आम लोगों पर बढ़ सकता है बोझ, वेतनभोगी हो सकते हैं निराश

रविवार, 28 फ़रवरी 2016 (12:26 IST)
नई दिल्ली। वित्तमंत्री अरुण जेटली सोमवार को अपना दूसरा पूर्ण बजट पेश करेंगे जिसे लेकर लोग तरह- तरह की उम्मीदें लगाए बैठे हैं लेकिन इस बार वेतनभोगियों को जहां निराशा हाथ लग सकती है, वहीं सब्सिडी आदि में कटौती होने पर आम लोगों पर बोझ बढ़ सकता है। 
 
वित्तमंत्री अरुण जेटली पर आर्थिक विकास को गति देने के लिए संसाधन जुटाने के उपाय करने का दबाव है जिसका असर आम लोगों पर पड़ सकता है। उद्योग संगठनों के साथ ही दूसरे संगठन भी आयकर छूट की सीमा बढ़ाने की अपील कर चुके हैं लेकिन वर्तमान वैश्विक आर्थिक स्थिति और घरेलू राजकोषीय दबाव के मद्देनजर इस अपील का कोई विशेष असर होने के आसार कम ही हैं। 
 
अगले कुछ महीनों में 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि इसके मद्देनजर वित्तमंत्री मतदाताओं पर अधिक भार नहीं डालना चाहेंगे, लेकिन 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने पर सरकारी कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी होगी और इसके मद्देनजर आयकर छूट सीमा बढ़ाने की पहले उम्मीद की जा रही थी, लेकिन आर्थिक समीक्षा 2015-16 में इसमें बदलाव नहीं करने की सिफारिश की गई है जिससे अब इसमें वृद्धि होने की संभावना बहुत कम हो गई है। 
 
वैश्विक अनुपात की तुलना में देश में करदाताओं की संख्या भी कम है। अभी 10 फीसदी कर स्लैब के दायरे में मात्र 5.5 प्रतिशत, 20 फीसदी कर स्लैब में 1.6 प्रतिशत और 30 प्रतिशत कर के दायरे में मात्र 0.5 प्रतिशत लोग हैं।
 
मात्र 4 प्रतिशत मतदाता ही करदाता हैं जबकि वैश्विक अनुपात 23 प्रतिशत है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि चीन सहित दुनिया के बहुत से देशों में लोगों की आय बढ़ने पर स्लैब में हमेशा बढ़ोतरी नहीं की जाती और करदाता अगले स्लैब के दायरे में आ जाते हैं।
 
विश्लेषकों ने जेटली के इस मार्ग को अपनाने की संभावना जताते हुए कहा कि शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल जैसे सामाजिक कल्याण के साथ ही ग्रामीण बुनियादी सुविधाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर में बड़े पैमाने पर सरकारी निवेश बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिए अतिरिक्त संसाधन की जरूरत है और कर के रूप में संग्रहीत राजस्व इसका सबसे बड़ा स्रोत है। उनका कहना है कि ऐसा किए जाने पर अधिकांश करदाताओं को मिलने वाली सब्सिडी भी बच सकती है।
 
सरकार सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने और इसका लाभ सिर्फ समाज के कमजोर लोगों को देने की दिशा में पहले से ही काम कर रही है। इसी दिशा में सरकार ने रसोई गैस सब्सिडी छोड़ने की उपभोक्ताओं से अपील की थी और अब तक 75 लाख उपभोक्ता इसे छोड़ चुके हैं। इसके साथ ही 10 लाख रुपए या इससे अधिक आय वर्ग को भी रसोई गैस सब्सिडी नहीं दी जा रही है तथा सीधे उपभोक्ताओं के खाते में सब्सिडी हस्तांतरित किए जाने से इसमें 24 फीसदी की कमी आई है।
 
समीक्षा में गैस सिलेंडरों की संख्या 12 से कम कर 10 करने का सुझाव दिया गया है जिससे यह उम्मीद की जा रही है कि वित्तमंत्री इस पर भी अमल कर सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो रसोई गैस सिलेंडर उपयोग करने वाले हर परिवार पर इसका असर होगा। साथ ही दूसरी सब्सिडियों को तर्कसंगत बनाने की वकालत की जा रही है जिससे अब तक इसका लाभ उठा रहे मध्यम वर्ग और अमीर प्रभावित हो सकते हैं।
 
वेतनभोगियों और आम लोगों को दूसरे तरीके से मिलने वाले लाभों, विशेषकर करमुक्त जमा योजनाओं में भी कटौती हो सकती है। कर छूट दिए जाने से लोग बचत योजनाओं में धनराशि जमा करते हैं, लेकिन उसका पूरा लाभ सरकार नहीं उठा पा रही है। इसके मद्देनजर ही इन योजनाओं को सीमित करने या एक निश्चित कर छूट की सीमा वालों को ही इसका लाभ देने का प्रावधान किया जा सकता है।
 
अमीरों को दी जा रही 1 लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी का उल्लेख समीक्षा में किया गया है और इसे कम करने या समाप्त करने की सिफारिश की गई है। बजट पर इस सुझाव का असर भी दिख सकता है। कर राजस्व बढ़ाने के दूसरे वैकल्पिक उपाय भी किए जाने की संभावना है जिससे राजकोष पर दबाव न बने। 
 
स्टार्टअप इंडिया के तहत इस दायरे की कंपनियों को कई तरह की छूट दिए जाने की पहले की घोषणा की जा चुकी है लेकिन बजट में इसकी औपचारिकता पूरी की जा सकती है। (वार्ता)

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