कोरोना के कहर से पूरी दुनिया परेशान है। दुनिया के सभी देशों में इस खतरनाक वायरस ने तबाही मचा रखी है। करोड़ों लोग घरों में बंद हैं और लॉकडाउन में सरकारों के सामने उनके के लिए राशन जुटाना बड़ी चुनौती बन गया है। दुनिया के सामने जितनी बड़ी चिंता लोगों के स्वास्थ्य की है, उतनी ही बड़ी परेशानी आर्थिक मोर्चे पर भी है।
भारत ही नहीं, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी जैसे संपन्न देश भी बेबस नजर आ रहे हैं। अमेरिका में 36 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, जबकि 7 लाख से ज्यादा इस महामारी की चपेट में है। इसके बाद भी अमेरिका लॉकडाउन की स्थिति बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है।
राष्ट्रपति ट्रंप ने लॉकडाउन खोलने का अधिकार गवर्नरों को दे दिया है। जल्द ही उन राज्यों में स्थिति सामान्य हो
सकती है जहां कोरोना का असर कम है। भले ही लॉकडाउन को कोरोना से बचने का सबसे बेहतर हथियार माना जा रहा हो पर अमेरिका के इस कदम का अनुसरण कई देश कर सकते हैं। बहरहाल, आइए जानते हैं लॉकडाउन खुलने के बाद दुनिया की अर्थव्यवस्था किन 5 मोर्चों पर जूझती नजर आ सकती है...
नकदी की कमी : लॉकडाउन खुलने के बाद दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की ही होगी। इस खतरनाक वायरस ने सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका, स्पेन, फ्रांस और इटली जैसे साधन संपन्न देशों में किया है। अत: यह देश पहले अपनी स्थिति मजबूत करेंगे और फिर अन्य देशों पर ध्यान देंगे। ऐसे में विकासशिल देशों और अविकसित देशों में नकदी की कमी हो सकती है। कई कमजोर देशों की अर्थव्यवस्था इस स्थिति में दम तोड़ सकती है। हालांकि इन देशों को IMF जैसी संस्थाओं से बड़ी उम्मीद है।
बेरोजगारी : कोरोना से दुनिया के पांचों महाद्वीप प्रभावित हैं। ऐसे में पूरी दुनिया में काम बंदी जैसा हाल है। आर्थिक मंदी की कगार पर खड़ी दुनिया के सामने बेरोजगारी एक बड़ी समस्या बन सकती है। इससे निपटने के लिए हर देश को अपना प्लान तैयार करना होगा।
अमेरिका जैसे देशों में लॉकडाउन खत्म होने के बाद बेरोजगारी तेजी से बढ़ने की आशंका है। इस मामले में
यूरोपीय देशों की स्थिति भी ज्यादा ठीक नहीं है। एशिया और अफ्रीका के विकासशील देशों को भी इससे बड़े पैमाने पर जूझना पड़ सकता है। जिस देश ने इस समस्या से निजात पा ली, आर्थिक मोर्चे पर उसकी ताकत का लोहा दुनिया मान लेगी।
आयात-निर्यात : इस महामारी के बाद सभी देशों के सामने आयात-निर्यात एक बड़ी चुनौती बन सकता है। चीन के वुहान से पूरी दुनिया में फैले इस वायरस ने सबसे ज्यादा असर अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर ही डाला है। चीन की साख पर बुरी तरह प्रभावित हुई है।
अमेरिका और चीन आर्थिक मोर्चे पर एक बार फिर आमने-सामने आ सकते हैं। इससे छोटे देशों की दुविधा बढ़ेगी। एशिया और अफ्रीका के गरीब देश, जो अन्य देशों से बड़ी मात्रा में सामान आयात करते हैं उनके लिए आने वाला समय काफी मुश्किल दिखाई दे रहा है।
निवेश की कमी : अर्थव्यवस्था ठप होने की वजह से दुनिया भर में निवेशकों की पूछ-परख बढ़ गई है। सभी को निवेश चाहिए। आर्थिक हालात ठीक नहीं होने की वजह से बड़े बड़े निवेशकों के पसीने छूट गए हैं। शेयर बाजारों में आई गिरावट से उन्हें बड़ा झटका लगा है।
पूरी दुनिया के सामने पहली बार इस तरह की स्थिति आई है। निवेश की कमी को दूर करने के लिए लगभग सभी देशों को अपना सरकारी खजाना खोलना होगा। साथ ही इस बात को भी सुनिश्चित करना होगा कि पैसा सही जगह, सही ढंग से खर्च हो।
कारोबार का संचालन : दुनियाभर लॉकडाउन है, हवाई परिवहन लंबे समय से बंद है। ऐसे में उन कंपनियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है जिनका प्रोडक्शन पूरी तरह ठप हो गया है। इनमें से कई कंपनियां तो ऐसी है जो 2 दिन भी अपना उत्पादन बंद नहीं कर सकतीं।
ऐसी स्थिति में उद्योग धंधों का अपने पैरों पर फिर खड़ा होगा किसी चुनौती से कम नहीं है। वैसे यह ऐसा समय है
जब सभी उद्योग धंधों की सरकारी मदद की आस है। हर कोई चाहता है कि उसे आर्थिक पैकेज का लाभ मिले ताकि आर्थिक रूप से मजबूत होकर वह देश के विकास में अपना योगदान दे सके।