पहले करो पेट-पूजा बाद में काम दूजा

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पहली बार नगर भ्रमण पर निकले कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ का मन रास्ते में एक वृद्ध, एक बीमार महिला और एक शवयात्रा को देखकर अशांत हो गया। एक दिन वे सारे सुखों को त्यागकर तपस्या करने निकल पड़े और गया के निकट उरुबिल्व वन में एक बरगद के नीचे बैठकर कठोर साधना करने लगे।

वे शरीर को तरह-तरह के कष्ट देने लगे। वे कंद-मूल खाते और एकांत में बैठकर चिंतन करते। पहले उन्होंने दिन में एक बार का भोजन त्यागा और फिर धीरे-धीरे कई-कई दिन तक भोजन का त्याग करने लगे ताकि साधना की कठोरता बढ़े और आत्मज्ञान की प्राप्ति हो सके। इससे वे बहुत दुर्बल हो गए। एक दिन जब वे स्नान करके नदी से बाहर आ रहे थे तो उनकी शारीरिक शक्ति जवाब दे गई।

जैसे-तैसे एक वृक्ष की शाखा पकड़कर वे बाहर आए, लेकिन दो-चार कदम चलने के बाद गिर पड़े। बड़ी कठिनाई से वे उठे और तप स्थल पर जाकर बैठ गए। उनके मन में विचार आया कि मैंने बेकार ही शरीर को इतना कष्ट दिया, आत्मज्ञान की प्राप्ति तो हुई नहीं। इससे उनके मन में निराशा छा गई। अगले दिन एक चरवाहे की लड़की सुजाता उनके लिए भोजन लेकर आई।
  पहली बार नगर भ्रमण पर निकले कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ का मन रास्ते में एक वृद्ध, एक बीमार महिला और एक शवयात्रा को देखकर अशांत हो गया। एक दिन वे सारे सुखों को त्यागकर तपस्या करने निकल पड़े।      


सिद्धार्थ ने निःसंकोच भोजन कर सुजाता को धन्यवाद दिया, क्योंकि वे समझ गए थे कि भूखे रहने का आत्मज्ञान की प्राप्ति से कोई संबंध नहीं है। इससे सिर्फ दुर्बलता ही आती है। इसके बाद वे फिर से साधना में लग गए और अंततः उन्हें 'बुद्धत्व' की प्राप्ति हुई। इसके बाद वे सिद्धार्थ से बुद्ध हो गए।

दोस्तो, सही तो है कि भूखे रहने का सफलता से क्या संबंध। कहते भी हैं कि खाली पेट रहने से कोई बुद्धिमान नहीं बनता। बनेगा भी कैसे? जब पेट खाली होगा तो दिमाग तो उधर ही लगा रहेगा। ऐसे में मन में अच्छे विचार आ ही नहीं सकते, न ही मन किसी काम में लग सकता है।

कहा गया है ना कि 'भूखे भजन न होई गोपाला।' इसलिए यह बात विशेष रूप से उन लोगों को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए जो अपने काम में इस तरह भिड़ जाते हैं कि खाना-पीना भी भूल जाते हैं या जब मन आया खा लिया, कोई निश्चित समय ही नहीं।

खाने-पीने की अनियमितता या आवश्यकता से कम भोजन करने का असर उनके शरीर पर पड़ता है, जिससे न केवल कमजोरी आती है बल्कि कई बीमारियाँ लगने की आशंका भी बनी रहती है।

बल्कि यूँ कहें कि भूखे रहने से बीमारियाँ लग ही जाती हैं, तो गलत न होगा। अब ऐसा करके वे अपने काम को कैसे पूरा कर पाते हैं, यह समझने वाली बात है। एक काम को बिगाड़कर यानी शरीर को कष्ट देकर दूसरे काम को पूरा करना समझदारी तो नहीं कही जा सकती। इसलिए बुद्ध की तरह बुद्धि से काम लें। यानी आप जो कर रहे हैं, उसे करें, पूरी लगन और मेहनत से करें, लेकिन साथ-साथ अपने पेट का भी ध्यान रखें यानी पहले पेट-पूजा, बाद में काम दूजा। जब आप ऐसा करेंगे तो स्वस्थ रहकर अपना काम हर दृष्टि से पूरा कर पाएँगे।

और अंत में, आज बुद्ध जयंती है। यदि आप भी बुद्ध की तरह बुद्धिमान बनना चाहते हैं तो कुछ समय निकालकर अच्छी-अच्छी पुस्तकें पढ़ना प्रारंभ कर दें। इससे निश्चित ही आपकी बुद्धि में वृद्धि होगी। और जब दिमाग बढ़ेगा तो आपकी कार्यकुशलता भी बढ़ेगी, जो अंततः आपके करियर में वृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगी।

इसके साथ ही थोड़ा पढ़ना, ज्यादा सोचना, कम बोलना, अधिक सुनना शुरू कर दें। यह बुद्धिमान बनने का सबसे सरल उपाय है। इस उपाय को अपनाएँ और फिर देखें कि आप कैसे बुद्धिमान नहीं बनते। और जब बुद्धिमान बन जाएँगे तो आप खुद-ब-खुद शरीर की फिक्र करने लगेंगे।

तब आप एक टाइम टेबल बनाकर खाने के समय खाना खाएँगे, नाश्ते के समय नाश्ता करेंगे और काम के समय काम। इस स्थिति में आपको सबसे ज्यादा दुआएँ मिलेंगी आपके अपने शरीर से। जब वह खुश होगा, स्वस्थ होगा, तो कभी आपके काम में रुकावट नहीं बनेगा और आप अपने सारे काम समय पर पूरे कर आगे बढ़ते जाएँगे।

अरे भई, भोजन समय पर मैं करने लगा हूँ और वो लग तुम्हारे शरीर को रहा है। ऐसा क्यों? अच्छा, मेरे भोजन को लेकर पहले तुम चिंतित रहती थीं। अब वह चिंता दूर हो गई।

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