चक्रव्यूह पर ध्यान दोगे तो फँसकर रह जाओगे

महाभारत के दौरान कौरवों के सेनापति द्रोणाचार्य द्वारा रचे गए चक्रव्यूह को भेदकर अभिमन्यु तो उसमें प्रवेश कर गया, लेकिन पांडव पक्ष के यौद्धाओं के प्रवेश से पहले ही व्यूह बंद हो गया। अकेले पड़े अभिमन्यु के सामने थे द्रोणाचार्य, कर्ण, दुर्योधन, दुःशासन, अश्वस्थामा, शकुनि, शल्य, जयद्रथ आदि एक से एक महारथी। लेकिन युवावस्था में पदार्पण कर रहे अभिमन्यु के शौर्य के आगे एक भी नहीं टिक पा रहा था।

अभिमन्यु के बाणों की बौछारों से कौरव सेना विचलित हो उठी। जब अभिमन्यु दुर्योधन की ओर बढ़ रहा था, तो कौरव योद्धाओं ने मिलकर उसे बचा लिया। अपने सबसे बड़े शत्रु के इस तरह से बच जाने पर क्रुद्ध अभिमन्यु ने कौरव पक्ष में तबाही मचा दी। ऐसे में कौरवों ने मिलकर उसे घेर लिया।

कर्ण ने उसका रथ क्षत-विक्षत कर दिया। तब उसने ढाल-तलवार से कई दुश्मनों को मार गिराया। जल्द ही द्रोणाचार्य ने तीर से उसकी ढाल-तलवार काट दी। उसने तुरंत पास पड़े रथ के एक पहिए को उठाकर घुमाना शुरू कर दिया, लेकिन चारों ओर से हो रही तीरों की बौछार की वजह से वह बुरी तरह घायल हो गया।

तभी सभी ने एक साथ पहिए को निशाना बनाकर उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए। पूरे शरीर से बहते रक्त के बाद भी उसने गदा उठाई, लेकिन जल्द ही थका-हारा होने के कारण वह गिर पड़ा। इसके पहले कि वह उठता, उसके सिर पर गदा का तेज प्रहार कर उसे मौत के घाट उतार दिया गया।

दोस्तो, कहते हैं कि जिंदगी एक चक्रव्यूह की तरह होती है। युवावस्था की दहलीज पर कदम रखने बाद व्यक्ति जब अपने पैरों पर खड़ा होना सीखता है, तो वह पहली बार इस चक्रव्यूह में अकेले के दम पर प्रवेश करता है।

हालाँकि तब तक उसके पालक उसे इतना तैयार कर चुके होते हैं कि वह उसे भेदकर आगे बढ़ सके। वह रोज नए अनुभव लेकर आगे बढ़ता जाता है। उसके अपने उसे सिर्फ मोरल सपोर्ट ही दे पाते हैं, क्योंकि वे उस चक्रव्यूह में प्रवेश नहीं कर सकते। धीरे-धीरे घटनाएँ उसे सिखाती जाती हैं कि चक्रव्यूह से कैसे निकला जाता है और वह बड़े से बड़े चक्रव्यूह को भेदता हुआ आगे बढ़ता चला जाता है।

दूसरी ओर, किसी योग्य और क्षमतावान युवक को अपने करियर की शुरुआत में कई बार अभिमन्यु की तरह बड़े-बड़े दिग्गजों का सामना करना पड़ जाता है। ये दिग्गज उसकी कार्यकुशलता और जज्बे से घबराकर उसके विरुद्ध षड्यंत्रों का चक्रव्यूह रचकर एक प्रतिभावान व्यक्ति के करियर का उसकी शुरुआत में ही अंत कर देते हैं।

शुरुआत में ही मिले इस कटु अनुभव से वह युवक टूट जाता है। यदि आपके वरिष्ठ भी आपके काम में रुकावट डालकर आपके जोश को ठंडा करने की कोशिश कर रहे हैं, तो ऐसे में हिम्मत हारकर हथियार न डालें बल्कि उनकी ओर ध्यान दिए बिना पूरी लगन, उत्साह से अपना काम करते रहें। सब मिलकर भी आपको घेर लें, तो भी उनके फेर में पड़कर अपने पहिए की गति को न थमने दें।

यदि आप सही हैं, तो कोई आपका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा और आपकी ओर चलने वाले उनके सारे तीर, सारे वार नाकाम हो जाएँगे। तब आप सबको धाराशायी करते हुए चक्रव्यूह से बाहर आ जाएँगे। और यदि आप ध्यान देंगे तो उनके रचे चक्रव्यूह में फँस जाएँगे।

और अंत में, आज 'अंतराष्ट्रीय युवा दिवस' है। युवाओं में इतना जोश और जुनून होता है कि वे असंभव को भी संभव बनाकर लोगों को दंग कर देते हैं, पर अकसर जोश में होश खोकर वे गलत राह पर भी चल पड़ते हैं। इस कारण वरिष्ठ पीढ़ी उन्हें जिम्मेदारी सौंपने से कतराती है। लेकिन कहा गया है न कि ठोकर खाकर ही आदमी पहलवान बनता है।

इसलिए बिना चिंता किए वरिष्ठ पीढ़ी को इन पर भरोसा रखते हुए उन्हें आगे बढ़ाना चाहिए। जो समाज या देश अपनी युवा पीढ़ी को ज्यादा मौके देता है, वह तेजी से प्रगति करता है और जो उन्हें दबाकर रखता है, वह पिछड़ जाता है।

इसलिए समय रहते युवाओं के हाथों में कमान सौंपकर उनके जोश का पूरा फायदा उठाना चाहिए। तभी आप अपने सपनों को उनके सहारे पूरा कर सकते हैं। अरे भई, जिस यंग के रंग-ढंग सही हों, वही दंग करने लायक काम कर पाता है।

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