Chhath Puja 2024: छठ पर्व के शुभ मुहूर्त, महत्व, कथा, आरती, चालीसा सहित समस्त सामग्री एक साथ

WD Feature Desk

बुधवार, 6 नवंबर 2024 (14:18 IST)
Chhath Puja 2024: छठ पर्व को दीपावली के बाद खासकर बिहार, झारखंड तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है। छठ पूजा का प्रारंभ प्रतिवर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से शुरू होता है। तथा इन दिनों संतान प्राप्ति एवं संतान के सुखी जीवन और सुख-समृद्धि के लिए छठी मैया और सूर्य नारायण की पूजा की जाती है। 
 
Highlights 
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आइए जानते हैं यहां छठ पूजा के शुभ मुहूर्त, छठ व्रत की महत्व, छठ पर्व की कथा, छठी मैया की आरती और सूर्य चालीसा के बारे में...

छठ पूजा के शुभ मुहूर्त :  Chhath Puja Muhurat 2024
 
छठ पूजा 06 नवंबर 2024, बुधवार पंचमी को लोहंडा और खरना
समय : सूर्योदय सुबह 06 बजकर 37 मिनट पर। 
सूर्योस्त सायं 05 बजकर 32 मिनट पर।
 
छठ पूजा 7 नवंबर 2024, गुरुवार को षष्ठी को छठ पूजा, संध्या अर्घ्य
समय : सूर्योदय सुबह 06 बजकर 38 मिनट पर।
सूर्योस्त शाम 05 बजकर 32 मिनट पर।
 
छठ पूजा 8 नवंबर 2024, शुक्रवार सप्तमी को उषा अर्घ्य, पारण का दिन
समय : सूर्योदय सुबह 06 बजकर 38 सुबह मिनट पर।
सूर्योस्त सायं 05 बजकर 31 मिनट पर।
 
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Chhath Puja Importance छठ व्रत का महत्व : पौराणिक शास्त्रों में छठ व्रत को देवी द्रोपदी से जोड़कर देखा जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक छठ व्रत-पर्व मनाया जाता है। यह व्रत खास तौर से पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह मुख्यत: बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में प्रमुख तौर पर मनाया जाता है तथा इसमें भगवान सूर्य देव तथा छठी मैया की पूजा होती है। दीपावली के 6 दिन बाद छठ पर्व मनाया जाता है। और छठ व्रत की सबसे महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि होती है।

अत्यंत पुण्यदायक माना जाने वाला सूर्योपासना का यह महापर्व 4 दिनों तक मनाया जाता है। छठ पूजा/ सूर्य षष्ठी व्रत में सूर्य भगवान की पूजा की जाती है और पृथ्वी के सभी लोगों के सुखी जीवन के लिए सूर्य देव के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। सूर्य देव को ऊर्जा और जीवन शक्ति का देवता माना गया है। इसलिए छठ पर्व पर सुख-समृद्धि तथा पुत्र प्राप्ति की कामना से पूजा की जाती है। साथ ही छठी मैया के जयकारे के साथ ही उनकी आराधना भी की जाती है। 
 
Chhath Parv Story छठ व्रत कथा : वैसे तो छठ व्रत के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। किंतु ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित छठ पूजा के संबंध में यह उल्लेख मिलता है कि इस पर्व पर छठी माता की पूजा की जाती है। इस व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया तब महारानी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। खीर के प्रभाव से एक पुत्र को जन्म दिया परंतु वह शिशु मृत पैदा हुआ। प्रियव्रत पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे।

उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और उसने कहा कि- सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। अत: राजन तुम मेरा पूजन करो तथा अन्य लोगों को भी प्रेरित करो। तब राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को संपन्न हुई थी। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की। तभी से छठ पूजन का प्रचलन प्रारंभ हुआ। 
 
chhath ki aarti : छठ की आरती 
 
जय छठी मैया ऊ जे केरवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
 
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
ऊ जे नारियर जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए॥जय॥
 
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
 
अमरुदवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
 
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
शरीफवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए॥जय॥
 
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
 
ऊ जे सेववा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
 
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
सभे फलवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥

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Surya Chalisa: सूर्य चालीसा   
 
दोहा
 
कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग।।
 
चौपाई
 
जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।
भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर।
 
विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।
अम्बरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।
सहस्रांशु, प्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर।
मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।
उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते।
 
मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता,
सूर्य, अर्क, खग, कलिहर, पूषा, रवि,
आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।
द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।
चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै।
नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।
 
सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।
बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते।
उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।
छन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबलमोह को फंद कटतु है।
अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते।
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देश पर दिनकर छाजत।
 
भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित।
ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा।
पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर।
युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।
बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर।
 
जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।
विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।
सहस्रांशु, सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।
अस जोजजन अपने न माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।
दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै।
अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता।
 
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।
मन्द सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों।
परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदय।
 
भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।
यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं।
 
दोहा
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।
सुख सम्पत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य।।
 
अत: इन दिनों छठ महापर्व जारी है। और छठी मैया और सूर्यदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए छठी मैय्या की आरती, सूर्य स्तोत्र, सूर्य चालीसा और मंत्र आदि पाठ अवश्य करना चाहिए। 

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