रायपुर। मुस्लिम, सिख और ईसाई जैसे समुदाय को लगातार रिझाने के बाद भाजपा ने इन वर्गों के किसी को भी चुनाव मैदान पर उतारना मुनासिब नहीं समझा। कम से कम भाजपा की पहली सूची से तो इन वर्गों को निराश होना पड़ा है। संकेत मिले हैं कि रुकी बारह सीटों में एक सिख को 'एडजेस्ट' किया जा सकता है।
पाँच सालों में भाजपा ने इन समुदायों को खुश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हज का कोटा बढ़ाने से लेकर अल्पसंख्यक आयोग में अध्यक्ष का पद देना, हज कमेटी और वक्फ बोर्ड का गठन कर मुस्लिम समुदाय को रिझाने का प्रयास किया गया। पार्टी ने अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ बनाकर उसका अध्यक्ष इसी समाज से बनाया। भाजपा नेताओं ने मुस्लिम समाज के कार्यक्रमों में जाकर उनके हित की बड़ी-बड़ी बातें कीं। मदरसों को कंप्यूटर देने और मदरसों में मध्याह्न भोजन योजना लागू कर समाज को प्रभावित किया गया। ऐसे में समाज की अपेक्षाएं बढ़ीं और विधानसभा में प्रतिनिधित्व देने की मांग उठने लगी। प्रदेश में तीन प्रतिशत (करीब पांच लाख) आबादी वाला यह समाज चुनाव को प्रभावित करने की ताकत रखता है।
भाजपा के कुछ नेताओं का मानना है कि इस समाज के मतदाता परंपरागत कांग्रेस समर्थक हैं। 2003 के चुनाव में भाजपा के एक उम्मीदवार को मुस्लिम बहुल एक क्षेत्र से दस हजार में मात्र नौ वोट मिले थे। बहरहाल इस बार भाजपा ने एक बार फिर मुस्लिम समुदाय के किसी व्यक्ति को चुनाव में नहीं उतारा है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने मोहम्मद अकबर और बदरुद्दीन कुरैशी के रूप में इस वर्ग को प्रतिनिधित्व दिया है।
इसके अलावा भाजपा ने ईसाई समुदाय से भी दूरी बरकरार रखी है। एंग्लो इंडियन प्रतिनिधि के रूप में विधानसभा में रोजलीन बैकमेन को नामांकित किए जाने के बाद समुदाय की अपेक्षाएं भाजपा से हुई थीं, लेकिन आखिरकार निराश होना पड़ा। पार्टी के दिग्गज नेता दिलीप सिंह जूदेव ने 'ऑपरेशन घर वापसी' के नाम पर मिशनरियों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। पार्टी के अनुषांगिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी इस समुदाय से निकटता पसंद नहीं है, लिहाजा प्रदेश में करीब साढ़े चार लाख की आबादी वाले इस समुदाय से भाजपा ने दूरी बनाए रखना मुनासिब समझा। भाजपा के पदाधिकारियों ने बताया कि किसी भी क्षेत्र से इस समुदाय के व्यक्ति ने दावा नहीं किया था। संगठन में इस समुदाय की सक्रियता नहीं है।
सिख समाज को भाजपा बड़ी उम्मीदें थीं। 2003 के चुनाव में खुज्जी से रजिंदरपाल सिंह भाटिया को प्रत्याशी बनाकर पार्टी ने इस समाज का विश्वास हासिल करने में सफलता पाई थी। अल्पसंख्यक आयोग में दिलीप सिंह होरा को सदस्य बनाकर समाज से रिश्ते मजबूत करने की कोशिश की गई थी, लेकिन इस बार पहली सूची में ही भाटिया की छुट्टी कर दी गई। प्रदेश में इस समुदाय की आबादी करीब साढ़े तीन लाख है। रायपुर, बिलासपुर, डोंगरगढ़ और कवर्धा जैसे शहरों में सिख मतदाता निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में हैं। बताया गया है कि पहली सूची में समाज का प्रतिनिधित्व नहीं होने से नाराज कुछ प्रभावी लोगों ने दबाव बनाया है, जिसका असर दिखने लगा है। संकेत मिले हैं कि बचे हुए बारह प्रत्याशियों में एक स्थान सिख समाज को दिया जा सकता है।
जैन समाज को महत्व : प्रत्याशी चयन में अल्पसंख्यक जैन समाज को काफी महत्व मिला है। इस समाज के तीन प्रत्याशी राजेश मूणत, संतोष बाफना और लाभचंद बाफना भाजपा के टिकट पर भाग्य आजमाने के लिए मैदान पर उतरे हैं। (नईदुनिया)