मित्रो, आप इस मायने में बहुत भाग्यशाली हैं कि आप एक बहुत ही आजाद ख्याल और आजाद अर्थव्यवस्था की दुनिया में अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। यदि आप आज से बीस साल पहले के हिन्दुस्तान के बारे में अपने दादा और पिता से पूछें तो वे जो बातें आपको बताएँगे उन पर शायद आप आसानी से यकीन नहीं करेंगे। हो सकता है कि उनकी बहुत-सी बातें आपको किसी हवाई दुनिया की परिकथा जैसी मालूम पड़ें, लेकिन वे हकीकत थीं।
मैं आज के इस समय की तारीफ इसलिए कर रहा हूँ, क्योंकि यह वह समय है, जिसने दुनिया के युवाओं को उनकी अपनी-अपनी क्षमताओं के अनुसार आगे बढ़ने के अवसर उपलब्ध कराएँ हैं। आज ऐसा नहीं रह गया है कि या तो आप अपने करियर के लिए कोई नौकरी करें या फिर कोई छोटी-मोटी दुकानदारी। जब ऐसा था, उस समय न जाने कितनी प्रतिभाएँ यूँ ही सिसक-सिसककर मर गईं, क्योंकि उनके लिए कोई रास्ता नहीं था।
आज आपके साथ ऐसा नहीं है। आज यदि आपको खाना बनाना आता है, तो आप संजीव कपूर बन सकते हैं और यदि आपको कपड़े डिजाइन करना आता है तो मनीष मल्होत्रा। क्या आप भारतीय इतिहास का कोई ऐसा दौर बता सकते हैं, जिसमें खाना बनाने वाले और ड्रेस डिजाइन करने वाले को इतना धन और इतना यश दोनों ही मिले हों। यह आज ही संभव है और आप इसी महत्वपूर्ण दौर में रह रहे हैं।
आप बहुत भाग्यशाली हैं कि आजाद अर्थव्यवस्था की दुनिया में अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। यदि आप आज से बीस साल पहले के हिन्दुस्तान के बारे में अपने दादा और पिता से पूछें तो वे जो बातें आपको बताएँगे उन पर शायद आप यकीन नहीं करेंगे।
इसलिए यह बहुत जरूरी हो गया है कि अब आप अपने करियर की योजना परंपरागत नजरिए से न देखकर एक नए नजरिए से देखें और इन नए नजरिए की शुरुआत इस बात से होगी कि आप अपनी शक्ति को पहचानें, आप अपनी क्षमता को पहचानें, क्योंकि आपके अंदर प्रकृति ने उपहार के रूप में जो जन्मजात क्षमता दी है, उसे आप कम मेहनत करके बहुत ऊँचाई तक बढ़ा सकते हैं और समाज इस बात के लिए तैयार है कि वह आपकी इस क्षमताकी कद्र करेगा और इसके बदले में आपको वह हर एक चीज देगा, जिसकी आपको जरूरत है और जो वह दे सकता है।
अपनी क्षमता को पहचानने के मामले में हममें से अधिकांश लोग मायोपिया के शिकार हैं। करियर की परंपरा से चली आ रही परिभाषा ने दूर तक सोचने की हमारी क्षमता को नष्ट कर दिया है। इसलिए हमारी दृष्टि 'ज्ञान' तक सीमित रह जाती है। जो पढ़ने में जितना अच्छा होगा, उसका करियर उतना ही अच्छा जान पढ़ने लगता है। हो सकता है कि कुछ दशक पूर्व तक यह सोच सही हो। लेकिन क्या यह आज भी सही है?
यहाँ हमें यह समझना ही होगा कि 'ज्ञान' और 'प्रतिभा' में फर्क होता है। सचिन तेंडुलकर अभी तक ग्रेजुएशन नहीं कर पाए हैं, लेकिन उनके पास क्रिकेट खेलने की अद्भुत प्रतिभा है। महान गणितज्ञ रामानुजम को इतिहास का विषय पल्ले पड़ता ही नहीं था। नेपोलियन जिस मिलट्री अकादमी में पढ़ते थे, वहाँ के 50 स्टूडेंट्स में उनका स्थान नीचे से दूसरा था। 'थोक आविष्कारक' के रूप में विख्यात थॉमस अल्वा एडीसन को उनके शिक्षक बुद्धु बताते हुए अपने स्कूल से ही निकाल दिया था।
बिल गेट्स ही कौन से बहुत पढ़े-लिखे हैं, जिन्होंने सूचना के क्षेत्र में एक क्रांति मचा दी है। इन लोगों को तथा इन जैसे सैकड़ों लोगों के सफल जीवन की कहानियाँ हमें यह विश्वास करने को बार-बार बाध्य करती है कि 'प्रतिभा' महत्वपूर्ण है। 'ज्ञान' भी महत्वपूर्ण है, किंतु वही सब कुछ नहीं है।
इस प्रकार जब हम स्वयं को पहचानने के दौर से गुजर रहे हों, तो हमारी शक्ति को इन तीन श्रेणियों में परखा जाना चाहिए- 1. शारीरिक शक्ति, 2. मानसिक शक्ति, 3.आध्यात्मिक शक्ति जिसे आप सृजनात्मक शक्ति भी कह सकते हैं।
पहले हमें मोटे तौर पर यह देखना चाहिए कि इन तीनों शक्तियों में से हममें कौन सी शक्ति प्रबल है। याद रखिए कि प्रत्येक के पास ये तीनों ही शक्तियाँ कुछ न कुछ मात्रा में होती ही हैं। लेकिन हमें यहाँ देखना यह होगा कि हमारे अंदर इनकी मौजूदगी कितनी-कितनी है। निश्चित रूप से इनमें से जिसकी उपस्थिति सबसे अधिक होगी, हमें उसे ही अपनी मूल शक्ति मानना चाहिए तथा शेष दोनों शक्तियों का उपयोग इस मूल शक्ति को बढ़ाने के लिए करना चाहिए।
उदाहरण के तौर पर यदि किसी में शारीरिक क्षमता का प्राबल्य है, तो उसे श्रम प्रधान, शक्ति प्रधानक्षेत्र जैसे- खेल, कृषि आदि क्षेत्रों को चुनना चाहिए। ज्ञान के प्रति उत्सुक युवा को अकादमिक क्षेत्र में तथा सर्जनात्मक रुचि वाले युवा को कला, साहित्य-संस्कृति वाले क्षेत्र को चुनना चाहिए।
सबसे पहले तो हमें इसी का चुनाव करना चाहिए कि 'मुझे इस क्षेत्र में जाना है।' क्षेत्र का चयन कर लेने के बाद फिर यह चुनना होगा कि उस क्षेत्र के किस भाग में जाना है। जैसे यदि आपने यह निर्णय ले लिया कि ज्ञान के क्षेत्र में जाना है तो अगला निर्णय यह लेना होगा कि ज्ञान के किस क्षेत्र में जाना है- डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, वैज्ञानिक आदि-आदि। निश्चित रूप से यह निर्णय लेते समय तीन तत्व सबसे प्रमुख भूमिका निभाएँगे। ये हैं कि 1. आपकी रुचि क्या है? 2. समाज में किसकी क्या स्थिति है तथा 3. आपकी अपनी स्थिति क्या है?
यही क्रम फिर आगे चलेगा कि यदि आप इंजीनियर बनना चाहते हैं, तो कौन से इंजीनियर बनना चाहेंगे।
अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए हमें इस बारे में पूरी गंभीरता के साथ विचार करके निर्णय लेना चाहिए।
(लेखक पत्र सूचना कार्यालय, भोपाल के संयुक्त निदेशक हैं।)