निर्देशक समीर कर्णिक की ‘नन्हे जैसलमैर’ सपनों के बारे में थी, ‘हीरोज़’ गर्व के बारे में और उनकी ताजा फिल्म ‘वादा रहा’ आशा के बारे में हैं। इन तीनों फिल्मों में बॉबी देओल और बाल कलाकार द्विज यादव ने अभिनय किया है।
‘वादा रहा’ कहानी है दो मरीजों की। जिसमें से एक वयस्क है और दूसरा बच्चा। इन दोनों के जरिये आशा और निराशा को पेश किया गया है। विचार अच्छा है, लेकिन लेखन ऐसा नहीं है जो गले उतर जाए। इससे फिल्म ठीक से प्रभाव नहीं छोड़ पाती है।
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ड्यूक चावला (बॉबी देओल) के पास हर खुशी है, लेकिन एक दुर्घटना के बाद उसकी जिंदगी बदल जाती है। गर्लफ्रेंड साथ छोड़ देती है और ड्यूक अस्पताल में लाचार पड़ा रहता है। ऐसे में उसकी जिंदगी में रोशन आता है। वह ड्यूक के अंदर से निराशा को निकालता है और जिंदगी के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रवैया अपनाने की सलाह देता है। धीरे-धीरे ड्यूक फिर से चलने-फिरने लायक हो जाता है।
स्क्रीनप्ले फिल्म की कमजोर कड़ी है। कंगना का किरदार ठीक से पेश नहीं किया गया है। बॉबी के एक्सीडेंट होने के बाद कंगना उनकी जिंदगी से निकल जाती है। उनसे मिलने के वे खिलाफ रहती हैं। जब बॉबी ठीक हो जाते हैं तो कंगना वापस बॉबी की जिंदगी में चली आती हैं और वे उन्हें स्वीकार भी लेते हैं।
बॉबी का ठीक होना फिल्मी लगता है। द्विज यादव से जो संवाद बुलवाए गए हैं उन्हें सुन लगता है मानो कोई बच्चा नहीं बल्कि उम्रदराज अनुभवी इंसान बोल रहा हो। संगीत भी इस फिल्म का निराशाजनक पहलू है।
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अभिनय की बात की जाए तो पूरी फिल्म में बॉबी छाए रहे। कंगना का निर्देशक खास उपयोग नहीं कर पाए। द्विज और मोहनीश बहल का अभिनय तारीफ के काबिल है।
कुल मिलाकर ‘वादा रहा’ अच्छी फिल्म का वादा नहीं निभा पाती है।