हम दो हमारे दो, यह नारा वर्षों पहले भारत में गूंजा था जिसके पीछे उद्देश्य जनसंख्या नियंत्रण था। राजकुमार राव और कृति सेनन अभिनीत फिल्म में 'हम दो हमारे दो' वाली बात को उलट दिया है। फिल्म का हीरो ध्रुव अपने लिए माता-पिता ढूंढता है ताकि वह हीरोइन अन्या से शादी कर सके। अन्या एक दिन बातों-बातों में ध्रुव से कह देती है कि वह उस शख्स से शादी करेगी जिसकी फैमिली हो ताकि वह परिवार का आनंद ले सके। बचपन से अनाथ ध्रुव माता-पिता की खोज में निकल जाता है।
ध्रुव बचपन में ढाबे में काम करता था। ढाबे का मालिक पुरुषोत्तम मिश्रा (परेश रावल) उसे परिवार के महत्व के बारे में बताता रहता था। यहां पर लेखक ने 'परिवार' के महत्व को कुछ ज्यादा ही थोपने की कोशिश की है ताकि जब ध्रुव बड़ा हो तो परिवार के प्रति उसकी चाहत की बात को जस्टिफाई किया जा सके, लेकिन ये सीन कमजोर बने हैं।
ध्रुव को जब अन्या अपनी इच्छा के बारे में बताती है तो वह सच्चाई बताने से क्यों घबराता है? क्यों ऐसे झूठ का सहारा लेता है जिसका सामने आना तय है। ये सारी बातें हास्य पैदा करने के लिए रखी गई हैं, लेकिन बहुत ही सतही तरीके से सब कहा गया है जिससे कहानी में विश्वसनीयता पैदा नहीं होती है।
पुरुषोत्तम को ध्रुव अपना पिता और दीप्ति कश्यप (रत्ना पाठक शाह) को अपनी मां बनने के लिए राजी करता है। ये फौरन इस काम के लिए तैयार भी हो जाते हैं। वर्षों पूर्व पुरुषोत्तम और दीप्ति शादी करना चाहते थे, लेकिन ये संभव नहीं हो पाया। इस तरह से दो प्रेम कहानियों की तुलना भी की गई है कि क्यों एक असफल रही और दूसरी असफल न हो इसके लिए क्या करना चाहिए।
नकली माता-पिता, भाड़े के मेहमान के जरिये काफी हास्य फिल्म में दिखाया जा सकता था, लेकिन लेखक इसमें चूक गए। आइडिया अच्छा था, लेकिन स्क्रिप्ट साथ नहीं दे पाई। स्क्रिप्ट की दरारों को कुछ अच्छे हास्य सीन और दमदार एक्टिंग के सहारे भरने की कोशिश की गई है, लेकिन इसमें बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिल पाई है।
निर्देशक अभिषेक जैन ने फिल्म का मूड हल्का-फुल्का रखा है और दर्शकों से इस बात की उम्मीद की गई है कि वे स्क्रिप्ट की कमियों पर ध्यान न दे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। यदि दमदार एक्टर्स का सहारा न मिला हो पाता तो फिल्म की स्थिति और खराब हो जाती।
राजकुमार राव के लिए यह रोल निभाना आसान था। उन्होंने अपनी तरफ से भी बहुत कुछ अपने किरदार को दिया है। कृति सेनन लगातार अपने आपको इम्प्रूव करती जा रही हैं। मिमी के बाद वे यहां फिर अपनी एक्टिंग से प्रभावित करती हैं। परेश रावल और रत्ना पाठक शाह के रोल ठीक से नहीं लिखे गए हैं, लेकिन ये दोनों कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया है। अपारशक्ति खुराना हर बार हीरो के दोस्त के रूप में नजर आते हैं, लेकिन हर बार वे विविधता से अपने किरदार को निभाते हैं। अन्य कलाकारों ने भी दमदार अभिनय किया है।
कुल मिलाकर 'हम दो हमारे दो' में अच्छी फिल्म बनने की गुंजाइश थी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।