इंदौर। कोरोनावायरस (Coronavirus) की दूसरी लहर से पूरा देश एक बार फिर 'सन्नाटे' में है। लोगों को रह-रहकर मार्च 2020 याद आने लगा जब अचानक लॉकडाउन (Lockdown) की घोषणा कर दी गई थी। तब सड़कें सूनी थीं, बाजारों में सन्नाटा पसरा हुआ था। आज यानी 17 मार्च को इंदौर का दृश्य भी वैसा नहीं तो काफी कुछ मिलता-जुलता जरूर दिखाई दे रहा था। सड़कें भले ही सूनी नहीं थीं, लेकिन बाजारों में जरूर सन्नाटा पसरा हुआ था।
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कोरोनावायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच इंदौर में बुधवार रात से प्रशासन ने पाबंदियां (कर्फ्यू नहीं) लागू कर दी हैं, जिसके तहत सभी बाजार रात 10 बजे बाद पूरी तरह बंद रहेंगे। सिर्फ जरूरी दुकानें इनमें किराना, दवाई दुकानें, दूध डेयरी आदि शामिल हैं, खुली रह सकती हैं। लेकिन, शराब दुकानों का रात 10 बजे बाद खुले रहना समझ नहीं आया।
उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ दिनों से इंदौर में लगातार 200 से ज्यादा संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं। दरअसल, रात साढ़े 9 बजे के लगभग ही पुलिस सक्रिय हो गई और वाहनों से दुकानों को बंद कराने का अनाउंसमेंट शुरू हो गया। पहले दिन काफी सख्ती नजर आई।
जगह-जगह वाहन चालकों को रोका जाने लगा, खासकर ऐसे व्यक्तियों को जो मास्क नहीं लगाए हुए थे। शहर के हृदयस्थल कहे जाने वाले राजबाड़ा चौक पर वाहनों की आवाजाही तो थी, लेकिन आसपास की दुकानें पूरी तरह बंद थीं।
इसके उलट रात ढाई बजे तक गुलजार रहने वाले सराफा बाजार में तो पूरी तरह सन्नाटा पसरा हुआ था। इक्के-दुक्के लोग ही नजर आ रहे थे। ज्यादातर लोग अपना सामान समेटकर जा रहे थे। वहां दुकानें समय से पहले यानी साढ़े 9 बजे ही बंद करा दी गई थीं या फिर स्वयं दुकानदारों ने ही बंद कर दी थीं। हालांकि सराफा में दुकान लगाने वालों की पीड़ा उनके चेहरे पर साफ पढ़ी जा सकती थी। वे प्रशासन के इस निर्णय से सहमत नहीं दिखाई दिए।
सराफा में पावभाजी और डोसा की दुकान चलाने वाले मुकेश यादव ने बहुत ही भारी मन से बताया कि लंबे लॉकडाउन के बाद ढाई-तीन महीने पहले ही हमारा धंधा शुरू हुआ था, एक बार फिर हम पुरानी स्थिति में ही आ गए हैं। उनकी परेशानी खुद की तो थी ही, बल्कि अपने साथ काम करने वालों के लिए भी थी। उनका कहना था कि बड़ी मुश्किल से व्यवसाय की गाड़ी पटरी पर आ रही थी, लेकिन प्रशासन की पाबंदियों ने एक बार फिर पहले जैसी स्थिति में ला दिया है। अब समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे धंधा चलेगा और कैसे परिवार चलाएंगे?
यह सिर्फ मुकेश की कहानी नहीं है, दूसरे लोगों की भी यही स्थिति है। कोकोनट क्रश का काम करने वाले व्यवसायी के साथ जुड़े शुभम ठाकुर ने बताया कि 2-3 महीने हुए हैं जब हम गांव से लौटे हैं। एक बार फिर असमंजस की स्थिति में हैं। उन्होंने कहा कि हम जिसके साथ काम करते हैं, यदि उसका ही कारोबार नहीं चलेगा तो वह हमें क्या और कैसे देगा? शुभम ने कहा कि रात में पाबंदियां लगाने से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला है।
इसी तरह इंदौर में खाने-पीने के एक और ठिकाने 56 दुकानों पर पौने ग्यारह बजे के आसपास पूरी तरह सन्नाटा था। सभी दुकानें बंद थीं। सिर्फ कुछ लोग वहां सफाई में जरूर जुटे थे।
कुल मिलाकर पाबंदी के पहले दिन शहर में पुलिस और प्रशासन ने तो सख्ती दिखाई ही, लेकिन लोगों ने भी पूरे अनुशासन का परिचय देते हुए (भले ही मजबूरी में) अपनी दुकानों को समय से पहले बंद कर दिया। (सभी फोटो : धर्मेन्द्र सांगले)