सुजॉय घोष की फिल्म 'बदला' स्पैनिश फिल्म 'द इनविज़िबल गेस्ट' से प्रेरित है जिसे थोड़ी-बहुत फेरबदल के साथ हिंदी में बनाया गया है। यह एक थ्रिलर मूवी है जो मुख्यत: दो किरदारों नैना सेठी (तापसी पन्नू) और बादल गुप्ता (अमिताभ बच्चन) के इर्दगिर्द घूमती है।
नैना सेठी पर आरोप है कि उसने होटल के एक कमरे में अपने बॉय फ्रेंड अर्जुन (टोनी ल्यूक) की हत्या कर दी है। वकील के रूप में बादल गुप्ता को नैना चुनती है जिसने 40 साल के करियर में एक भी केस नहीं हारा है। नैना को अपनी बात रखने के लिए बादल तीन घंटे देता है ताकि वह सच की तह में जाकर नैना को बचा सके।
नैना बात बताना शुरू करती है और इस तीन घंटे की बातचीत में कई रहस्य उजागर होते हैं। नैना को कौन फंसा रहा है? अर्जुन की हत्या किसने की है? क्या नैना को बादल बचा पाएगा? जैसी बातों के जवाब मिलते हैं।
फिल्म की मूल कहानी ओरिओल पाउलो ने लिखी है और कहानी में इतना दम है कि फिल्म आपको पूरे समय तक बांध कर रखती है। जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है परत-दर-परत बातें खुलने लगती हैं। कहानी में घुमाव आने लगते हैं। जैसे ही सच सामने आता है वैसे ही उस पर शक होने लगता है कि क्या यह सच है?
फिल्म में एक्शन कम है और बातचीत ज्यादा। इस बातचीत के आधार पर ही बादल गुप्ता सच तक जा पहुंचता है। उसका कहना है कि जो साबित होता है उसे ही कानून सच मानता है।
नैना और बादल दोनों को ही चालाक बताया गया है। फिल्म की शुरुआत में नैना उतना ही बात बताती है जो जरूरी समझती है, लेकिन बादल उसका धीरे-धीरे विश्वास हासिल करता है और बहुत कुछ उगलवा लेता है। बातचीत के जरिये ये अनुमान लगाना कठिन हो जाता है कि नैना को बादल बचा रहा है या फंसा रहा है? कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ?
दर्शक अपने अनुमान लगाते हैं और फिल्म अपनी गति से चलती है। हर किरदार के नजरिये से घटनाक्रमों को दिखाया गया है। दर्शकों को हर समय अलर्ट रहना पड़ता है।
इस तरह की फिल्मों का क्लाइमैक्स बहुत महत्वपूर्ण होता है और बदला में क्लाइमैक्स अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। कहानी को जिस तरह से खत्म किया गया है वो अविश्वसनीय लगता है, लेकिन तब तक आप फिल्म का काफी मजा ले चुके होते हैं। इसी तरह अखबार में छपी फोटो वाली बात भी नकली लगती है। फिल्म का नाम ही बहुत कुछ बता देता है इसलिए इसका नाम और कुछ भी रखा जा सकता था।
फिल्म की ज्यादातर शूटिंग एक कमरे में हुई है और इसके बावजूद सुजॉय ने दर्शकों को बांध कर रखा है। इस तरह की कहानी को परदे पर पेश करना कठिन है, लेकिन सुजॉय ने यह काम खूब किया है। फिल्म का संपादन भी शानदार है।
पिंक के बाद अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नू फिर साथ हैं और दोनों ने कमाल की एक्टिंग की है। अमिताभ कैसे तापसी का विश्वास जीतते हैं ये उनके अभिनय से झलकता है। उनकी संवाद अदायगी काबिल-ए-तारीफ है।
पिंक, मनमर्जियां, मुल्क जैसी फिल्मों के जरिये तापसी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुकी है। इस लिस्ट में अब बदला का नाम भी जुड़ गया है। तापसी ने अपने किरदार को मजूबती के साथ पेश किया है और अमिताभ से कहीं कम साबित नहीं हुईं। अमृता सिंह भी अपना असर छोड़ती हैं। टोनी ल्यूक और मानव कौल का अभिनय भी उम्दा है।
फिल्म में संवाद उम्दा हैं, लेकिन इनकी संख्या कम है। गानों को फिल्म में स्थान नहीं मिला है जो कि सही फैसला है। सिनेमाटोग्राफी और तकनीकी पक्ष मजबूत है। सुजॉय घोष की 'कहानी' के स्तर तक तो 'बदला' नहीं पहुंचती, लेकिन देखने लायक जरूर है।
बैनर : रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट
निर्माता : गौरी खान, सुनीर खेत्रपाल, अक्षय पुरी
निर्देशक : सुजॉय घोष
कलाकार : अमिताभ बच्चन, तापसी पन्नू, टोनी ल्यूक, अमृता सिंह, मानव कौल