साथ जन्मे और कब्र भी साथ बनी, कोरोना का ग्रास बने जुड़वां इंजीनियर भाई...

हिमा अग्रवाल
मंगलवार, 18 मई 2021 (13:57 IST)
जोयफ्रेड और रोलफ्रेड महज 5 मिनट के अंतर से मेरठ में जुड़वां पैदा हुए और दोनों ने इंजीनियरिंग के बाद हैदराबाद की एक कंपनी में नौकरी जॉइन की। अपने जन्मदिन के एक दिन बाद इन जुड़वां भाइयों को कोरोना (Corona) हुआ और 19 दिन के संघर्ष के बाद दोनों की जान चली गई।
 
ये दोनों भले ही दो जिस्म थे मगर थे एक जान की तरह, क्योंकि एक की मौत की खबर की आहट से दूसरे की भी सांसें थम गईं। महज 22 घंटे की अंतराल से दो इंजीनियर बेटों को खोने के गम से परिवार टूट गया है। आसपास के घरों में मातम पसरा हुआ है। 
 
इन जुड़वां भाइयों के टीचर पिता ग्रेगरी रेमंड राफेल 23 अप्रैल 1997 का दिन याद करते हैं जब उनकी पत्नी सोजा अस्पताल में थीं।
 
अस्पताल के लेबर रूम से बाहर आकर कोई उनको खुशखबरी सुनाए, उस क्षण का वह बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। डॉक्टर ने आकर उन्हें बधाई दी की उनके जुड़वां बेटे हुए हैं। दो बेटों को पाकर उनकर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा और उन्होंने टीचर पत्नी और जुड़वां बच्चों को घर लाकर जश्न मनाया। इस टीचर दंपति के लिए 23 अप्रैल का दिन बेहद अहम था, 24 वर्ष तक जुड़वां बेटों के जन्म को वह यादगार दिन के रूप में सेलीब्रेट करते रहे। मगर 24 बरस बाद 24 अप्रैल के दिन उनके दोनों जुड़वां बेटे कोरोना पीड़ित हुए बीती 13 और 14 मई को मौत हो गई।
 
दोनों भाइयों का जन्म एक साथ हुआ और जिंदगी का साथ भी महज 22 घंटे के अंतर से खत्म हो गया। पिता रेमंड बताते हैं कि उनके दोनों बेटे जोफ्रेड वर्गीज ग्रेगरी और राल्फ्रेड जॉर्ज ग्रेगरी ने 24वां जन्मदिन 23 अप्रैल को मनाया था। जुड़वा भाई होने के नाते वह हर काम साथ करते थे। एक साथ खाते-पीते, खेलते और पढ़ाई करते। उनकी एकजुटता ने दोनों को एक साथ ही कंप्यूटर इंजिनियर बनाया और साथ ही दोनों ने हैदराबाद में नौकरी की। नियति की क्रूरता ही कहिए दोनों ही भाई इस दुनिया को सदा के लिए साथ-साथ ही अलविदा कह गए।
 
मेरठ कैंट क्षेत्र में रहने वाले दोनों जुड़वां भाइयों को बुखार आया था। परिवार ने पहले सामान्य बुखार मानते हुए घर पर ही इलाज शुरू कर दिया। बुखार बढ़ने पर 1 मई को दोनों भाइयों को अस्पताल लाया गया, जहां उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई। उपचार के कुछ दिन बाद उनकी दूसरी आरटी-पीसीआर जांच रिपोर्ट निगेटिव आई थी। जिसके चलते डॉक्टर उन्हें कोविड वार्ड से आईसीयू में शिफ्ट करने की योजना बना ही रहे थे, इसी बीच उन्होंने दम तोड़ दिया।
 
23 अप्रैल 2021 जन्मदिन से अगले दिन यानी 24 अप्रैल को जोफ्रेड और राल्फ्रेड की तबीयत खराब हुई। कोरोना टेस्टिंग में वह पॉजिटिव आए। परिवार को पता चलते ही वह दहशत में आ गया। माता-पिता को चिंता थी, कि यदि दोनों में से किसी एक को कुछ भी हुआ तो वह दूसरे को क्या जबाव देंगे। परिवार और आसपास के लोगों के मुताबिक जीवन के 24 बरस दोनों भाइयों ने एक जैसा ही किया, दोनों की पसंद ना पसंद खुशी और गम सब एक समान थे।
 
टीचर दंपति के दिल में रह-रहकर एक ही बात आती थी कि दोनों साथ ही स्वस्थ होकर घर आएंगे। यदि एक भाई को कुछ हुआ तो दूसरा उस गम को सह नहीं पाएगा। माता-पिता का डर वास्तविकता में उनके सामना आ गया। दोनों भाई एक दूसरे की जुदाई 24 घंटे भी ना सह पाए।
 
कोविड से पीड़ित राल्फ्रेड ने आखिरी फोन अपनी मां को किया था और बताया था कि वह ठीक हो रहा है, वही भाई जोफ्रेड के स्वास्थ्य के बारे पूछा कि वह कैसा है।
 
परिवार ने राल्फ्रेड से जोफ्रेड की मौत की खबर को छुपाया और कहा कि वह दिल्ली अस्पताल में इलाज के लिए शिफ्ट किया गया है। तब तक जोफ्रेड की मौत हो चुकी थी। लेकिन राल्फ्रेड को अपने भाई से जुदाई का अहसास हो चुका था, उसने अपनी मां से कहा तुम झूठ बोल रही हो और फोन काट दिया।
 
दोनों भाइयों की मौत से परिवार पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा है। आसपास के लोग भी गमहीन है। पड़ोसियों का कहना है कि दोनों भाई जिंदादिल थे, किसी प्रकार का कोई ऐब नही था। सुख-दुख में सबके साथ कंधा मिलाकर खड़े रहते थे। उनके जाने के बाद सबकी आंखे नम थी और घरों में चूल्हा भी नही जला।
 
इन जुड़वां इंजीनियरों ने परिवार को हर खुशी एक साथ दी, एक बिस्तर पर सोए और साथ खाना खाया, कामयाबी भी साथ में हासिल की। वहीं  मरने के बाद भी इन दोनों ने साथ नही छोड़ा, दोनों की कब्र भी इसी की साक्षी है।

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