जिस टीम ने अपनी वनडे टीम सबसे आखिर में घोषित की हो उससे कोई भी इस विश्वकप में खास उम्मीद नहीं लगा रहा था। श्रीलंका की टीम ने विश्वकप शुरु होने के 2 दिन पहले अपनी टीम की घोषणा की थी। इस टीम में मशहूर ऑलराउंडर वानिंदू हसरंगा नहीं थे।
टीम का युवा गेंदबाजी क्रम था लेकिन टीम को पहले 3 मैचों में इस कारण ही हार का सामना करना पड़ा था। यहीं से टीम की लय बिगड़ गई। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टीम के बल्लेबाजों ने प्रभावित किया लेकिन स्कोर बहुत बड़ा साबित हुआ। इसके बाद टीम पाकिस्तान से भिड़ी। 345 का स्कोर भी खराब गेंदबाजी बचा ना सकी। तीसरे मैच में ऑस्ट्रेलिया ने श्रीलंका के खिलाफ जीत से खाता खोला।
हालात यह हो गई कि श्रीलंका इस वनडे विश्वकप में जीत अर्जित करने वाली आखिरी टीम बनी। नीदरलैंड्स जो कि श्रीलंका के खिलाफ वनडे विश्वकप क्वालिफायर के फाइनल में हारी थी। उस तक को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ जीत मिल चुकी थी।
अब तक श्रीलंका सिर्फ इंग्लैंड के खिलाफ जीत पर ही खुश हो सकती है, क्योंकि अफगानिस्तान के खिलाफ उलटफेर से उसकी सारी उम्मीदें खत्म हो गई हैं।
ऐसे में जान लेते हैं कि श्रीलंका के खराब प्रदर्शन के क्या कारण रहे
1) चोटों से जूझती रही टीम- श्रीलंका की टीम शुरुआत से ही चोटों से जूझती हुई नजर आई। पहले वानिंदू हसरंगा को टीम में नहीं लिया गया। इसके बाद टीम को बड़ा झटका तब लगा जब ऑलराउंडर और कप्तान दासुन शनका ही चोट के कारण बाहर हो गए। सिलसिला यहां भी नहीं रुका, मथीश पथिराना को भी स्वदेश लौटना पड़ा और पिछले संस्करण के कप्तान 36 साल के एँजलो मैथ्यूज को टीम में शामिल किया गया। इंग्लैंड के खिलाफ 3 विकेट लेकर जीत के नायक रहे लाहिरु कुमारा भी बाहर हो गए और उनकी जगह दुशमंत चमीरा को शामिल किया गया। खिलाड़ियों के अंदर और बाहर होने से टीम की लय ऐसी बिगड़ी कि टीम एकजुट होकर मैदान पर दिखी ही नहीं।
2) कुशल मेंडिस को नहीं था कप्तानी का अनुभव- 2 मैचों में हार देकर स्वदेश लौट चुके दासुन शनका के बाद श्रीलंका की कप्तानी की जिम्मेदारी कुशल मेंडिस पर थी।उनकी कप्तानी में अनुभवहीनता शुरुआत से ही दिख रही थी। इंग्लैंड के खिलाफ टीम को जरूर जीत मिली लेकिन ऑस्ट्रेलिया और अफगानिस्तान के खिलाफ उनकी कप्तानी पर सवाल उठे। कुल मिलाकर देखा जाए तो यह विश्वकप कप्तान और श्रीलंका दोनों के लिए एक बुरे सपने जैसा विश्वकप रहा।