मानव व्यवहार : वैज्ञानिकों ने महामारी से इसके बारे में क्या सीखा

Webdunia
शुक्रवार, 2 जुलाई 2021 (19:43 IST)
फीफे (ब्रिटेन)। महामारी के दौरान लोगों के व्यवहार के बारे में बहुत सारी धारणाएं बनाई गईं। उनमें से कई धारणाएं गलत थीं, जो विनाशकारी नीतियों की ओर ले जाती थीं। कई सरकारों को चिंता थी कि उनके महामारी प्रतिबंधों से लोगों को व्यवहारगत थकान होने लगेगी, जिससे लोग प्रतिबंधों का पालन करना बंद कर देंगे। ब्रिटेन में प्रधानमंत्री के पूर्व मुख्य सलाहकार डॉमिनिक कमिंग्स ने हाल ही में स्वीकार किया था कि देश में जल्दी लॉकडाउन नहीं लगाने का यही कारण था।

इस बीच, पूर्व स्वास्थ्य सचिव मैट हैनकॉक ने खुलासा किया कि खुद को पृथक करने वाले लोगों को वित्तीय और अन्य प्रकार की सहायता न देने के पीछे सरकार की यह सोच थी कि इसके जरिए व्यवस्था के साथ खिलवाड़ किया जा सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि वायरस से संक्रमित लोग यह झूठा दावा कर सकते हैं कि वे अपने सभी दोस्तों के संपर्क में थे, ताकि उन सभी को पैसा दिलवा सकें।

इन उदाहरणों से पता चलता है कि कुछ सरकारें अपने नागरिकों पर कितना गहरा अविश्वास करती हैं। जैसे कि वायरस का होना पर्याप्त नहीं था, जनता को समस्या के एक अतिरिक्त हिस्से के रूप में चित्रित किया गया। लेकिन क्या यह मानव व्यवहार का एक सटीक दृष्टिकोण है?

अविश्वास न्यूनतावाद के दो रूपों पर आधारित है (इसके मूलभूत घटकों के संदर्भ में कुछ जटिल का वर्णन करना। पहला मनोविज्ञान को विशेषताओं तक सीमित कर रहा है) और वह भी व्यक्तिगत दिमाग की सीमाओं में। इस दृष्टिकोण में मानव का मन स्वाभाविक रूप से त्रुटिपूर्ण है, जो सूचनाओं को विकृत करने वाले पूर्वाग्रहों से घिरा रहता है। इसे जटिलता, संभाव्यता और अनिश्चितता से निपटने में असमर्थता के रूप में देखा जाता है और यह मान लिया जाता है कि संकट में घबराने की प्रवृत्ति होती है।

सत्ता में बैठे लोगों के लिए यह ख्याल आकर्षक है। लोगों को यह समझाकर कि वह खुद की देखभाल करने में असमर्थ हैं, यह उनकी देखभाल के लिए सरकार की आवश्यकता को उचित ठहराता है। कई सरकारें इस दृष्टिकोण का पालन करती हैं और विभिन्न इकाइयां स्थापित करके व्यवहार विज्ञान टीमों को लोगों की सोच में सूक्ष्म हेरफेर करके सही निर्णय लेने का काम सौंपा जाता है।

यह काम इतनी चतुराई से किया जाता है कि लोगों को अपने निर्णय में हेरफेर किए जाने का पता भी नहीं चलता। लेकिन यह तेजी से स्पष्ट होता जा रहा है कि यह दृष्टिकोण सीमित है। जैसा कि महामारी ने दिखाया है कि जब संकट में व्यवहार की बात आती है तो यह विचार अपने आप में त्रुटिपूर्ण है।

हाल के वर्षों में शोध से पता चला है कि संकट में लोगों के घबराने की धारणा एक मिथक है। लोग आमतौर पर नपे-तुले और व्यवस्थित तरीके से संकट का जवाब देते हैं, वे एक-दूसरे की देखभाल करते हैं। इस व्यवहार के पीछे प्रमुख कारक साझा पहचान की भावना का उदय है। दूसरों को शामिल करने के लिए स्वयं का यह विस्तार हमें अपने आसपास के लोगों की देखभाल करने और उनसे समर्थन की अपेक्षा करने में मदद करता है। यह कुछ ऐसा होता है जो समूहों में उभरता है।

'मनोविज्ञान' के साथ समस्या : एक अन्य प्रकार का न्यूनीकरणवाद जिसे सरकारें अपनाती हैं, वह है मनोविज्ञान, जब आप लोगों के व्यवहार की व्याख्या को केवल मनोविज्ञान तक सीमित कर देते हैं। लेकिन ऐसे कई अन्य कारक होते हैं जो हमारे व्यवहार के लिए जिम्मेदार होते हैं। विशेष रूप से, हम यह तय करने के लिए कि क्या करने की आवश्यकता है, और इसे करने में सक्षम होने के लिए सूचना और व्यावहारिक साधनों (कम से कम पैसा नहीं!) पर भरोसा करते हैं।

