- माहिया पहले व्यक्ति अखबारों व पत्रिकाओं में नियुक्ति कॉलमों को स्कैन करता था, अपना सीवी भेजता था और फिर इंटरव्यू के दौर से गुजरता था। लेकिन अब यह अंदाज पुराना पड़ गया है। अब एम्प्लॉयर्स ऑनलाइन प्रोफाइल को देखते हैं और उससे संतुष्ट होने पर ही प्रार्थी को व्यक्तिगत साक्षात्कार के लिए बुलाते हैं।
रिक्रूटमेंट की पूरी प्रक्रिया में इंटरनेट महत्वपूर्ण हो गया है। प्रार्थी जॉब बोर्ड्स और कंपनियों के पास विस्तृत प्रोफाइल और वीडियो रेज्यूमे ऑनलाइन भेजता है। जबकि प्रार्थी को इंटरव्यू करने के लिए एम्प्लॉयर्स ब्लॉग भी बना रहे हैं और संभावित प्रार्थियों को आमंत्रित भी करते हैं कि वे जिस जॉब के लिए अर्जी दे रहे हैं, उससे संबंधित कुछ लिखें या करियर से संबंधित ब्लॉग स्पेस पर जाएँ तथा पोस्टिंग्स को पढ़ें।
ब्लॉग से स्पष्ट हो जाता है कि प्रार्थी में काम करने की चाहत व जुनून कितना है और इस तरह एम्प्लॉयर सही व्यक्ति का चयन कर लेता है। ये बातें सुनकर शायद अजीब लग रहा हो, लेकिन ऐसा है नहीं। कंपनियाँ निरंतर ऐसे कर्मचारियों की तलाश में रहती हैं, जो काम कोजुनून के साथ कर सकें।
जाहिर है, परंपरागत रेज्यूमे या आवेदन पत्र इस जुनून को प्रदर्शित नहीं करते। रेज्यूमे में तथ्य भले ही सही हों, लेकिन काम के प्रति जुनून के बारे में वे खामोश ही रहते हैं। कभी-कभी कंपनियाँ प्रभावी रेज्यूमे को देखकर नौकरी दे देती हैं, लेकिन बाद में उन्हें मालूम होता है कि कर्मचारी में पर्याप्त क्षमता नहीं है।
ऐसी स्थिति में ब्लॉग बहुत मदद करते हैं। नेट पर 500 से ज्यादा ब्लॉग हैं। इनमें से एक बड़ा प्रतिशत करियर को समर्पित है। ब्लॉग से अच्छा परफॉरमेंस देने वाले व्यक्ति की पहचान की जा सकती है। इसकी वजहें ये हैं।
*ब्लॉग का कोई विशेष फॉर्मेट नहीं होता। ब्लॉग में लेखक अपने विचारों को किसी भी क्रम में दे सकता है, जो महसूस करता है वह लिख सकता है।
* वह ईमानदारी से अपने कार्य अनुभव को बयान कर सकता है। इसे पढ़ने वाला एम्प्लॉयर उसके समर्पण स्तर और काम में दिलचस्पी को जान सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि कम क्षमता वाले कर्मचारी स्टीरियोटाइप शब्दों का प्रयोग करते हैं अपने कार्य अनुभव को बयान करने के लिए और इसे आसानी से पकड़ा जा सकता है।
* ब्लॉग कम्युनिकेट करने का अनौपचारिक माध्यम है। इसलिए कर्मचारी को झिझक या शर्म नहीं होती, अपनी असल भावनाओं को व्यक्त करने में। वे अपने काम के बारे में जो सोचते हैं, उसे ईमानदारी से बयान करते हैं, जबकि रेज्यूमे में ऐसा नहीं किया जाता।
* रेज्यूमे का एक निश्चित फॉर्मेट होता है और जगह भी कम होती है, जबकि ब्लॉग में ये सीमाएँ नहीं होतीं।
वह दिन दूर नहीं जब ब्लॉग पूरी रिक्रूटमेंट प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाएगा। जिस तरह कंपनियाँ आज ऑनलाइन रेज्यूमे के जरिए सही व्यक्ति को तलाशने का प्रयास कर रही हैं, जल्द ही वे इस काम के लिए ब्लॉग सर्च भी करेंगी।
टेक्नोलॉजी कंपनियों ने तो रिक्रूटमेंट प्रक्रिया में ब्लॉग का प्रयोग करना शुरू कर दिया है। गेमिंग कंपनियाँ भी ऐसा ही कर रही हैं। माइक्रोसॉफ्ट अपने कर्मचारियों से कहती है कि वे नए प्रोडक्टों को प्रमोट करने और कंपनी में रिक्त स्थानों के बारे में ब्लॉग द्वारा प्रचार करें।
बहरहाल, ब्लॉग से व्यक्ति का काम के प्रति जुनून तो मालूम हो सकता है, लेकिन उसकी पूरी क्षमताओं का सूचक वह भी नहीं हो सकता। उससे यह नहीं मालूम हो सकता कि वह अच्छे से परफॉर्म कर सकता है, कंपनी की संस्कृति में फिट हो सकता है या अच्छे नतीजे ला सकता है।
लेकिन संदर्भों और साक्षात्कारों के साथ ब्लॉग भी महत्वपूर्ण संकेत दे सकता है। ब्लॉगिंग एक ऐसा ट्रेंड है जो जारी रहेगा। प्रतिस्पर्धा वाली व्यापार दुनिया में टेलेंट के लिए मारामारी है, इसलिए कंपनियाँ सही व्यक्ति के चयन में हर हथकंडा अपनाएँगी, जिसमें ब्लॉग भी शामिल है।
सायबर क्रांति ने दुनिया को इस कदर बदल दिया है कि आज सबकुछ ऑनलाइन हो गया है। यहाँ तक कि जॉब भी ऑनलाइन तलाश किया जा रहा है। इसलिए प्रोफाइल पेश करने का ज्यादा बेहतर तरीका इंटरनेट बन गया है। इससे दुनियाभर की कंपनियों के समक्ष प्रोफाइल रखा जासकता है। फलस्वरूप जॉब सर्च व सिलेक्शन के परंपरागत तरीकों में परिवर्तन आ रहा है।