सी कंपनी : बोर कंपनी

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निर्माता : एकता कपूर, शोभा कपूर
निर्देशक : सचिन यार्डी
संगीत : आनंद राज आनंद, बप्पा लाहिरी
कलाकार : तुषार कपूर, अनुपम खेर, राजपाल यादव, रायमा सेन, मिथुन चक्रवर्ती, (विशेष भूमिकाओं में - महेश भट्ट, एकता कपूर, करण जौहर, संजय दत्त, सेलिना जेटली)
रेटिंग : 1.5/5


निर्देशक सचिन यार्डी ने बॉलीवुड की कुछ पुरानी फिल्म देखी और ‘सी कंपनी’ तैयार कर दी। दो-चार हास्य फिल्में क्या चल गई, सभी हास्य फिल्म बनाने लगे। सचिन ने भी बाजार की हवा को देख हास्य फिल्म बना डाली।

एकता कपूर को भी भ्रम है कि उनके ‘असफल’ भाई तुषार कपूर को दर्शक हास्य भूमिकाओं में पसंद करते हैं, इसलिए वे पैसा लगाने के लिए तैयार हो गईं। वे इस फिल्म में चंद मिनटों के लिए हैं, लेकिन पूरी फिल्म में उनके बारे में बातें होती रहीं। उनके धारावाहिक और उनके कलाकारों के कई किस्से दिखाए गए हैं। मसलन उनके धारावाहिकों में सारे किरदार एक जैसे दिखाई देते हैं और दादा, पिता और बेटे में फर्क करना मुश्किल हो जाता है। उन कलाकारों की उम्र जोड़ी जाए तो वे तीन सौ वर्ष के हो जाते हैं। आए दिन उनके धारावाहिकों में प्लास्टिक सर्जरी होती है। एकता अपने कलाकारों को कम पैसा देती हैं और खूब काम करवाती हैं। शायद निगेटिव पब्लिसिटी के जरिए एकता लोकप्रिय होना चाहती हैं।

एकता के इस गैर जरूरी हिस्से (क्योंकि अधिकांश दर्शकों को इससे कोई मतलब नहीं है) के बाद फिल्म का एक बहुत बड़ा भाग चरित्रों का परिचय देने में बर्बाद हुआ है। बिल्डिंग की छत पर बैठ शराब पीकर फूहड़ संवादों के जरिए दर्शकों को हँसाने के चक्कर में निर्देशक ने बहुत सारे फुटेज बर्बाद किए हैं। इसके बाद जो हिस्सा बचता है वो फिल्म की मुख्य कहानी है।

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अक्षय (तुषार कपूर) एक क्राइम रिपोर्टर है। टीवी चैनल पर काम करता है, फिर भी वो असफल (?) है। उसके पास इतने पैसे नहीं है कि वो अपनी प्रेमिका जो कि डॉन (मिथुन चक्रवर्ती) की बहन (राइमा सेन) है को लेकर दुबई भाग सके। पैसे तो उसकी प्रेमिका भी ला सकती थीं, लेकिन इस बारे में उन्होंने सोचा ही नहीं। मिस्टर जोशी (अनुपम खेर) अपने बेटे से परेशान हैं। इसके पीछे भी कोई ठोस कारण नहीं है। लंबोदर (राजपाल यादव) को आर्थिक तंगी है।

तीनों एक दिन ‘सी कंपनी’ का नाम लेकर जोशी के बेटे को धमकाते हैं और उनकी धमकी असर दिखाती है। इस सफलता से खुश होकर वे बड़े-बड़े लोगों को धमकाते हैं और अंडरवर्ल्ड की दुनिया के रॉबिनहुड बन जाते हैं।

चैनल वाले इस पर रियलिटी शो आरंभ कर देते हैं। जिसमें लोग अपनी समस्याएँ बताते हैं और ‘सी कंपनी’ उनकी समस्या सुलझाती है। ‘सी कंपनी’ के पीछे कौन लोग हैं, ये किसी को भी पता नहीं है।

निर्देशक सचिन यार्डी सिर्फ इसी हिस्से पर फिल्म बनाते तो बेहतर होता, लेकिन उन्होंने बेवजह कहानी को लंबा खींचा। एक भी दृश्य ऐसा नहीं है, जिस पर दिल खोलकर हँसा जाए।

एक गाना सेलिना पर एक संजय दत्त पर फिल्माकर डाल दिए गए। करण जौहर और महेश भट्ट भी बीच में फिल्म की वैल्यू बढ़ाने के लिए नजर आए, लेकिन इनका ठीक से उपयोग नहीं किया गया।

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अभिनय की बात की जाए तो तुषार के अंदर सीमित प्रतिभा है और वे एक स्तर से ऊपर नहीं उठ सकते। राइमा सेन के चंद दृश्य हैं। अनुपम खेर भी एक जैसा अभिनय करने लगे हैं। राजपाल यादव की हँसाने की कोशिशें नाकाम रहीं। मिथुन चक्रवर्ती ने एकता कपूर के धारावाहिकों की तरह बोर किया। सेलिना पर फिल्माया गया गाना ठीक है।

कुल मिलाकर ‘सी कंपनी’ भी उन हास्य फिल्मों की तरह है, जिन्हें देखकर हँसने के बजाय रोना आता है।