Merry christmas 2023 : ईसा मसीह के जन्म की रोचक कथा

Birth story of Jesus Christ: 25 दिसंबर सन् 6 ईसा पूर्व को एक यहूदी बढ़ई की पत्नी मरियम (मेरी) के गर्भ से यीशु का जन्म बैथलहम में हुआ। जन्म की इस घटना को क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है। कई विद्वानों का मानना है कि ईसा मसीह का जन्म वसंत ऋतु की किसी तारीख को हुआ तो और कई का मानना है कि 7 जनवरी को उनका जन्म हुआ था। आओ जानते हैं ईसा मसीह के जन्म की रोचक कथा।
 
ईसा जन्म कथा:
2 हजार वर्ष पूर्व की बात है। एक बढ़ई था जिसका नाम युसुफ था। वह इसराइल का नाजरथ नामक एक गांव में रहता था। युसुफ का विवाह मैरी के साथ हुआ था। एक दिन एक परी मैरी के सामने प्रकट हुई और उसने कहा आपके घर एक दिव्य बालक जन्म लेगा। वह एक मसीहा होगा जो दुनिया को बदल देगा। मैरी कुछ दिनों के बाद गर्भवती हुई।
 
इसी बीच बेथलेहम शहर में जगनणना आयोजित की जा रही थी। राज्य में हर किसी को उसमें भाग लेकर अपना नाम लिखवाना था। इसीलिए मैरी भी अपने पति युसुफ के साथ बेथलेहम के लिए निकल पड़ी। उस वक्त बेथलेहम में बहुत भीड़ थी और हर कोई जनगणना में भाग लेने के लिए आया था। इसलिए इन दोनों को आराम करने के लिए कोई जगह नहीं मिली। अंत में उन्हें रात बिताने के लिए एक जगह मिल गई। एक गडरिये ने उन्हें अपने अस्तबल में रुकने की जगह दी। उसी रात उसी जगह पर युशी मसीहा का जन्म हुआ। सूखे घास के अलावा उनके पास कोई बिस्तर नहीं था। उनसे मिलने के लिए चरवाहों के अलावा कोई नहीं था। 
 
बेथलेहेम से बहुत दूर तीन बुद्धिमान पुरुषों ने आसमान में चमकते हुए एक सितारे को देखा, जो कहीं जा रहा था। उन तीनों ने इसे दिव्य माना और वे भी उस सितारे के पीछे हो लिए। वह सितारा वहां पहुंचकर गायब हो गया जहां यीशु थे। वे तीन बुद्धिमान पुरुष यीशु से मिले और उन्हें आशीर्वाद दिया। उन्होंने चरवाहों को  कहा कि ये बच्चा आगे चलकर यहूदी समुदाय का राजा बनेगा। 
 
चरवाहों के कारण सभी जगह ये खबर फैल गई। एक व्यक्ति इस कबर से खुश नहीं था। और वह था उस देश का राजा हेरोड। हेरोड को जब यह पता चला तो उसने सोच कि यह बच्चा तो अपना प्रतिद्वंदी है, लेकिन वह नहीं जानता था कि कौनसा दिव्य बच्चा प्रतिद्वंदी है। इसलिए उसने 2 साल की उम्र तक के सभी बच्चों को मारने का आदेश दे दिया। इस बात का पता चलते ही सौभाग्य से युशी को परिवार रातोरात मिस्र जा पहुंचा। वे राज की मृत्यु के बाद ही अपने घर वापस लौटे।
 
यीशु दूसरे बच्चों से अलग था। वह शास्त्रों के बारे में ज्ञान रखता था। वह शास्त्रों को पढ़ सकता था। वह शास्त्रों की व्याख्या और बहस करना भी जानता था। 12 साल की उम्र तक युशी नाजरथ में ही रहते थे। इसके बाद वे कहां चले गए किसी को पता नहीं। यीशु जब 30 के हुए तब वे नाजरथ लौट आए।
 
मैथ्यू की गॉस्पेल के अनुसार यीशु का जन्म करीब 4 ईसा पूर्व हेरोड दि ग्रेट की डेथ के करीब 2 साल पहले हुए था। जबकि ल्यूक गॉस्पेल के अनुसार यीशु का जन्म 6 ईस्वी में हुआ था।
एक भविष्यवाणी में कहा गया था कि एक ऐसे बच्चे का जन्म होगा जो रोमन साम्राज्य को पूरी तरह से खत्म कर देगा। जब हेरोड को अपने साम्राज्य खोने का डर सताने लगा तो उसने कुछ ज्योतिषियों को बुलाकर कहा कि इसका पता लगाया जाए कि ऐसा बच्चा कहां जन्म लेगा। तब किंग हेरोड ने अपने राज्य में 2 साल तक के बच्चों को मारने का आदेश दे दिया। जिससे बचने के लिए मदर मैरी और युसुफ अपने बच्चे को लेकर मिस्र चले गए। और जब हेरोड की मृत्यु हो गई तब वे फिर से नाजरथ में जाकर बस गए।
 
ईसा मसीह के पिता का नाम युसुफ और माता का नाम मरियम था। 'ल्यूक एक्ट' के अनुसार उनका परिवार नाजरथ गांव में रहता था। उनके माता-पिता नाजरथ से जब बेथलहेम पहुंचे तो वहां एक जगह पर उनका जन्म हुआ। कहते हैं जब यीशु का जन्म हुआ तब मरियम कुंआरी थीं। मरियम योसेफ नामक बढ़ई की धर्म पत्नी थीं। जिस वक्त ईसा मसीह का जन्म हुआ उस वक्त परियों ने वहां आकर उन्हें मसीहा कहा और ग्वालों का एक दल उनकी प्रार्थना करने पहुंचा। ऐसी मान्यता है कि यीशु के जन्म के अवसर पर स्वर्गदूतों ने 'सर्वोच्च गगन में परमेश्वर को महिमा और पृथ्वी पर उसके कृपापात्रों को शांति' यह संदेश कुछ चरवाहों को दिया था।
 
यह भी कहा जाता है कि मरियम को यीशु के जन्म के पहले एक दिन स्वर्गदूत गाब्रिएल ने दर्शन देकर कहा था कि धन्य हैं आप स्त्रियों में, क्योंकि आप ईश्‍वर पुत्र की माता बनने के लिए चुनी गई हैं। यह सुनकर मदर मरियम चकित रह गई थीं। कहते हैं कि इसके बाद सम्राट ऑगस्टस के आदेश से राज्य में जनगणना प्रारंभ हुई तो सभी लोग येरुशलम में अपना नाम दर्ज कराने जा रहे थे। यीशु के माता-पिता भी नाजरथ से वहां जा रहे थे परंतु बीच बेथलेहम में ही माता मरियम ने एक बालक को जन्म दिया।
 
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