वर्षों पहले लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा तो उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना कर न केवल विपक्ष बल्कि अपनी पार्टी के नेताओं को भी चौंका दिया था। राबड़ी में राजनीति सूझबूझ की कमी और अनुभव शून्य था। इस फैसले और राबड़ी देवी की खूब खिल्ली उड़ाई गई थी, लेकिन राबड़ी ने उम्मीद से बेहतर काम किया। इसी घटना को आधार बना कर महारानी सीरिज बनाई गई है।
सीरिज की नायिका रानी (हुमा कुरैशी) को उसके पति और बिहार के मुख्यमंत्री भीमा भारती (सोहम शाह) तब अपनी जगह मुख्यमंत्री बना देते हैं जब उन पर जान लेवा हमला होता है और लकवे का अटैक आ जाता है। अनपढ़, घर की चहार दीवारी से कभी बाहर नहीं निकली रानी पर घर के बजाय बिहार को संभालने की जिम्मेदारी आ जाती है। राजनीतिक दांवपेंच से अंजान रानी का पहले तो खूब मजाक बनता है। शपथ ग्रहण समारोह में गड़बड़। मंत्रियों के विभाग के बंटवारे में रानी का पूछना कि रेल मंत्री कौन बन रहा है, जैसे सीन रानी की अज्ञानता को दर्शाते हैं। धीरे-धीरे रानी राजनीति के खेल की चालों से वाकिफ होती है और एक बड़े घोटाले के खिलाफ जांच करवाती है जिससे हड़कंप मच जाता है। कई कमियों पर रानी का ईमानदारी वाला गुण भारी पड़ता है। अपनी तरह से सरकार चलाने के कारण वह कई लोगों की आंखों की किरकिरी बन जाती है और उसकी सरकार गिराने की कयावद शुरू हो जाती है।
सुभाष कपूर ने इस पॉलिटिकल ड्रामा को लिखा है। राजनीतिक उठापटक, सरकार को गिराने के षड्यंत्र, धोखेबाजी, मौकापरस्ती, भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार जैसी बातों को हम पहले भी कुछ पॉलिटिकल ड्रामा में देख चुके हैं। इसके बावजूद यह सीरिज अच्छी लगती है। सुभाष कपूर का लेखन बहुत मजबूत है और नेताओं द्वारा दिए जाने वाले भाषण उन्होंने अच्छे लिखे हैं। सही समय में आने वाले उतार-चढ़ाव उत्सुकता को बरकरार रखते हैं।
सीरिज बिहार की राजनीति की गहराई से पड़ताल करती है। आजादी के वर्षों बाद भी अगड़ों और पिछड़ों के बीच खाई बंटी हुई है और इसका फायदा राजनेता खूब उठा रहे हैं। सीरिज में दिखाया गया है कि अगड़ी जाति का कांस्टेबल पिछड़ी जाति के ऑफिसर के साथ खाना नहीं खाता।
अगड़ों और पिछड़ों के बीच की खाई को और गहरा करने के लिए राजनेताओं ने इनके वर्ग के नेता खड़े कर दिए हैं। उन्हें बंदूक और पैसों से लाद दिया है और इनको हथियार बना कर वे अपने राजनीतिक स्वार्थ पूरे करते हैं। सरकार चलाने के लिए जरूरी हथकंडे, भ्रष्टाचार की चेन, नेताओं की लंपटता, कुर्सी के इर्दगिर्द गिद्ध की तरह मंडराते नेता, ब्यूरोक्रेसी, पुलिस पर दबाव, आम आदमी का हिस्सा डकारने वाले नेता और अफसर जैसी तमाम बातें इस सीरिज में समेटी गई हैं जो बिहार राजनीति का चेहरा लोगों के सामने लाती है।
सीरिज के शुरुआती चार एपिसोड शानदार हैं, लेकिन आगामी कुछ एपिसोड स्पीड को कम करते हैं और रूटीन बातें नजर आती हैं। अंत में फिर यह सीरिज स्पीड पकड़ती है। अनपढ़ और अनगढ़ रानी का तुरंत राजनीति का चतुर खिलाड़ी बनना कुछ लोगों को अखर सकता है, क्योंकि मेकर्स ने इस पर ज्यादा फुटेज नहीं खर्च किए हैं। लेकिन इस बात को इग्नोर किया जा सकता है।
निर्देशक करण शर्मा का काम अच्छा है। उन्होंने कलाकारों से बेहतरीन अभिनय करवाया है, लेकिन एडिटर से वे वैसा काम नहीं निकाल पाए। इस सीरिज को आसानी से डेढ़ घटा छोटा किया जा सकता था इससे यह ज्यादा चुस्त नजर आती। कुछ प्रसंगों को हटाया जा सकता था।
हुमा कुरैशी को इससे बढ़िया अवसर पहले कभी नहीं मिला। इसको उन्होंने खूब भुनाया। हालांकि उनकी रेंज बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन उनका अभिनय प्रभावित करता है। हुमा के अलावा ज्यादा परिचित चेहरे नहीं हैं, लेकिन सभी का काम बढ़िया है। भीमा भारती के रूप में सोहम शाह, नवीन कुमार बने अमित सियाल, प्रमोद पाठक (मिश्राजी), कनी कस्तूरी (कावेरी), इनामउलहक (परवेज आलम), विनीत कुमार (गौरी शंकर पांडे) फुल फॉर्म में नजर आए। इन्होंने न केवल अपने किरदारों को बारीकी से पकड़ा, बल्कि उनको जीवंत कर दिया। कास्टिंग डायरेक्टर ने किरदारों के लिए सटीक कलाकारों का चयन किया।
महारानी भारतीय राजनीति का वास्तविक चेहरा दिखाती है और इसको वक्त दिया जा सकता है।