वर्तमान में हेल्थ केयर सर्विसेज की माँग इतनी बढ़ गई है कि दुनिया के तमाम विकसित देशों को पीछे छोड़ते हुए भारत में यह उद्योग 40,000 करोड़ रुपए का आँकड़ा पार कर गया है। दस वर्षों में स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में निजी संगठनों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश करने से सूरत और सीरत दोनों में खासा बदलाव आया है।
इस बदलाव ने देश में स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था के लिए प्रबंधन में प्रशिक्षित प्रोफेशनल्स की मांग बहुत बढ़ाई है हालांकि केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में अनिवार्य स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान की जा रही हैंपरंतु इनकी बुनियादी सरचनाएँ तथा गुणवत्ता अपर्याप्त हैं, जिससे बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती है।
हमारे देश की स्वास्थ्य सेवाएँ पटरी पर लाने के लिए आज न केवल अधिक से अधिक चिकित्सकों और विशेषज्ञों की जरूरत है बल्कि अस्त-व्यस्त पड़े अस्पतालों को सुव्यवस्थित बनाए रखने के लिए हॉस्पिटल मैनेजमेंट में प्रशिक्षित लोगों की भी आवश्यकता है। वर्तमान में न केवल अस्पताल और नर्सिंग होम की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है बल्कि उनका स्वरूप भी बदल रहा है।
यही कारण है कि इन अस्पतालों में कार्यरत मेडिकल स्टाफ को प्रतिदिन के गैर चिकित्सकीय प्रशासनिक मामलों से निपटने के लिए समय ही नहीं मिल पाता है। ऐसे कार्य संभालने के लिए प्रबंधकीय और पेशेवार कौशल की आवश्यकता होती है जिसके लिए सतत निष्ठा और उन्नयन जरूरी है। चिकित्सकों के लिए प्रशासनिक कार्यों के लिए अतिरिक्त समय निकालना बहुत मुश्किल है इसीलिए हॉस्पिटल मैनजमेंट का क्षेत्र अस्तित्व में आया है।
हॉस्पिटल मैनेजमेंट स्वास्थ्य संबंधी देखभाल सेवाएँ प्रदान करने के लिए प्रबंधकीय कौशल प्रदान करता है। अभी तक चिकित्सकों और विशेषज्ञों द्वारा बिना किसी प्रबंधन प्रशिक्षण के अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्र की देखभाल की जाती रही है। इससे न तो अस्पतालों का सही ढंग से रखरखाव हो पाता था और न ही डॉक्टरों का समय मरीजों की सेवा के उपयोग में लग पाता था इसलिए अधिकांश बड़े और मध्यम अस्पतालों में स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं और चिकित्सकीय स्टाफ के प्रबंधन, नियोजन और नियंत्रण, सामग्रियों की सतत आपूर्ति तथा चिकित्सकीय और अनुसंधान कार्यों के लिए प्रबंधकों की सेवाएँ ली जा रही हैं।
सामान्यतः हॉस्पिटल प्रबंधक विभिन्न पक्षों यथा नियोजन तथा नियंत्रण मेडिकल स्टाफ का प्रबंधन, डेमोग्राफी औरबायोस्टेटिस्टिक्स, हेल्थ केयर में प्रबंधन एवं अनुसंधान, इपिडेमियोलॉजी और सामुदायिक स्वास्थ्य तथा स्ट्रेटजिक मैनेजेमेंट से जुड़ा होता है।
हॉस्पिटल प्रबंधन के कार्यों में गैरचिकित्सकीय स्टाफ की भर्ती और प्रबंधन, चिकित्सकीय लेखा तथा विपणन, दूरसंचार तथा सुरक्षा के अलावा अन्य सेवाओं का प्रबंधन भी शामिल है। उसे सभी विभागों के स्टाफ तथा मैनेजमेंट, डॉक्टरों तथा मेडिकल विशेषज्ञों, पेरामेडिकल स्टाफ, हेल्थ वर्कर के साथ अच्छा तालमेल बिठाने तथा संप्रेषण के साथ मरीजों की सुविधाओं को भी सुनिश्चित करना होता है। उसे वित्तीय प्रचालन, वैयक्तिक प्रबंधन, भंडार सामग्री की खरीदी, संगठनात्मक विकास और रोगियों की देखभाल से भी परिचित होना चाहिए।
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हॉस्पिटल मैनेजमेंट के पाठ्यक्रमों के अंतर्गत प्रबंधकीय कौशल, प्रबंधन सिद्धांत, अकाउंटिंग एंड बिजनेस कम्युनिकेशंस के प्रशिक्षण के साथ-साथ हॉस्पिटल की कार्यप्रणाली, हॉस्पिटल सेवाओं की मार्केटिंग तथा लॉजिस्टिक्स मैनेजमेंट का विशेष ज्ञान दिया जाता है।
जिन युवाओं को चिकित्सकीय क्षेत्र में रुचि हो उनके लिए हॉस्पिटल मैनेजमेंट अच्छा करियर है। हॉस्पिटल मैनेजमेंट के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए कई गुण तथा आवश्यक योग्यताएँ जरूरी हैं। इस क्षेत्र में करियर बनाने वालों में निर्णय लेने की दक्षता तथा प्रबंधकीय सिद्धांतों तथा तकनीकों का ज्ञान होना आवश्यक है। इस कार्य के लिए चिकित्सीय कौशल नहीं बल्कि प्रबंधकीय कौशल की आवश्यकता होती है।
हॉस्पिटल मैनेजमेंट के क्षेत्र में अलग-अलग संस्थानों द्वारा कई तरह के पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। इस क्षेत्र मे प्रवेश करने के लिए आप सार्वजनिक हेल्थ केयर अथवा हेल्थ केयर सर्विसेज में स्नातक स्तर का पाठ्यक्रम अपना सकते हैं या हॉस्पिटल मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कर सकते हैं।
इन पाठ्यक्रमों की अवधि एक से लेकर दो वर्ष होती है। इस तरह के पाठ्यक्रम पत्राचार माध्यम से भी उपलब्ध हैं। अधिकांश संस्थानों द्वारा चयन प्रवेश परीक्षा के माध्यम से होता है। इसमें केवल सामान्य ज्ञान तथा प्रबंधकीय कौशल ही परखा जाता है। स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम करने वालों को ऑन कैंपस प्लेसमेंट प्रदान किया जाता है।
कहाँ से करें कोर्स-
ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, दिल्ली।
फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, दिल्ली विश्वविद्यालय।