यदि आप लोगों को केवल मनोविज्ञान तक सीमित कर देते हैं, तो यह उनके कार्यों को पूरी तरह से व्यक्तिगत पसंद का परिणाम बना देता है। यदि हम संक्रमित हो जाते हैं, तो ऐसा इसलिए है क्योंकि हमने उन तरीकों से कार्य करना चुना जिससे संक्रमण हुआ : हमने बाहर जाने और सामाजिककरण करने का फैसला किया, हमने शारीरिक दूरी की सलाह को नजरअंदाज कर दिया।

व्यक्तिगत जिम्मेदारी और दोष का यह मंत्र निश्चित रूप से महामारी के दौरान ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया के मूल में रहा है। जब मामले बढ़ने लगे तो सरकार ने इसके लिए छात्रों पर पार्टी करने का आरोप लगाया। हैनकॉक ने युवाओं को चेतावनी भी दी कि ऐसा करने पर सरकार उनके अनुदान रोक देगी। और सरकार जैसे ही प्रतिबंधों को पूरी तरह से हटाने की परिकल्पना करती है, लोगों को क्या करना चाहिए, इस पर ध्यान और भी मजबूत हो जाता है। जैसा कि प्रधानमंत्री ने हाल ही में कहा था : मैं चाहता हूं कि हम लोगों पर भरोसा करें कि वे जिम्मेदार हों और सही काम करें।

इस तरह के आख्यान इस तथ्य को नजरअंदाज करते हैं कि महामारी के विभिन्न महत्वपूर्ण बिंदुओं पर, संक्रमण इसलिए नहीं बढ़े क्योंकि लोग नियम तोड़ रहे थे, बल्कि इसलिए बढ़े क्योंकि लोग काम पर जाने और मदद के लिए बाहर खाने जैसी सलाह पर अमल कर रहे थे। और अगर लोग नियम तोड़ते थे, तो अक्सर ऐसा इसलिए होता था क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं होता था। कई वंचित वर्गों के लोग घर से काम नहीं कर पा रहे थे और उन्हें पेट भरने के लिए काम पर जाना पड़ता था।

इन मुद्दों को हल करने और लोगों को खुद को और दूसरों को वायरस के सामने उजागर करने से बचने में मदद करने की बजाय, व्यक्तिगत जिम्मेदारी की व्यक्तिवादी कथा पीड़ित को दोषी ठहराती है और वास्तव में कमजोर समूहों को और अधिक पीड़ित बना देती है। ब्रिटेन के शहरों में जैसे ही डेल्टा संस्करण ने जोर पकड़ा, हैनकॉक ने संसद में खड़े होकर इसके लिए बार-बार उन लोगों को दोषी ठहराया जिन्होंने वैक्सीन नहीं लेने का निर्णय किया था।
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यह हमें एक महत्वपूर्ण बिंदु पर लाता है। सरकार के अविश्वास और उसके व्यक्तिवादी मनोविज्ञान के साथ मूल मुद्दा यह है कि यह बड़ी समस्याएं पैदा करता है। ब्रिटिश सरकार ने यह मान लिया कि लोग संज्ञानात्मक नाजुकता के कारण कोविड-19 का मुकाबला करने के लिए जरूरी उपायों का पालन करेंगे। लेकिन सबूतों से पता चला कि जनता के बीच समुदाय की भावना के कारण पालन अधिक था, उन क्षेत्रों को छोड़कर जहां पर्याप्त साधनों के बिना पालन करना मुश्किल है।
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व्यक्तिगत जिम्मेदारी और दोष पर जोर देने के बजाय, महामारी की एक सफल प्रतिक्रिया समुदाय को बढ़ावा देने और सहायता प्रदान करने पर होनी चाहिए थी। लेकिन यहां इसका उलटा हो रहा था। यदि कोई सरकार बार-बार आपको बताती है कि समस्या आपके आसपास के लोगों में है तो आपके भीतर समुदाय के प्रति विश्वास और एकजुटता में कमी आना स्वाभाविक है।
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ब्रिटेन में भी ठीक ऐसा ही हुआ, जहां ज्यादातर लोगों (92%) ने कहा कि वह नियमों का पालन करते हैं, लेकिन दूसरे नहीं करते। इसका सीधा परिणाम यह हुआ कि सरकार की मनोवैज्ञानिक धारणाओं ने, वास्तव में, संकट से निपटने के लिए हमारे पास जो सबसे बड़ी संपत्ति थी, परस्पर सहायता को तत्पर एक संगठित और एकीकृत समुदाय, उसको बर्बाद कर दिया।

जब अंततः कोविड-19 के प्रति ब्रिटेन की प्रतिक्रिया के बारे में जांच की जाती है, तो यह आवश्यक है कि हम विफलता के मनोवैज्ञानिक और व्यवहारिक आयामों पर उतना ही ध्यान दें जितना कि निर्णयों और नीतियों को लागू करने पर दिया जाता है। सरकार द्वारा मानव व्यवहार के गलत मॉडल को स्वीकार करने और उस पर भरोसा करने के तरीके को उजागर करके ही हम ऐसी नीतियों का निर्माण शुरू कर सकते हैं जो समस्या के हल की दिशा में काम करती हैं।(द कन्वरसेशन)

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