रुसलान फिल्म समीक्षा: आयुष शर्मा की एक्टिंग और घिसीपिटी स्क्रिप्ट को झेलना नहीं है आसान

सोमवार, 29 अप्रैल 2024 (12:27 IST)
आयुष शर्मा पिछले 6 सालों से फिल्म इंडस्ट्री में पैर जमाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अभी तक छाप नहीं छोड़ पाए हैं। कंधे पर बड़े सितारे का हाथ हो तो मौके लगातार मिलते रहते हैं। 2018 में फिल्म 'लवरात्रि' के जरिये रोमांटिक हीरो के रूप में आयुष ने शुरुआत की थी, लेकिन फिल्म दर्शकों का प्यार नहीं पा सकी। इसी बीच बॉलीवुड में एक्शन फिल्में धूम मचा ली तो फूल छोड़ कर आयुष ने बंदूक थाम ली और 'अंतिम' (2021) में नजर आए। यह फिल्म भी कोई कमाल नहीं दिखा सकी, लेकिन आयुष ने हिम्मत नहीं हारी। बल्ले-शल्ले बना कर 'रुसलान' मूवी से फिर आ धमके। इन दिनों तमाम सितारे फिल्मों में अंडरकवर एजेंट या रॉ के ऑफिस में काम करते दिखाई देते हैं तो आयुष के लिए भी इसी तरह का रोल डिजाइन कर दिया गया। बात यहां तक भी ठीक थी, लेकिन दो बड़ी गलतियां हो गईं।
 
पहली गलती तो ये कि ये रोल इस तरह लिखा गया है मानो शाहरुख या सलमान खान करने जा रहे हों। अब सितारों की इमेज होती है। लार्जर दैन लाइफ किरदार उनको सूट करते हैं। ऐसे रोल में आयुष शर्मा को देख पाना बहुत मुश्किल हो जाता है चाहे वे कितना भी जोर लगा लें क्योंकि वे स्टार नहीं हैं। एक्टिंग अच्छी हो तो भी दर्शक यह बात गले के नीचे उतार ले, लेकिन यहां भी आयुष का हाथ तंग है। वे सीन के हिसाब से चेहरे पर भाव नहीं ला पाते। इतना भारी रोल का वजन आयुष से उठाते नहीं बना।  
 
दूसरी, लेखकों ने कर दी। शिवा ने घिसी-पिटी कहानी फिल्म के प्रोड्यूसर-डायरेक्टर को टिका दी। उस पर युनूस सजवाल ने ऐसा स्क्रीनप्ले लिखा कि हैरत होती है कि युनूस ने ऐसा काम कैसे कर डाला जिसके नाम पर कई हिट फिल्में दर्ज हैं। सीन ऐसे लिखे हैं जो हजारों बार देखे हुए से लगते हैं। कोई रोमांच नहीं। आगे क्या होने वाला है दर्शक आंख मूंद कर बता दें। सब कुछ सपाट सा लगता है। कोई उतार-चढ़ाव नहीं। रुसलान जो चाहता है वो कर लेता है। उसे कोई परेशानी नहीं होती। फिल्म के अन्य कैरेक्टर्स भी दिशाहीन से नजर आते हैं। 
 
हीरो में स्टार मटेरियल नहीं, स्क्रिप्ट में जान नहीं, तो निर्देशक करण ललित भूटानी के तो हाथ-पैर बंध गए। जितना वे कर सकते थे उतना भी उनसे नहीं हो पाया। वे भी कहानी को कहने में इधर-उधर भटक गए। अन्य डिपार्टमेंट से अच्छा काम नहीं निकलवा सके, लिहाजा गाने से लेकर तो संवाद तक औसत से नीचे दर्जे के हैं।
 
जगपति बाबू जैसे काबिल अदाकार ने जाने क्या सोच कर इस फिल्म के लिए हां कहा। ये सवाल ज्यादा परेशान करता है। रुसलान फिल्म में ऐसी कोई बात नजर नहीं आती जिसके लिए टिकट खरीदा जाए। 

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