दोस्ताना : कुछ खट्टा, कुछ मीठा

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निर्माता : करण जौहर, हीरू जौहर
निर्देशक : तरुण मनसुखानी
संगीत : विशाल-शेखर
कलाकार : अभिषेक बच्चन, प्रियंका चोपड़ा, जॉन अब्राहम, बॉबी देओल (विशेष भूमिका), शिल्पा शेट्टी (विशेष भूमिका), किरण खे


करण जौहर द्वारा निर्मित फिल्म ‘कल हो ना हो’ में ‘कांताबेन’ वाली कहानी साइड में चलती रहती है। हमेशा कांताबेन को शाहरुख-सैफ ऐसी परिस्थिति में मिलते हैं कि वह उन्हें ‘गे’ समझती है। दर्शकों ने इस कहानी का भरपूर मजा लिया था। इस बात को करण जौहर और निर्देशक तरुण मनसुखानी ने ताड़ लिया और ‘गे’ वाली कहानी को मुख्य आधार बनाकर ‘दोस्ताना’ में पेश किया।

मियामी में इसे फिल्माया गया है। समीर (अभिषेक बच्चन) एक नर्स है तो कुणाल (जॉन अब्राहम) फोटोग्राफर। दोनों को एक घर की तलाश है। जो घर उन्हें मिलता है, उस घर में ‍नेहा (प्रियंका चोपड़ा) भी रहती है। एक लड़की के होते हुए घर दो नौजवान लड़कों को कैसे दिया जा सकता है?

दोनों तिकड़म भिड़ाते हैं और अपने आपको ‘गे’ घोषित कर देते हैं। चूँकि दोनों लड़के ‘गे’ हैं, इसलिए नेहा को कोई फर्क नहीं पड़ता। वह आराम से कम कपड़ों में उनके साथ घूमती-फिरती है। नेहा अपने बॉस अभिमन्यु (बॉबी देओल) को चाहती है और दोनों शादी करना चाहते हैं। नेहा को समीर और कुणाल भी चाहते हैं, लेकिन वे ‘गे’ का नाटक कर फँस गए हैं। वे मिलकर नेहा और अभिमन्यु में दूरी पैदा करते हैं। कैसे उनकी पोल खुलती है और नेहा किसको मिलती है, यह फिल्म का सार है।

निर्देशक तरुण ने कई ऐसे दृश्य गढ़े हैं जो मजेदार बन पड़े हैं। जैसे- जब समीर की माँ (किरण खेर) को पता चलता है कि उसका बेटा ‘गे’ है तो पहले तो वे बेहद नाराज होती हैं। बाद में वे कुणाल को स्वीकार लेती हैं। रीति-रिवाज से उसका स्वागत करती हैं, लेकिन यह फैसला नहीं कर पाती कि वह उसे बहू माने या दामाद। आशीर्वाद देते-देते वह रुक जाती है क्योंकि संतान का तो कोई सवाल ही नहीं।

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एम (बोमन ईरानी) वाला दृश्य भी अच्छा है। वह खुद एक गे है और जब उसे पता चलता है कि नेहा दो गे के साथ रह रही है, तो वह मिलने चले आता है। इसके बाद कई हास्यास्पद परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। फिल्म की जान है नेहा, समीर और कुणाल की बातचीत वाला वह दृश्य जब नेहा को पता चलता है कि दोनों उसके और अभिमन्यु के रिश्ते के बीच दरार डालने का काम कर रहे हैं। इस बात से वह यह अंदाजा लगाती है कि वे भी अभिमन्यु को चाहने लगे हैं।

फिल्म के नकारात्मक पहलुओं की बात की जाए। फिल्म की कहानी कमजोर है और ऐसा लगता है कि जैसे एक लंबा चुटकुला देख रहे हो। जहाँ एक ओर उम्दा दृश्य हैं तो दूसरी ओर बेहद बोर दृश्य भी हैं। ये सपाट सड़क पर स्पीड ब्रेकर का काम करते हैं। फिल्म अच्छे और बुरे दृश्यों के बीच झूलती रहती है। ऐसा लगता है कि दृश्यों के मुताबिक कहानी गढ़ी गई है। बॉबी देओल के आने के बाद फिल्म ठहर-सी जाती है और इसकी लंबाई अखरने लगती है। फिल्म में ढेर सारे अँग्रेजी संवाद हैं जो शायद आम दर्शक के पल्ले नहीं पड़ें।

अभिषेक बच्चन ने बेहतरीन अभिनय किया है। कब चरि‍त्र को नजाकत देना है और कब आक्रामक होना है, इस बात को उन्होंने बारीकी से पकड़ा है। जॉन अब्राहम फिल्म के अधिकांश हिस्से में अधनंगे नजर आए। अभिनय के मामले में वे कमजोर रहे। हालाँकि अभिषेक के साथ उनकी कैमेस्ट्री अच्छी जमी है, लेकिन यदि कोई सशक्त अभिनेता होता तो बहुत फर्क पड़ जाता।

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प्रियंका चोपड़ा खूबसूरती और अभिनय के मामले में अव्वल रहीं। कपड़ों से भी उन्होंने परहेज किया। बॉबी देओल ने ऐसे रोल कई फिल्मों में निभाए हैं, एक बार और सही। पंजाबी माँ के रूप में किरण खेर एक बार फिर जमीं। बोमन ईरानी और सुष्मिता मुखर्जी ने अपने उम्दा अभिनय के जरिए दर्शकों को गुदगुदाया।

फिल्म के कुछ गाने ‘जाने क्यों दिल जानता है’, ‘कुछ कम’ और ‘खबर नहीं’ उम्दा बन पड़े हैं। कास्ट्यूम्स, फोटोग्राफी और लोकेशन उम्दा हैं।

कुल मिलाकर ‘दोस्ताना’ का‍ विषय नया है, लेकिन कहानी पुरानी है। इसे परंपरा और रूढि़वादी दर्शक बिलकुल भी पसंद नहीं करेंगे, लेकिन युवाओं को इसमें हँसने का मसाला मिल सकता है।

रेटिंग : 2.5/5
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