निर्देशक रितेश बत्रा ने अपनी पहली फिल्म में दिखाया था कि किस तरह से 'लंचबॉक्स' के जरिये रिश्ते बन जाते हैं। 'फोटोग्राफ' में उन्होंने फोटो के जरिये रिश्तों को जोड़ा है। फिल्म 'लंचबॉक्स' में भोजन की महक थी, लेकिन 'फोटोग्राफ' महज एक प्लेन फिल्म है। कहते हैं कि एक फोटो हजार शब्द कहता है, लेकिन यह बात 'फोटोग्राफ' में नदारद है।
रफी (नवाजुद्दीन सिद्दकी) गेटवे ऑफ इंडिया देखने आए लोगों से पैसे लेकर फोटो खींचता है। मिलोनी (सान्या मल्होत्रा) का एक दिन वह फोटो खींचता है, लेकिन मिलोनी पैसे दिए और फोटो लिए बिना चली जाती है। रफी की दादी उसकी शादी के पीछे पड़ी है। मिलोनी का फोटो रफी अपनी दादी को गांव में यह लिख कर भेज देता है कि यह लड़की उसने ढूंढ ली है जिसका नाम नूरी है।
यह खबर मिलते ही दादी फौरन मुंबई चली आती है। मुसीबत में फंसा रफी, मिलोनी को राजी करता है कि वह उसकी दादी से मिल ले। क्या दादी असलियत जान जाती है? क्या रफी और मिलोनी सचमुच एक-दूसरे को चाहने लगते हैं? जैसे सवालों के जवाबों के साथ फिल्म खत्म होती है।
इस कहानी को रितेश बत्रा ने अपने ही अंदाज में पेश किया है। उन्होंने मुंबई को एक अलग ही तरह से स्क्रीन पर दिखाया है। रफी और मिलोनी के बीच के शैक्षणिक और आर्थिक अंतर को उन्होंने दिखाया है। यह भी दर्शाया है कि मिलोनी को अपने परिवार से वो प्यार नहीं मिलता जो रफी और उसकी दादी से मिलता है, लेकिन कहानी की कमजोरियां समय-समय पर सतह पर आकर फिल्म की खूबियों को साफ कर देती है।
मिलोनी को बेहद कम बोलने वाली और शर्मिली लड़की दर्शाया है। अहम सवाल यह उठता है कि रफी के कहने पर मिलोनी उसकी दादी से मिलने के लिए राजी ही क्यों हो जाती है? क्यों वह रफी की प्रेमिका बनने का ढोंग करती है? रफी और उसकी उम्र में भी काफी अंतर नजर आता है। मिलोनी के माता-पिता उससे बातें भले ही कम करते हैं, लेकिन उस पर किसी किस्म का दबाव भी नजर नहीं आता। आखिर मिलोनी ऐसा व्यवहार क्यों करती है? ये सारे प्रश्न फिल्म देखते समय परेशान करते हैं।
रितेश बत्रा ने अपने निर्देशकीय कौशल से इन बातों को छिपाने की कोशिश की है। उन्होंने रियल लोकेशन पर फिल्म शूट की है जिसका प्रभाव फिल्म पर नजर भी आता है। बैकग्राउंड म्युजिक का बहुत कम उपयोग किया है जो फिल्म को खास बनाता है। मिलोनी और रफी के किरदार पर भी खासी मेहनत की है। हालांकि कुछ शॉट्स बहुत लंबे हैं और कुछ गैर जरूरी भी। फिल्म की अवधि दो घंटे से भी कम है, लेकिन फिल्म इतनी धीमी गति से आगे बढ़ती है कि यह अवधि भी ज्यादा लगती है।
नवाजुद्दीन सिद्दीकी अपनी भूमिका में अंदर तक नहीं उतरे। उनके अभिनय की जो अदा है वही की वही रफी के किरदार में उन्होंने दोहरा दी है। सान्या मल्होत्रा ने एक कम बोलने वाली और अपने में खोए रहने वाली लड़की की भूमिका अच्छे से निभाई है। दादी के रूप में फार्रूख जाफर का अभिनय बेहतरीन है, हालांकि निर्देशक ने उनका उपयोग कुछ ज्यादा ही कर लिया है।
कुल मिलाकर लंचबॉक्स वाला जादू फोटोग्राफ में नजर नहीं आता।
निर्देशक : रितेश बत्रा
कलाकार : नवाजुद्दीन सिद्दीकी, सान्या मल्होत्रा, फार्रूख जाफर, विजय राज