बौद्ध धर्मग्रंथ : पिटक बौद्ध धर्मग्रंथ : त्रिपिट क
हिन्दू-धर्म में वेदों का जो स्थान है, बौद्ध धर्म में वही स्थान पिटकों का है। भगवान बुद्ध ने अपने हाथ से कुछ नहीं लिखा था। उनके उपदेशों को उनके शिष्यों ने पहले कंठस्थ किया, फिर लिख लिया। वे उन्हें पेटियों में रखते थे। इसी से नाम पड़ा, 'पिटक'। पिटक तीन हैं:-
1) विनय पिटक : इसमें विस्तार से वे नियम दिए गए हैं, जो भिक्षु-संघ के लिए बनाए गए थे। इनमें बताया गया है कि भिक्षुओं और भिक्षुणियों को प्रतिदिन के जीवन में किन-किन नियमों का पालन करना चाहिए।
2) सुत्त पिटक : सबसे महत्वपूर्ण पिटक सुत्त पिटक है। इसमें बौद्ध धर्म के सभी मुख्य सिद्धांत स्पष्ट करके समझाए गए हैं। सुत्त पिटक पाँच निकायों में बँटा है:- * दीघ निकाय, * मज्झिम निकाय, * संयुत्त निकाय, * अंगुत्तर निकाय और * खुद्दक निकाय।
खुद्दक निकाय सबसे छोटा है। इसके 15 अंग हैं। इसी का एक अंग है 'धम्मपद'। एक अंग है 'सुत्त निपात'।
3) अभिधम्म पिटक : अभिधम्म पिटक में धर्म और उसके क्रियाकलापों की व्याख्या पंडिताऊ ढंग से की गई है। वेदों में जिस तरह ब्राह्मण-ग्रंथ हैं, उसी तरह पिटकों में अभिधम्म पिटक हैं।
* धम्मपद :
हिन्दू-धर्म में गीता का जो स्थान है, बौद्ध धर्म में वही स्थान धम्मपद का है। गीता जिस प्रकार महाभारत का एक अंश है, उसी तरह धम्मपद सुत्त पिटक के खुद्दक निकाय का एक अंश है।
धम्मपद में 26 वग्ग और 423 श्लोक हैं। बौद्ध धर्म को समझने के लिए अकेला धम्मपद ही काफी है। मनुष्य को अंधकार से प्रकाश में ले जाने के लिए यह प्रकाशमान दीपक है। यह सुत्त पिटक के सबसे छोटे निकाय खुद्दक निकाय के 15 अंगों में से एक है।
' को नु हासो किमानन्दो निच्चं पज्जलिते सति। अंधकारेन ओनद्धा पदीपं न गवेसथ॥'
धम्मपद में दिए गए इस श्लोक का तात्पर्य है कि यह हँसना कैसा? यह आनंद कैसा? जब नित्य ही चारों ओर आग लगी है। संसार उस आग में जला जा रहा है। तब अंधकार में घिरे हुए तुम लोग प्रकाश को क्यों नहीं खोजते? - शतायु