खैरागढ़। संगीत की इस नगरी में चुनावी बिगुल बजने के बाद 'जात-पात पूछें सब कोय' की स्वर-लहरी गूँज रही है। भाजपा और कांग्रेस ने जातीय समीकरणों के चलते यहाँ से लोधी- समाज के प्रत्याशी उतारे हैं। भाजपा ने कोमल जंघेल और कांग्रेस ने मोती जंघेल को चुनाव-मैदान में उतारा है। लोधी-समाज के साथ ही यहाँ साहू-समाज के लोगों की भी बहुलता है। साहू-समाज पर इन दो बड़े राजनीतिक दलों के साथ ही बसपा, गोंगपा और शिवसेना भी नजरें गड़ाए हुए हैं। इस चुनाव में यहॉं भाजपा और कांग्रेस को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
लोधी-समाज का वोट भाजपा और कांग्रेस में बँट जाएगा। दारोमदार साहू-समाज के वोट पर है। इस समाज का जिधर ज्यादा झुकाव होगा, जीत उसी की होगी। 2007 में हुए उप-चुनाव में भाजपा ने लोधी-समाज के कोमल जंघेल को चुनाव-मैदान में उतारा था, जिन्हें जीत हासिल हुई। महल के खिलाफ हल का नारा बुलंद कर भाजपा ने यहाँ कांग्रेस के गढ़ को ध्वस्त किया था।
इसी उम्मीद के साथ पुनः जंघेल को टिकट दिया गया है। लेकिन इस बार स्थितियॉं काफी बदली हुई हैं। एक तो परिसीमन के कारण कुछ बदलाव आया है, दूसरे कांग्रेस समेत सभी छोटी पार्टियॉं भी भाजपा के नक्शे कदम पर चल पड़ी हैं, इसलिए भाजपा को दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। यहाँ साहू-समाज का भाजपा-समर्थित एक बड़ा तबका अगर अडिग रहा, तब तो भाजपा की नैया पार हो सकती है। लेकिन अगर उसे दूसरी पार्टियों ने तोड़ लिया तो दिक्कत होगी।
2003 के आम चुनाव में लोधी-समाज के प्रदेश अध्यक्ष कमलेश्वर वर्मा ने भाजपा और कांग्रेस से यहॉं से टिकट मॉंगा था। लेकिन टिकट न मिलने से उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भाग्य आजमाया और 21305 मत हासिल कर भाजपा और कांग्रेस के कान खड़े कर दिए। उस चुनाव में 41 फीसदी कांग्रेस, 25.51 प्रतिशत भाजपा को मत मिले थे। वहीं 19.11 फीसदी मत वर्मा को मिले थे। वे तीसरे स्थान पर रहे। इसका डर भाजपा और काग्रेस के मन में आज भी बना हुआ है। दोनों दलों ने मतदाताओं को लुभाना शुरू कर दिया है। जातिवादी राजनीति के कारण संघर्ष काफी रोचक है। (नईदुनिया)