सिविल सेवाएँ : सर्वोत्तम करियर

- डॉ. विजय अग्रवा

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सिविल सेवाएँ देश की सर्वोत्तम सेवाएँ मानी जाती हैं। इसलिए आज इन सेवाओं में इंजीनियर्स, डॉक्टर्स एवं मैनेजमेंट के युवा अधिक से अधिक आने लगे हैं। वस्तुतः सिविल सेवाओं की ओर इस आकर्षण के कई कारण हैं। पहला यह कि यह सेवा सबसे अधिक प्रभावकारी एवं नियंत्रणकारी स्थिति में होती है।

इसे हम यूँ भी कह सकते हैं कि इसके अधिकारी सबसे अधिक अधिकारों से संपन्ना होते हैं। दूसरे यह कि प्रशासन की मुख्यधारा में होने के कारण इसके अधिकारियों का कार्यक्षेत्र अत्यंत व्यापक होता है। यानी कि उनकी नियुक्ति किसी भी विभाग में हो सकती है और प्रत्येक विभाग में ये अधिकारी प्रभावशाली स्थिति में होते हैं। इसलिए समाज में इन्हें सम्मानजनक दृष्टि से देखा जाता है। तीसरे यह कि चूँकि ये चुनौतीपूर्ण कार्यों से जुड़े होते हैं, इसलिए प्रमोशन तथा अन्य सुविधाओं की दृष्टि से भी ये अन्य सेवाओं के अपने समकक्ष मित्रों कीतुलना में काफी आगे रहते हैं।

इन सिविल सेवाओं की परीक्षा का आयोजन दो संस्थाएँ करती हैं- अखिल भारतीय स्तर पर संघ लोक सेवा आयोग तथा राज्यों के स्तर पर प्रत्येक राज्य की लोक सेवा आयोग। संघ द्वारा आयोजित परीक्षा में सफल प्रतियोगी आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, भारतीय राजस्व सेवा तथा भारतीय सूचना सेवा आदि में जाते हैं, जबकि राज्य लोक सेवा आयोगों की परीक्षा में सफल प्रतियोगी डिप्टी कलेक्टर, डीवायएसपी, सेल्सटैक्स ऑफिसर तथा तहसीलदार आदि पदों पर नियुक्त होते हैं।
  सिविल सेवाएँ देश की सर्वोत्तम सेवाएँ मानी जाती हैं। इसलिए आज इन सेवाओं में इंजीनियर्स, डॉक्टर्स एवं मैनेजमेंट के युवा अधिक से अधिक आने लगे हैं। वस्तुतः सिविल सेवाओं की ओर इस आकर्षण के कई कारण हैं।      


अब संघ एवं राज्य लोक सेवा आयोगों की परीक्षा पद्धति एक जैसी हो गई है। ये परीक्षाएँ तीन चरणों में होती हैं। पहले चरण को प्रारंभिक परीक्षा कहते हैं। इसके अंतर्गत सामान्य ज्ञान का एक प्रश्न-पत्र होता है, जो सभी को लेना अनिवार्य है। दूसरा पेपर किसी भी विषय का लिया जा सकता है। ये दोनों ही पेपर्स एक ही दिन में होते हैं तथा सभी प्रश्न वस्तुनिष्ठ प्रकार के होते हैं।

इस चरण में पद की तुलना में 10 से 12 गुना प्रतियोगियों का चयन द्वितीय चरण की परीक्षा के लिए किया जाता है। द्वितीय चरण में अनिवार्य विषय होते हैं- सामान्य ज्ञान(दो प्रश्न-पत्र), सामान्य हिन्दी तथा निबंध। संघ की परीक्षा में निबंध का पेपर अलग से होता है, जबकि कुछ राज्यों की परीक्षाओं में इसे सामान्य हिन्दी में शामिल कर दिया गया है। वैकल्पिक विषयों के अंतर्गत प्रतियोगियों को कोई भी दो विषय लेने होते हैं। प्रत्येक केदो-दो अर्थात वैकल्पिक विषय के कुल चार पेपर्स होते हैं। ये सभी प्रश्न-पत्र व्याख्यायित प्रकार (डिस्किपटिव) होते हैं।

