कुछ वर्ष पहले फिल्म निर्माता, निर्देशक या एक्टर अपनी औलाद को लांच करते समय सुरक्षित दांव खेलते थे। आजमाए हुए हिट फॉर्मूलों पर आधारित ऐसी कहानी चुनी जाती थी जो ज्यादा से ज्यादा लोगों को पसंद आए। इसमें कुछ हिट गीत हो, फाइटिंग हो, थोड़ा इमोशन और कॉमेडी हो ताकि नया हीरो/हीरोइन एकदम कंप्लीट पैकेज नजर आए। अब ये दौर बीत चुका है, लेकिन कुछ लोग अभी भी वहीं अटके हुए हैं।
टिप्स वाले कुमार तौरानी के बेटे गिरीश कुमार ने ‘रमैया वस्तावैया’ से बतौर हीरो अपना सफर शुरू किया है। तौरानी ने हजारों बार आजमाई हुई प्रेम कहानी अपने बेटे के लिए चुनी है। यह फिल्म प्रभुदेवा द्वारा निर्देशित तेलुगु फिल्म ‘नुव्वोस्तानांते नुव्वोस्तानांते’ का हिंदी रिमेक है, जबकि यह तेलुगु फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ से प्रभावित थी। यानी कि कहानी के इस गन्ने का का रस इतना निचोड़ा जा चुका है कि अब इसमें कुछ बाकी नहीं रहा। शुरू से लेकर आखिरी तक यह पता रहता है कि आगे क्या होने वाला है।
कहानी जानी-पहचानी हो तो बात आती है प्रस्तुतिकरण पर। कई बार परिचित कहानी पर भी फिल्म इसलिए अच्छी लगती है क्योंकि निर्देशक उसे नए एंगल से पेश करता है। मनोरंजन का ऐसा तड़का लगाता है कि मन रमा रहता है।
‘रमैया वस्तावैया’ का निर्देशन प्रभुदेवा ने किया है। हिंदी में वांटेड और राउडी राठौर जैसी सफल फिल्में उन्होंने दी हैं। मसालों को किस तरह पेश किया जाना चाहिए यह काम उन्हें अच्छी तरह आता है। इन दोनों फिल्मों के प्रस्तुतिकरण में जहां ताजगी थी वही स्टार्स का साथ भी था, लेकिन ‘रमैया वस्तावैया’ से ये दोनों बातें नदारद हैं। प्रभुदेवा ने आज के दौर के मुताबिक बदलाव नहीं किए हैं। कॉलेज में पढ़ने वाली हीरोइन को मिट्टी के घोड़े के साथ खेलता देख अजीब-सा लगता है।
फिल्म शुरू होते ही ओवरएक्टिंग और अतिनाटकीयता का सिलसिला शुरू हो जाता है जो अंत तक चलता रहता है। इस प्रेम कहानी में हीरो-हीरोइन एक-दूसरे को चाहने लगते हैं, लेकिन आर्थिक विषमता को लेकर दीवार खड़ी की जाती है। ऑस्ट्रेलिया में रहने वाला हीरो जिसने जिंदगी में कोई काम नहीं किया, हीरोइन के गांव आकर उसके भाई से हीरोइन का हाथ मांगता है।
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हीरोइन का भाई कहता है कि हीरो की मां ने किसान का अपमान किया है इसलिए हीरो को खेती कर उससे ज्यादा अनाज पैदा कर दिखाना होगा। गाय-भैंस के गोबर साफ करते हुए और कीचड़ में लथपथ होते हुए हीरो यह बाजी जीत लेता है। उसे रोजाना तीखा खाना क्यों खिलाया जाता है यह समझ से परे है। इस सपाट कहानी में कुछ विलेन भी डाल दिए गए हैं क्योंकि फाइटिंग सीन जरूरी है। कॉमेडी के नाम पर घिसी-पिटी जोकरनुमा हरकतें हैं। ऐसा लगता है कि पन्द्रह साल पुरानी फिल्म देख रहे हों।
निर्देशक के रूप में प्रभुदेवा ने कुछ मौलिक नहीं सोचा और तयशुदा फॉर्मूले पर ही फिल्म बनाई। हीरो-हीरोइन के प्रेम और दर्द को दर्शक महसूस नहीं कर पाते हैं। सचिन-जिगर का संगीत अच्छा है। ‘जीने लगा हूं’ जैसे एक-दो गानें ऐसे हैं जो हिट हो चुके हैं।
बात की जाए हीरो गिरीश कुमार की, जिनके लिए ‘रमैया वस्तावैया’ नामक फिल्म का निर्माण किया गया है। गिरीश के पीछे जो मेहनत की गई है उससे साफ झलकता है कि वे कलाकार की बजाय स्टार बनना चाहते हैं। स्टार बनना हो तो स्टार्स वाली बात भी होनी चाहिए। दिखने में वे साधारण हैं। डांस और फाइट ठीक-ठाक कर लेते हैं। अभिनय के लिए उन्हें मेहनत करना होगी, तब जाकर ही वे अपना सपना पूरा कर सकते हैं।
श्रुति हासन खूबसूरत लगीं और अभिनय भी अच्छा कर लेती हैं। इस फिल्म में उन्हें कुछ कर दिखाने का मौका मिला है। गिरीश को फायदा हो न हो, श्रुति को इस फिल्म का लाभ जरूर मिल सकता है। हीरो कमजोर हो तो सपोर्टिंग कास्ट पर खूब मेहनत की जाती है। रणधीर कपूर, विनोद खन्ना, पूनम ढिल्लो, गोविंद नामदेव, सतीश शाह, नासेर, जाकिर हुसैन जैसे कई कलाकार हैं, लेकिन किसी का रोल पॉवरफुल नहीं है। हीरोइन के भाई के रूप में सोनू सूद असरदार रहे हैं।
कुल मिलाकर ‘रमैया वस्तावैया’ पन्द्रह वर्ष पुरानी टिपिकल बॉलीवुड फिल्म नजर आती है।