोरी को भी अच्छी तरह समझ लेना चाहिए।

अर्जुन कपूर (अर्जुन रामपाल) एक वकील है जो पैसों की खातिर उन लोगों को बचाता है जो दोषी हैं। वकालत उसके लिए मात्र व्यवसाय है। आखिर उसका जमीर जागता है और वह वकालत से ब्रेक लेकर मुंबई से गोआ चला जाता है।

एक मुलाकात के दौरान एक बूढ़ा आदमी अर्जुन को अपना उपन्यास पढ़ने को देता है। अर्जुन को उपन्यास बहुत रोचक लगता है। अगले दिन वह उसे लौटाने जाता है, लेकिन उसे पता चलता है कि वह वृद्ध इस दुनिया में नहीं रहा।

अर्जुन अपने नाम उसे उस उपन्यास को पब्लिशर सोफिया (उदिता गोस्वामी) की मदद से छपवाता है। उपन्यास बेहद सफल रहता है और अर्जुन की ख्‍याति और बढ़ जाती है। एक दिन पुलिस ऑफिसर यशवंत देशमुख (सनी देओल) अर्जुन से पूछता है कि क्या उपन्यास उसने लिखा है? हाँ कहने पर उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है क्योंकि उपन्यास में वर्णित घटनाक्रम पाँच मर्डर केस से संबंधित है। उपन्यास में इन हत्याओं का इतनी बारीकियों से वर्णन किया गया कि अर्जुन को ही हत्यारा समझ लिया जाता है। कैसे अर्जुन अपने आपको बेगुनाह साबित करता है, ये फिल्म का सार है।

फिल्म के शुरुआत में अर्जुन के जमीर जागने और वकालत से ब्रेक लेने के घटनाक्रम को जरूरत से ज्यादा फुटेज दिया गया है। इंटरवल से कुछ देर पहले सनी देओल की एंट्री और अर्जुन रामपाल के गिरफ्तार होने के बाद उम्मीद जागती है कि आगे कुछ दिलचस्प देखने को मिलेगा। लेकिन इसके बाद कहानी को ठीक तरह से दीपक तिजोरी विकसित नहीं कर सके। कहानी को पूरा करने के लिए उन्होंने तर्क-वितर्कों को परे रखकर फिल्म के नाम पर खूब छूट ले ली।

अर्जुन जैसे भ्रष्ट वकीलों को मौत के घाट उतारने वाला क्यों उसकी मदद करता है, ये समझ के परे है। उसकी हत्या करने वाले आसान रास्ते की बजाय वह उपन्यास के जरिये उसे फँसाने वाला कठिन रास्ता क्यों चुनता है? अपनी गलतियों के लिए शर्मिंदा अर्जुन उपन्यास को अपने नाम से छपवाने का अपराध क्यों करता है? इन पक्षों पर लेखक ठीक से रोशनी नहीं डाल सके।

सनी देओल का किरदार भी ठीक से नहीं लिखा गया है। उन्हें अक्खड़ व्यक्ति दिखाने की कोशिश की गई है, लेकिन कई बार वे उदार निकले और अपने दुश्मन की उन्होंने मदद भी की।

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निर्देशक के रूप में दीपक तिजोरी ने फिल्म को आधुनिक लुक देने की कोशिश की है। इस वजह से अँग्रेजी के कई संवादों का इस्तेमाल किया गया है और किरदारों की लाइफस्टाइल हाईफाई रखी गई है।

अर्जुन रामपाल का अभिनय औसत है और उनके द्वारा बोले गए कुछ संवाद अधूरे लगते हैं। सनी देओल ने नियंत्रित अभिनय किया है। सागरिका घाटगे के मुकाबले उदिता गोस्वामी बेहतर रही।

कुल मिलाकर ‘फॉक्स’ एक औसत फिल्म है।

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