सरकार पर सुषमा का हल्ला बोल

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010 (14:33 IST)
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संसद में बजट सत्र के चौथे दिन आज लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने महँगाई को लेकर सरकार पर जमकर हमला बोला। अपने एक घंटे के भाषण में श्रीमती स्वराज ने प्रधानमंत्री, कृषि मंत्री और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गाँधी तीनों पर आरोपों के एक से बढ़कर एक तीखे शब्द बाण छोड़े।

अपने पूरे भाषण को सुषमा स्वराज ने दो भागों में पेश किया। पहले हिस्से में उन्होंने सरकार पर गेहूँ, चावल, दाल और चीनी के रूप में चार घोटाले करने का आरोप लगाया, वहीं दूसरे हिस्से में केंद्र के खाद्य सुरक्षा अधिनियम की बखिया उधेड़ी। भाषण के दौरान विपक्षी सदस्यों द्वारा शोर मचाने पर नेता प्रतिपक्ष ने उन्हें कई चुटीली नसीहतें भी दीं।

गरीबों को केंद्र में रखकर सत्ताधारी यूपीए पर हल्ला बोलते हुए सुषमा ने कहा कि इस सरकार ने दाल, चावल, गेहूँ और चीनी को मिलाकर चार तरह के घोटाले किए। आम आदमी भूखा मर रहा है, दालों के दाम आसमान छू रहे हैं।

उन्होंने कहा बंदरगाहों पर आयातित दाल पड़ी रहती है, लेकिन व्यापारी सिर्फ इसलिए उसे नहीं उठाते क्योंकि उन्हें कीमतों में और बढ़ोतरी का इंतजार रहता है। उन्होंने कहा चीनी के कारोबार का पूरा नियंत्रण केंद्र सरकार के हाथों में है। गन्ने की कीमत और लेवी का दाम केंद्र तय करता है। चीनी मिल के लिए लायसेंस भी यही सरकार देती है।

कृषि मंत्री शरद पवार पर निशाना साधते हुए सुषमा ने कहा कि 2006-07 में देश में चीनी का रिकॉर्ड 28.3 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन हुआ। इससे चीनी के दाम गिरे। कोई और कृषि मंत्री होता तो दूरदृष्टि अपनाते हुए बफर स्टॉक बनाता लेकिन इस सरकार ने निर्यात की छूट दे दी। छूट ही नहीं दी, निर्यातकों को कर में छूट जैसी कई सुविधाओं से नवाजा गया।

उन्होंने कहा देश में एक समय ऐसा भी आया, जब चीनी एक तरफ से आयात हो रही थी तो दूसरे बंदरगाह से उसे निर्यात किया जा रहा था। इस सरकार ने चीनी को 12.5 रुपए प्रति किलो की दर पर निर्यात किया और 36 रुपए प्रति किलो की दर से आयात की गई। सुषमा ने कहा इससे स्टॉक में सूचीबद्ध 33 चीनी मिलों का त्रैमासिक लाभ अक्टूबर से दिसंबर के बीच 3800 गुना बढ़ गया।

संयुक्त संसदीय समिति की माँग: सुषमा ने आटा, दाल, चावल और चीनी में हुई इन अनियमितताओं को आधार बनाते हुए एक संयुक्त संसदीय समिति बनाने की माँग की। उन्होंने कहा सरकार इस समिति के जरिए यह बताए कि ये घोटाले कैसे हुए।

इधर का माल उधर... : फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र के संवाद की याद दिलाते हुए सुषमा ने सरकार पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि एक फिल्म में धर्मेंद्र से पुलिस पूछती है कि तुम क्या करते हो तो धर्मेंद्र कहते हैं-मैं इधर का माल उधर और उधर का माल इधर करता हूँ।

खाद्य सुरक्षा कानून को लेकर सरकार को आड़े हाथों लेते हुए मप्र के विदिशा से सांसद ने कहा कि यह सरकार न तो कभी इसे लेकर प्रतिबद्ध दिखी और न ही सक्रिय।

उन्होंने कहा पिछले साल राष्ट्रपति के मुँह से सरकार ने कहलवाया कि गरीबों को प्रतिमाह 25 किलो गेहूँ 3 रुपए प्रति किलो की दर पर मुहैया कराया जाएगा। लेकिन यह घोषणा सिर्फ घोषणा ही रही। इस बार इसे लेकर कोई जिक्र नहीं किया गया।

खाद्य सुरक्षा के लिए गरीबों के आँकड़े, उत्पादन, भंडारण और प्रभावी वितरण को आधार स्तंभ करार देते हुए सुषमा ने इन चारों मोर्चों पर सरकार की खिंचाई की। उन्होंने अपने सिलसिलेवार प्रस्तुतिकरण में कहा कि गरीबों की संख्या को लेकर यह सरकार सुनिश्चित नहीं है।