कुल जितने पद विज्ञापित किए जाते हैं, उसके दुगुने अथवा तिगुने संख्या में प्रतियोगियों का चयन तीसरे चरण के लिए किया जाता है। तीसरा चरण साक्षात्कार का होता है। साक्षात्कार के बाद मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार के अंकों को जोड़कर (प्रारंभिक परीक्षा के अंक नहीं जोड़े जाते) प्रावीण्य सूची तैयार की जाती है और उसी क्रम से ऊपर के प्रतियोगियों का चयन सिविल सेवाओं के लिए कर लिया जाता है। यदि साक्षात्कार के बाद भी अचयनित विद्यार्थी सिविल सेवा में आना चाहता है तो उसे इसकी शुरुआत फिर से प्रारंभिक परीक्षा से करनी पड़ती है।

कोई भी विद्यार्थी, जिसने स्नातक कर लिया है तथा जिसकी आयु 21 वर्ष से अधिक तथा 30 वर्ष से कम है, इन परीक्षाओं में बैठ सकता है। स्नातक एवं स्नातकोत्तर परीक्षा में प्राप्त अंकों का कुछ भी संबंध इस परीक्षा में बैठने से नहीं होता। अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है। कहीं-कहीं महिलाओं एवं विकलांगों के लिए भी आरक्षण है। इन वर्गों को आयु की अधिकतम सीमा में छूट दी गई है।

मैंने ऊपर इस परीक्षा की मोटी-मोटी जानकारी दी है। विस्तृत जानकारी के लिए अच्छा होगा कि आप जब ये पद विज्ञापित होते हैं, उस समय का अखबार देखें। चूँकि यह देश की सर्वोत्तम सेवा है, इसलिए स्वाभाविक है कि इसकी चयन सूची में स्थान पाने के लिए काफी मेहनत करने की आवश्यकता होती है, क्योंकि प्रतियोगियों की संख्या बहुत अधिक होती है। लेकिन अक्सर यह देखा गया है कि विद्यार्थी कड़ी मेहनत के साथ इसमें जुटे रहते है। चूँकि प्रतियोगिता कठिन होती है, इसलिए इसमें सफल होने में अनुभव तथा निर्देशन का बहुत महत्व होता है।

अनुभव का अर्थ है- लगातार परीक्षा में बैठते रहना तथा निर्देशन का अर्थ है- पर्याप्त रूप से गाइडेंस का मिलना। यह गाइडेंस कॉलेज के शिक्षकों, सफल प्रतियोगियों तथा अच्छे (याद रखिए कि 'अच्छे') कोचिंग संस्थानों से प्राप्त किया जा सकता है। अच्छे लेखकों की पुस्तकें पढ़ना तथा अच्छे नोट्स तैयार करने की सफलता में बहुत बड़ी भूमिका रहती है। इसी प्रकार परीक्षार्थी की भाषा पर पकड़ अच्छी होनी चाहिए। विषय के प्रति उसकी दृष्टि बहुत साफ तथा मौलिक होनी चाहिए। उसकी अभिव्यक्ति (लेखन में) में तार्किकता होनी चाहिए, न कि बेकार की भावुकता।

अपनी बात 'टू दि प्वाइंट' कहने की क्षमता होनी चाहिए। याद रखिए कि इस परीक्षा में सतही ज्ञान का कोई अर्थ नहीं होता। इन परीक्षाओं में शामिल होने वाले विद्यार्थियों को सामान्य ज्ञान की तैयारी पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि यह विषय सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण होता है। इसके लिए जरूरी है कि विद्यार्थी समाचार, समाचार-पत्र तथा पत्रिकाओं का नियमित अध्ययन करे। इससे अनायास ही उनकी साक्षात्कार की तैयारी भी अच्छी होगी।

(लेखक पत्र सूचना कार्यालय, भोपाल के अपर महानिदेशक हैं।)