अमिताभ बच्चन के प्रशंसकों की कई वर्षों से ख्वाहिश थी कि उनका चहेता अभिनेता वैसी ही फिल्म करें, वैसा ही रोल करें जैसा कि वह अपने जवानी के दिनों में किया करता था। अमिताभ ने पिछले कुछ वर्षों में जो रोल निभाए हैं, वो उनके जैसे कद के अभिनेता के साथ न्याय नहीं कर पाते हैं। ज्यादातर फिल्मों में उन्होंने सॉफ्ट रोल ही किए।
पुरी जगन्नाथ भी अमिताभ के इन्हीं प्रशंसकों में से हैं और उन्होंने ‘बुड्ढा होगा तेरा बाप’ का निर्माण महानायक की एंग्रीयंग इमेज को ध्यान में रखकर किया है, लेकिन यह फिल्म उन अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरती जो बिग-बी के प्रशंसकों ने फिल्म से बाँधकर रखी है।
ऐसा लगता है कि पुरी जगन्नाथ ने जल्दबाजी में यह काम किया है और इसका असर खासतौर पर फिल्म के पहले हाफ में नजर आता है। एक सीन में विलेन अपने दोस्त को टीवी की ओर इशारा कर कहता है कि आज तक लगा और टीवी पर सीएनएन चैनल नजर आता है।
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फिल्म के शुरुआती 30 मिनट में अमिताभ के मिजाज को दिखाने के लिए जो सीन गढ़े गए हैं वे बेहद बचकाने हैं। अमिताभ को एअरपोर्ट पर एक पुलिस ऑफिसर रोकता है और जो बातें वे करते हैं उनका कोई मतलब नहीं निकलता। मकरंद देशपांडे के सामने अमिताभ अपने पुराने हिट गीतों पर डांस करते हैं वो भी अपील नहीं करता है।
इसी तरह अमिताभ और उनके संन्यासी दोस्त तथा अमिताभ और रवीना टंडन की बेटी वाले दृश्यों को बेवजह खींचा गया है। रवीना और अमिताभ की प्रेम कहानी वाला ट्रेक तो बहुत बुरा है। खास बात तो ये है कि पहले हाफ में अमिताभ की एक्टिंग भी बेहद बनावटी लगती है और इसमें भी दोष निर्देशक का ही ज्यादा है।
फिल्म रफ्तार पकड़ती है दूसरे हाफ से जब यह स्पष्ट होता है कि विजू (अमिताभ) अपने एसीपी बेटे करण मल्होत्रा (सोनू सूद) को अंडरवर्ल्ड से बचाने के लिए पेरिस से मुंबई आया हुआ है। करण यह नहीं जानता है कि उसका पिता कौन है? विजू उस गैंग में शामिल हो जाता है जो उसके बेटे को मारना चाहती है।
फिल्म के इस दूसरे हिस्से में कहानी भी आगे बढ़ती है। कुछ अच्छे सीन देखने को मिलते हैं और अमिताभ भी यहाँ पूरे रंग में नजर आते हैं। हेमा मालिनी के साथ अमिताभ के कुछ इमोशनल दृश्य हैं और बिग बी का इन दृश्यों में अभिनय देखते ही बनता है। यहाँ साबित होता है कि अभिनय में वे सबके बाप हैं।
जगन्नाथ पुरी का निर्देशन स्क्रिप्ट की तरह कमजोर है। फिल्म देखकर लगता है कि यह काम मँझे हुए निर्देशक के बजाय अमिताभ के प्रशंसक का है। खासतौर पर फिल्म के पहले हिस्से को उन्होंने चलताऊ तरीके से निपटाया है।
अमिताभ का दबदबा उन्होंने फिल्म पर इतना रखा है कि दूसरे कलाकारों के किरदार दब गए हैं। इससे नुकसान फिल्म का ही हुआ है। मुख्य विलेन प्रकाश राज सिर्फ अपने गुंडे साथियों को चिल्लाने के अलावा कुछ नहीं करते नजर आते हैं। उनके पात्र को ज्यादा फुटेज दिए जाने थे।
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सोनू सूद ने अपना काम गंभीरता से किया है। हेमा मालिनी, सोनल चौहान को करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था। रवीना टंडन का किरदार ठीक से नहीं लिखा गया था और सिवाय ओवर एक्टिंग करने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं था। उनके आइटम सांग ‘मैं चंडीगढ़ दी स्टार’ को फिल्म में जगह नहीं मिली। ‘गो मीरा’ और ‘हाल ए दिल’ गीत सुने जा सकते हैं। फिल्म का बजट कम है और ये बात फिल्म देखते समय महसूस होती है।
कुल मिलाकर ‘बुड्ढा होगा तेरा बाप’ अमिताभ के स्टारडम से न्याय नहीं कर पाती। जरूरत है ऐसी स्क्रिप्ट्स की जो इस कद के कलाकार के अनुरूप हो।