योजना आयोग ने 2004-05 में गरीबों की संख्या कुल आबादी की 25.7 फीसदी बताई तो सुरेश तेंडुलकर समिति ने इसे 33.2 प्रतिशत आँका।

पेट नहीं माथा कहता है गरीब की कहानी : गरीबों की जनसंख्या आकलन की सरकार की नीति पर सवाल उठाते हुए सुषमा ने कहा कि गरीब की कहानी उसका पेट नहीं, उसका सिलवटों भरा माथा कहता है। सरकार कैलोरी के आधार पर गरीब होने या नहीं होने का निर्धारण करती है। उन्होंने कहा जिसके पेट में दो वक्त की रोटी भी नहीं हो, उसे कैलोरी के आधार पर आप कैसे गरीब ठहराएँगे।

उत्पादन को लेकर भी सुषमा ने सरकार पर तीखे हमले बोले। उन्होंने कहा किसी भी देश का फसल उत्पादन उसकी कृषि योग्य भूमि से तय होता है। जब सिंचित कृषि भूमि का रकबा ही लगातार घट रहा है तो उत्पादकता कैसे बढ़ेगी। उन्होंने कहा वर्ष 2008-2009 में कृषि का रकबा आठ प्रतिशत घटकर 680 से 626 लाख हेक्टेयर पर आ गया।

कृषि उत्पादकता को लेकर सुषमा ने सरकार को गुजरात मॉडल का अनुकरण करने की सीख दी। उन्होंने कहा गुजरात ने सौराष्ट और अन्य इलाकों की बंजर भूमि को सिंचित कर उत्पादकता बढ़ाई। इस काम के लिए गुजरात की तारीफ भाजपा ने नहीं, अर्थशास्त्रियों ने की है। उन्होंने कहा गुजरात ने दूरदर्शिता और इच्छा शक्ति से यह कर दिखाया। लेकिन केंद्र सरकार में इन चीजों का अभाव है।

भंडारण को लेकर कृषि मंत्रालय को आड़े हाथों लेते हुए सुषमा ने कहा कि फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) के पास 25 लाख मिलियन टन अनाज की कवर्ड कैपेसिटी और 28 लाख मिलियन टन अनाज की अनकवर्ड कैपेसिटी है। लेकिन उचित भंडारण न होने से अंदर रखा अनाज पड़े-पड़े नष्ट हो जाता है और बाहर रखे अन्न को पानी खराब कर देता है।

आरटीआई के एक मामले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि एक शख्स द्वारा आरटीआई के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में एफसीआई ने कहा है कि उनका दस लाख खाद्यान्न नष्ट हो गया है।

बेतरतीब भंडारण को लेकर सुषमा ने सपा अध्यक्ष मुलायमसिंह यादव के बयान का समर्थन किया। उल्लेखनीय है कि बजट सत्र के पहले दिन मुलायम ने कहा था कि सरकारी अनाज का ज्यादातर हिस्सा चूहों का भोजन बन जाता है।

खाद्यान्न के वितरण को लेकर भी सुषमा ने सरकार पर जमकर भड़ास निकाली। उन्होंने कहा केंद्र सरकार असमान वितरण के लिए राज्यों को जिम्मेदार ठहराती है, लेकिन हकीकत यह है कि राज्यों को उनके हक का पूरा अनाज दिया ही नहीं जाता।

मप्र सरकार का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि मप्र के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने शरद पवार से अपने गरीबों को बाँटने के लिए 42 लाख टन गेहूँ माँगा, लेकिन उन्हें केवल 21 लाख टन गेहूँ दिया गया। केंद्र का कहना था हमारे हिसाब से मप्र में 21 लाख लोग ही गरीब हैं। प्रदेश सरकार पर केंद्र लाल गेहूँ वितरित करने का दबाव डालता है, जबकि उनके यहाँ अच्छा शरबती गेहूँ पैदा होता है।

मंत्रमुग्ध होकर सुनता रहा पूरा सदन : सुषमा स्वराज के भाषण के दौरान पूरे सदन में मानो सन्नाटा छा गया था। विपक्ष के साथ-साथ सत्ता पक्ष के लोग भी ध्यान से उन्हें सुन रहे थे। कुछ सांसदों के हंगामे को छोड़ दिया जाए तो पूरे समय सुषमा के हमलों से संसद गुंजायमान थी।

मुस्कराते रहे शरद पवार : जिस वक्त सुषमा महँगाई को लेकर यूपीए सरकार को कोस रही थी, कृषि मंत्री शरद पवार मुस्करा रहे थे। सुषमा ने अपने भाषण के दौरान कई बार कृषि मंत्री को 'शरद भाऊ' कहकर संबोधित किया। (वेबदुनिया न्यूज)

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