Covid-19 : कोरोना वायरस के मरीजों पर होता है प्रार्थना का असर? अमेरिका में शुरू हुई रिसर्च

रविवार, 3 मई 2020 (11:24 IST)
कंसास सिटी। कंसास सिटी में भारतीय मूल के अमेरिकी फिजिशियन ने यह जानने के लिए अध्ययन शुरू किया है कि क्या 'दूर रहकर की जाने वाली रक्षात्मक प्रार्थना' जैसी कोई चीज ईश्वर को कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों को ठीक करने के लिए मना सकती है।
 
धनंजय लक्कीरेड्डी ने 4 महीने तक चलने वाले इस प्रार्थना अध्ययन की शुक्रवार को शुरुआत की जिसमें 1,000 कोरोना वायरस मरीज शामिल होंगे जिनका आईसीयू में इलाज चल रहा है।
 
अध्ययन में किसी भी मरीज के लिए निर्धारित मानक देखभाल प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। उन्हें 500-500 के दो समूह में बांटा जाएगा और प्रार्थना एक समूह के लिए की जाएगी। इसके अलावा किसी भी समूह को प्रार्थनाओं के बारे में नहीं बताया जाएगा।
 
राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान को उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक चार माह का यह अध्ययन, दूर रहकर की जाने वाली रक्षात्मक बहु-सांप्रदायिक प्रार्थना की कोविड-19 मरीजों के क्लीनिकल परिणामों में भूमिका की पड़ताल करेगा।
 
बिना किसी क्रम के चुने गए आधे मरीजों के लिए पांच सांप्रदायिक रूपों - ईसाई, हिंदू, इस्लाम, यहूदी और बौद्ध धर्मों- में 'सर्वव्यापी' प्रार्थना की जाएगी जबकि अन्य मरीज एक दूसरे समूह का हिस्सा होंगे।
 
सभी मरीजों को उनके चिकित्सा प्रादाताओं द्वारा निर्धारित मानक देखभाल मिलेगी और लक्की रेड्डी ने अध्ययन को देखने के लिए चिकित्सा पेशेवरों की एक संचालन समिति का गठन किया है।
 
लक्की रेड्डी ने कहा कि हम सभी विज्ञान में यकीन करते हैं और हम धर्म में भी भरोसा करते हैं। उन्होंने कहा कि अगर कोई अलौकिक शक्ति है, जिसमें हम में से ज्यादातर यकीन करते हैं, तो क्या वह प्रार्थना और पवित्र हस्तक्षेप की शक्ति परिणामों को सम्मिलित ढंग से बदल सकती है? हमारा यही सवाल है।
 
जांचकर्ता यह भी आकलन करेंगे कि कितने समय तक मरीज वेंटिलेटर पर रहे, उनमें से कितनों के अंगों ने काम करना बंद कर दिया, कितनी जल्दी उन्हें आईसीयू से छुट्टी दी गई और कितनों की मौत हो गई। (भाषा)

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