अक्षय कुमार (हाउसफुल, खट्टा मीठा, एक्शन रिप्ले, तीस मार खाँ) पिछले वर्ष से अक्षय कुमार की फिल्में पिटने का क्रम इस वर्ष भी जारी रहा। खट्टा मीठा ने मुँह कड़वा कर दिया तो एक्शन रिप्ले को लोगों ने फास्ट फारवर्ड कर दिया। हाउसफुल की सफलता में मजा नहीं आया। असफल फिल्मों की बात करो तो अक्की, सचिन तेंडुलकर का उदाहरण सामने रख देते हैं। कहते हैं कि क्या सचिन जीरो पर आउट नहीं होते। भैया अक्की, याद नहीं पड़ता कि सचिन ने लगातार इतनी खराब बैटिंग कभी की हो। अक्षय की अब सारी उम्मीद तीस मार खाँ पर टिकी हुई है।
सलमान खान (दबंग, वीर) जो लोग कहते थे कि सलमान का दौर बीत चुका है, उन्हें ‘दबंग’ की सफलता ने मुँह तोड़ जवाब दे दिया। चुलबुल पांडे के रूप में उन्होंने ऐसी दबंगता दिखाई कि लोग दीवाने हो गए। ‘दबंग’ जैसी फिल्म सिर्फ सलमान खान ही चला सकते हैं। ‘वीर’ की असफलता ने सलमान का इस वर्ष का स्कोर 1-1 रखा। ‘वीर’ के पिटने का उन्हें अफसोस है क्योंकि इसकी कहानी सल्लू ने ही लिखी है। कुछ फिल्मों में उन्होंने छोटे-मोटे रोल भी किए और ‘बिग बॉस’ बनकर छोटे परदे पर भी राज किया। छा गए सल्लू।
अभिषेक बच्चन (रावण, खेलें हम जी जान से) पहले पीठ पीछे कहने वाले अब मुँह पर बोलने लगे हैं कि यदि छोटे बच्चन बिग बी के बेटे नहीं होते तो कब के फिल्म इंडस्ट्री से रिटायर हो गए होते। जूनियर बच्चन की फिल्में औंधे मुँह गिर रही हैं। ‘रावण’ को न मणिरत्नम बचा पाए और न ही ऐश्वर्या। ‘खेलें हम जी जान से’ के तो पहले हफ्ते में ही शो कैंसल करने की नौबत आन पड़ी। अकेले के दम पर फिल्म चला पाने का दम अभी भी जूनियर बच्चन के कंधों में नहीं है।
अमिताभ बच्चन (रण, तीन पत्ती) रण और तीन पत्ती देख तो बिग-बी के प्रशंसक भी पूछने लगे कि आखिर उन्हें इस तरह की फिल्मों को करने की क्या जरूरत है। ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के जरिये जरूर अमिताभ छोटे परदे पर छाए रहे। विज्ञापन, ब्लॉग और ट्विटर के जरिये उन्होंने अपने आपको चर्चा में बनाए रखा। अच्छी फिल्मों में अमिताभ को देखने की ख्वाहिश क्या वे अगले वर्ष पूरी करेंगे?
