कौन है छठ मैया: शास्त्रों में माता षष्ठी देवी को भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री माना गया है। इन्हें ही मां कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि के दिन होती है। षष्ठी देवी मां को ही पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहते हैं। छठी माता की पूजा का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, इन्हें सूर्यदेव की बहन भी माना गया है।
उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की। तभी से पूजा का प्रचलन प्रारंभ हुआ।
छठ पूजा की पौराणिक कथा:-3
पौराणिक शास्त्रों में छठ की कथा को देवी द्रोपदी से जोड़कर भी देखा जाता है। मान्यता है कि जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए, तब द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा था। द्रोपदी के व्रत के फल से पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल गया था। द्रोपदी अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।
छठ पूजा की पौराणिक कथा:-4
एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।