बेलेंस की ताकत

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अपने दिमाग के बेलेंस को डवलप करें। हमेशा सराहे और दोषी ठहराएँ जाते रहेंगे। लेकिन इनका असर कभी अपने मेंटल बेलेंस पर न आने दें। दिमागी सुकून को बनाए रखें। - सुत्त निपात

दो तरह के बेलेंस होते हैं एक बेलेंस तो वह है, जिसका जिक्र सुत्त निपात की ऊपर दी गई सुक्ति में हुआ है, जिसे स्थिर चित्तता या दिमागी स्थिरता कहते हैं। इस तरह का बेलेंस आपके आसपास होने वाली घटनाओं के प्रति आपकी प्रतिरक्षात्मकता को और बढ़ाता है।

आपके बाहरी हालात आपकी भीतरी स्थितियों को प्रभावित नहीं करते। तब सफलता आप में प्रमाद नहीं लाती और न ही पराजय आप में हताशा भरती है। प्रशंसा आपके सिर पर नहीं चढ़ती और आलोचना आपका दिल नहीं तोड़ती। तब आप लगभग दिए की उस लौ की तरह हो जाते हैं, जो थरथराती नहीं है।

दूसरी तरह के बेलेंस का जिक्र ऊपर लिखी हुई कविता की दो पंक्तियों में है। इसे इंसान तब सीखता है, जब वह मध्यम मार्ग पर चलता है। इस समय वह अतिवादिता से बचकर सुनहरे मध्यम मार्ग पर चलने लगता है। उदाहरण के लिए तब वह न तो कायर होता है और न ही दुस्साहसी, वह सिर्फ साहसी होता है।

इसी तरह वह अहंकार और झिझक के बीच में से विनम्रता को चुनता है, मितव्यतता और अपव्यययता में से दानशीलता को चुनता है, गंभीरता और मसखरी में से वह स्वस्थ हास्य को चुनता है और झगड़ालूपन और चापलूसी में से वह मित्रता को चुनता है।

जो इस तरह को बेलेंस पा लेता है, वह जीवन में जब आगे बढ़ता है तो खुशियाँ उसके साथ-साथ चलती हैं। जब यह बेलेंस गड़बड़ाने लगता है तो वह रास्ते से भटक जाता है और यह भटकाव सिर्फ तभी तक होता है, जब तक वह अपनी धुरी फिर से नहीं पा लेता। इस तरह जब वह दोबारा बेलेंस पा लेता है तो फिर वह ब्रह्मांड के नियमों के साथ लयबद्ध जो जाता है और उसके लिए संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं।

(पवन चौधरी की 'पुस्तक ऐसा पाल तानें कि आँधी ऊर्जा बने' से साभार)

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