जॉन अब्राहम (आशाएँ, झूठा ही सही) जॉन ने अपनी इमेज ऐसी बना रखी है मानो वे सुपरसितारे हो, लेकिन हकीकत कुछ और यही बयाँ करती हैं। हमारी न माने तो आशाएँ और झूठा ही सही के निर्माता और वितरकों से पूछ लीजिए। इन फिल्मों ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। आशाएँ निराशा में बदल गईं और झूठा ही सही ने जॉन के स्टारडम की सच्ची तस्वीर पेश कर दी।
अजय देवगन (तीन पत्ती, अतिथि तुम कब जाओगे?, राजनीति, वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई, आक्रोश, गोलमाल3, टूनपुर का सुपरहीरो) नि:संदेह इस वर्ष के सुपरसितारे हैं अजय देवगन। अलग-अलग फिल्मों में अलग-अलग रोल कर जहाँ उन्होंने अपनी अभिनय क्षमता साबित की, तो दूसरी ओर इन फिल्मों की सफलता ने उन्हें दमदार स्टार साबित किया। गोलमाल 3 और अतिथि तुम कब जाओगे में उन्होंने हँसाया। राजनीति में वे एक कुशल खिलाड़ी साबित हुए और वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई में हाजी मस्तान के चरित्र को उन्होंने जीवंत किया। बिना शोर-शराबे के अजय ने अपनी कामयाबी का डंका खूब बजाया।
रणबीर कपूर (राजनीति, अंजाना अंजानी) भविष्य के सुपरस्टार रणबीर कपूर ने ‘राजनीति’ में अपनी इमेज से हटकर भूमिका निभाई। तमाम कलाकारों की भीड़ में वे अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रहे। ‘अंजाना अंजानी’ के पिटने का उन्हें गम है, लेकिन फिल्म ही इतनी खराब थी कि चार रणबीर भी इसे नहीं बचा सकते थे।
शाहिद कपूर (चांस पे डांस, पाठशाला, बदमाश कंपनी, मिलेंगे मिलेंगे) पिछले वर्ष ‘कमीनापन’ दिखाने वाले शाहिद कपूर इस वर्ष बुझे-बुझे से नजर आए। अध्यापक बने, डांस सिखाया, बदमाश बनकर कंपनी चलाई और मिलेंगे-मिलेंगे में एक्स गर्लफ्रेंड करीना के साथ कमर मटकाई, लेकिन नतीजा सिफर रहा। घबराकर उन्होंने पापा की अँगुली थाम ली है, जो शाहिद मियाँ को लेकर ‘मौसम’ बना रहे हैं।
शाहरुख खान (दूल्हा मिल गया, माई नेम इज खान) ‘माई नेम इज खान’ ने देश-विदेश में सफलता के झंडे फहराए और किंग खान की बादशाहत को कायम रखा। वैसे दूसरे अभिनेता उनसे ज्यादा पीछे नहीं हैं। अन्य मामलों में वे इतने व्यस्त हैं कि कम फिल्म कर पा रहे हैं और इसका नतीजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है। 2011 उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित होगा क्योंकि ‘रॉ-वन’ और ‘डॉन 2’ जैसी उनकी बड़ी फिल्में रिलीज होंगी।
इमरान हाशमी (वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई, क्रूक : इट्स गुड टू बी बैड) ‘वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ की सफलता के जरिये इमरान ने साबित किया कि भट्ट बंधुओं के बिना भी वे अच्छा अभिनय कर सकते हैं और सफल भी हो सकते हैं। ‘क्रूक’ में उन्होंने पुराने लटके-झटके दिखाए, चुंबन का आदान-प्रदान किया, लेकिन दर्शकों ने इसे ठुकराकर मैसेज दिया कि वे उनकी इन हरकतों से उकता गए हैं।
इमरान खान (आई हेट लव स्टोरीज़, ब्रेक के बाद) लाख कोशिशों के बावजूद रणबीर कपूर को इमरान खान मात नहीं दे पा रहे हैं। ‘ब्रेक के बाद’ भी उनकी असफलता पर ब्रेक नहीं लगा पाई। ‘आई हेट लव स्टोरीज़’ की सफलता ने उन्हें लाइमलाइट में बनाए रखा। इमरान को जरूरत है अपने मामूजान से कुछ पाठ पढ़ने की।
रितिक रोशन (काइट्स, गुजारिश) काइट्स ऐसी कटी कि रितिक अभी भी चैन की नींद नहीं सो पाते होंगे। जिस फिल्म के लिए उन्होंने अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया वो फिल्म ऐसी पिटेगी उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा। ‘गुजारिश’ में उन्होंने शानदार अभिनय किया, तारीफ भी हुई, लेकिन रितिक को खुशी तो तब होती जब ये फिल्म सफल होती। इन दो फिल्मों की झकझोरने वाली असफलता को भूल उन्हें नई शुरुआत करनी होगी।
नील नितिन मुकेश (लफंगे परिंदे, तेरा क्या होगा जॉनी) लफंगे बनकर सफलता के आसमान में परिंदे की तरह उड़ने का ख्वाब इस फिल्म के पिटते ही चकनाचूर हो गया। नील में अभी भी संभावनाएँ नजर आती हैं। जरूरत है एक हिट फिल्म की, जो शायद 2011 में मिल जाए।