‘लफंगे परिंदे’ उन लोगों की कहानी है जो मुंबई की चकाचौंध से दूर तंग गलियों में रहते हैं। जहाँ आदमी ज्यादा और जगह कम है। वाडी या चाल में इनके छोटे-छोटे घर होते हैं। इन गलियों में रहने वाले बच्चे/युवाओं में एक खास किस्म की स्मार्टनेस रहती है।
ऐसा ही एक चिकना नौजवान है नंदू (नील नितिन मुकेश) जिसे वन शॉट नंदू कहा जाता है। वह वहाँ फाइटिंग करता है जहाँ लड़ने वालों पर पैसा लगाया जाता है। आँखों पर पट्टी बाँध नंदू पहले तो खूब मार खाता है, लेकिन बाद में एक ही मुक्के से विरोधी को चारों खाने चित्त कर देता है।
पिंकी पालकर (दीपिका पादुकोण) को स्केट पहनकर डांस करने का शौक है और रियलिटी शो जीतकर नाम कमाना चाहती है। अपराध की दुनिया में नंदू कदम रखता है और पहले ही दिन उसकी कार से एक लड़की टकरा जाती है और वह अंधी हो जाती है। बताने की जरूरत नहीं है कि वह पिंकी ही रहती है। यह बात सिर्फ नंदू को पता रहती है।
आत्मग्लानि से पीड़ित नंदू पिंकी की आँख बनता है और उसका सपना पूरी करने में मदद करता है। लेकिन एक दिन उसका राज खुल जाता है और वह पिंकी की नजरों में गिर जाता है। किस तरह से पिंकी और वह एक होते हैं यह फिल्म का सार है।
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मूल रूप से यह एक लव स्टोरी है, जिसकी पृष्ठभूमि में स्ट्रीट फाइटिंग और डांस का तड़का लगाया गया है। साथ में मुंबइया फ्लेवर दिया गया है। ये मुंबई में रहने वाले वो लोग हैं जो गणपति जोर-शोर से मनाते हैं, डांडिया खेलते हैं और तेज धूप में पसीने से लथपथ रहते हैं। शानपट्टी, खोपचे, येड़ा, सटकेला शब्द बोलते हैं। गुलकंद, डीजल और चड्डी जैसे कुछ किरदारों के नाम है।
कहानी को लेकर कई सवाल खड़े किए जा सकते हैं और कही-कही ‘रब ने बना दी जोड़ी’ की भी याद आती है। दरअसल निर्देशक प्रदीप सरकार ने सारा फोकस नंदू और पिंकी की लव स्टोरी पर किया है कि किस तरह दोनों एक-दूसरे के करीब आते हैं और दोनों में प्यार के बीज अंकुरित होते हैं।
यह हिस्सा उन्होंने अच्छे तरीके से फिल्माया और दर्शकों को बाँधकर रखा है। पिंकी, नंदू और उनके दोस्तों के बीच कई ऐसे दृश्य हैं, जो भरपूर मनोरंजन करते हैं। जैसे नंदू का स्केटिंग सीखने की कोशिश करना, दोनों का सिनेमा देखने जाना।
लेकिन कहानी के अन्य पहलूओं जैसे एक्सीडेंट के बाद पुलिस का नंदू तक पहुँचना या रियलिटी शो में पिंकी का विजेता बनना जैसे मुद्दों को निर्देशक ने हल्के से लिया है। इन्हें किसी तरह निपटाया गया है। यहाँ कहानी भी कमजोर पड़ती है और निर्देशन भी। इसके बावजूद भी फिल्म देखते समय इसलिए ठीक लगती है क्योंकि नंदू-पिंकी की प्रेम कहानी को अच्छा खासा फुटेज दिया गया है।
नील नितिन मुकेश और दीपिका पादुकोण ने भले ही लोकप्रियता हासिल कर ली हो, लेकिन अभिनय के कई पाठ इन्हें अभी सीखना है। नील के अभिनय में उनकी पिछली रिलीज फिल्मों के मुकाबले सुधार नजर आता है।
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दीपिका सुंदर लगी हैं, लेकिन दृष्टिहीन लड़की का रोल उन्होंने ऐसे निभाया मानो उन्हें सब कुछ दिख रहा हो। चूँकि कहानी में बताया गया है कि उन्हें दिखाई नहीं दे रहा है इसलिए हमें ये मानना पड़ता है, वरना दीपिका के अभिनय से कही भी ये बात नजर नहीं आती है कि उन्हें नजर नहीं आ रहा है। नंदू के दोस्तों और पियूष मिश्रा का अभिनय स्वाभाविक है। छोटे से रोल में केके मेनन भी हैं।
आर आनंद का संगीत फिल्म का प्लस पाइंट है। कुछ गीत अच्छे बन पड़े हैं और इनका फिल्मांकन भी बढ़िया है। स्वानंद किरकिरे ने उम्दा गीत लिखे हैं। एन नटराजन सुब्रमण्यम की सिनेमेटोग्राफी आँखों को अच्छी लगती है। संवाद कई बार गुदगुदाते हैं।
ज्यादा उम्मीद से ‘लफंगे परिंदे’ न देखी जाए तो यह अच्छी लग सकती है।