हिंदी में बनने वाली सस्पेंस फिल्मों को देख अब बच्चा भी कह सकता है कि जिस पर कैमरा बार-बार घुमाया जाता है, जिसकी ओर सुई का इशारा बताया जाता है, पक्की बात है कि वो फिल्म के अंत में कातिल या अपराधी नहीं निकलेगा। अब यह चुका हुआ फॉर्मूला है, लेकिन 'सायलेंस... कैन यू हिअर इट?' में इस फॉर्मूले का हद से ज्यादा उपयोग किया गया है।
एक कत्ल हुआ है और कातिल को ढूंढने की जवाबदारी एक पुलिस ऑफिसर को सौंपी गई है। वो तफ्तीश कर रहा है और इधर फिल्म के निर्देशक बार-बार कहानी के एक किरदार पर कैमरा घूमा रहे हैं। ऐसा कर वे खुद एक राज तो खोल ही देते हैं कि यह शख्स कातिल नहीं है।
'सायलेंस... कैन यू हिअर इट?' टीवी पर आने वाले शो 'क्राइम पेट्रोल' का एक बड़ा एपिसोड सा लगता है। मसाला एक घंटे का ही था, जिसे सवा दो घंटे तक खींचा गया है। लिहाजा कंटेंट के अभाव में फिल्म बीच-बीच में आउटर में खड़ी ट्रेन-सी लगती है। दर्शकों को महसूस होता है कि इधर-उधर की बातें कर उन्हें बहलाया जा रहा है।
एक युवा लड़की की हत्या हो गई है। उसके पिता प्रभावशाली व्यक्ति हैं। वे चाहते हैं कि मामले की जांच एसीपी अविनाश वर्मा (मनोज बाजपेयी) करे जो कि नारकोटिक्स डिवीज़न में काम करता है। अविनाश मुश्किल से इस केस को सुलझाने के लिए राजी होता है। वह अपनी टीम बनाता है और अपराधी तक पहुंचने की कोशिश करता है।
फिल्म को लिखा और निर्देशित किया है अबन भरूचा देओहंस ने। वे शानदार थ्रिलर फिल्म तो नहीं बना पाए हैं, लेकिन कुछ हद तक दर्शकों को बांधने में जरूर सफल रहे हैं। फिल्म शुरुआत में पकड़ बनाती है, बीच में लड़खड़ाती है और क्लाइमैक्स में धड़ाम हो जाती है। फिल्म का अंत बचकाना-सा लगता है। जब कातिल सामने आता है तो उसे देख लगता ही नहीं कि उसके पास इतनी बड़ी वजह है कि वह किसी का कत्ल कर दे।
फिल्म में मनोज बाजपेयी लीड रोल में हैं और सबसे बड़ा नाम है। मनोज के लिए इस तरह की भूमिका निभाना बाएं हाथ का खेल है, लेकिन उनका अभिनय उनके स्तर से नीचे है। अजीब सी विग भी उनको देखना भी अटपटा लगता है। एमएलए रवि खन्ना के रोल में अर्जुन माथुर ने ओवरएक्टिंग की है। प्राची देसाई को ज्यादा मौके नहीं मिले।
कुल मिलाकर 'सायलेंस... कैन यू हिअर इट?' को तब समय दिया जा सकता है, जब करने को कुछ नहीं हो।