थलाइवी फिल्म एक्ट्रेस और राजनेता जयललिता पर आधारित बायोग्राफिकल ड्रामा फिल्म है। जयललिता तमिलनाडु फिल्म इंडस्ट्री और राजनीति का बड़ा नाम थी। उनके नाम पर कई सुपरहिट फिल्म दर्ज हैं और वे इस राज्य की मुख्यमंत्री भी बनी। जयललिता की जिंदगी में एमजी रामचंद्रन का अहम योगदान रहा। फिल्मों में एमजीआर के साथ जोड़ी बनाकर जयललिता ने सफलता की सीढ़ियां चढ़ी तो राजनीति के अखाड़े में भी उन्हीं के सहारे उतरी। राजनीति में करुणानिधि-जयललिता की दुश्मनी जगजाहिर रही। फिल्म में इन लोगों के नाम थोड़े बदल दिए गए हैं, जयललिता को जया तो एमजीआर को एमजेआर कह कर पुकारा गया है। शायद कानून से बचने के लिए पतली गली का सहारा लिया गया हो।
कहने को तो यह बायोग्राफिकल फिल्म है, लेकिन निर्देशक ए.एल. विजय ने इसे ड्रामैटिक तरीके से बनाया है। जिस तरह से कमर्शियल फिल्मों के हीरो और विलेन बात करते हैं उसी अंदाज में उन्होंने किरदारों को पेश किया है। वे जोरदार भाव-भंगिमाएं बनाते हुए संवाद बोलते हैं। शायद निर्देशक ने उन लोगों का ध्यान रखा है जो जयललिता को 'अम्मा' मानते थे।
फिल्म में कितनी बातें सही हैं और कितनी गलत, यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन यह उम्मीद की जाती है कि ज्यादातर बातें/किस्सें सच के नजदीक ही होंगे। फिल्म देख कर जयललिता की एक जिद्दी, दबंग और स्भाविभानी स्त्री की छवि बनती है जो किसी से नहीं घबराती थीं और अपने लक्ष्यों तक पहुंचने पर ही दम लेती थी।
जयललिता ने जब फिल्मों में कदम रखा था तब एमजीआर सुपरस्टार थे। दोनों में उम्र का बड़ा फासला था। तब भी एमजीआर को जयललिता कुछ नहीं समझती थी। जब एमजीआर के साथ साइन की गई पहली फिल्म से जयललिता को निकाला गया तो उन्होंने एमजीआर के प्रतिद्वंद्वी शिवाजी गणेशन के साथ फिल्म कर ली, जिससे घबराकर एमजीआर ने फिर जयललिता के साथ फिल्म करना शुरू कर दिया।
एमजीआर और जयललिता एक-दूजे को पसंद करने लगे थे। एमजीआर विवाहित थे और अपनी सार्वजनिक छवि को लेकर बेहद सजग। इसलिए वे जयललिता को छुप कर मिलना पसंद करते थे। यह बात जयललिता को पसंद नहीं आई। वे चाहती थीं कि मिलना हो तो खुलेआम मिलो वरना मत मिलो। इस बात पर दोनों वर्षों तक नहीं मिले, लेकिन दोनों के प्यार में जरा भी कमी नहीं आई। दोनों के बीच एक अलग ही रिश्ता था जिसमें एक-दूसरे के लिए सम्मान भी था।
एमजीआर राजनीति में चले गए। जब उन्हें विरोधियों से निपटने के लिए भरोसेमंद साथी की जरूरत पड़ी तो जयललिता राजनीति पसंद न करने के बावजूद इस क्षेत्र में चली आईं। इससे न केवल एमजीआर मजबूत हुए बल्कि उनके नहीं रहने के बाद भी जयललिता ने एमजीआर के परिवार और पार्टी के विरोध के बाद भी मुख्यमंत्री बनने में सफलता पाई। विरोधियों ने विधानसभा भवन में साड़ी तक खींच डाली थी, लेकिन वे नहीं घबराईं। इन सभी बातों को फिल्म में प्रमुखता के साथ दिखाया गया है।
आधी से ज्यादा फिल्म में एमजीआर का किरदार हावी है और दर्शकों को यह चेक करना पड़ता है कि वे एमजीआर की बायोपिक देख रहे हैं या जयललिता की। दरअसल जयललिता, एमजीआर की परछाई लगती थीं, लेकिन सही मायनों में वे उनकी ताकत थी। चूंकि एमजीआर जब तक रहे, जयललिता बैकग्राउंड में नजर आईं इसलिए फिल्म देखते समय महसूस होता है कि एमजीआर का किरदार भारी पड़ रहा है।
फिल्म यह दर्शाने में सफल रही कि कितनी ही मुसीबतें आईं, जयललिता ने कभी हार नहीं मानी। दृढ़ निश्चय के साथ सामना किया और विजय पाई। उनके लिए एमजीआर का प्यार और खुद पर विश्वास सबसे बड़ी ताकत था।
कुछ बातें जो होनी थीं, नहीं हैं। मसलन जयललिता के परिवार के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी गई। जयललिता का राजनीति सफर भी थोड़ा अधूरा-सा लगता है। कहीं-कहीं फिल्म एकतरफा भी हो जाती है।
अच्छी बात ये है कि कमियों के बावजूद भी फिल्म में रूचि बनी रहती है और आप लगातार आगे जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। खासतौर पर जिनकी राजनीति में रूचि है उन्हें फिल्म बेहतर लगेगी।
निर्देशक विजय ने जयललिता को एक 'हीरो' की तरह पेश किया है। उनका प्रस्तुतिकरण थोड़ा 'मसालेदार' है। वे ज्यादा गहराई में नहीं उतरे हैं और उन्होंने दमदार घटनाओं को जोर दे कर पेश किया है। जयललिता-एमजीआर के रिश्ते को वे उभारने में सफल रहे हैं। हिंदी डायलॉग रजत अरोरा ने लिखे हैं और उन्होंने कुछ अच्छे संवाद लिखे हैं, जैसे- 'भगवान किसी एक का नहीं हो सकता।'
एक्टिंग के मामले में भी फिल्म का स्तर ऊंचा है। जयललिता के रोल के साथ कंगना रनौट ने पूरी तरह न्याय किया है। जयललिता के किरदार की आक्रामकता, अहं और स्वाभिमान को उन्होंने अपने अभिनय से सामने लाकर रख दिया है। एमजीआर के रूप में अरविंद स्वामी ने कमाल की एक्टिंग की है। नासर को ज्यादा मौका तो नहीं मिला है, लेकिन वे फिल्म में अपना गहरा असर छोड़ते हैं। सपोर्टिंग कास्ट मजबूत है।
भले ही जयललिता की हर बात को थलाइवी में पेश ना किया गया हो, लेकिन जयललिता की एक मजबूत महिला की छवि को पेश करने में यह फिल्म कामयाब है।