नामियों-गिरामियों के चिट्ठों की चर्चा के बाद आज कुछ अनाम बातें की जाएँ। ब्लॉग-चर्चा का अगला पड़ाव ऐसा ही एक अनाम ब्लॉग है। ब्लॉगर का परिचय सिर्फ इतना ही है कि वो पत्रकार हैं। बाकी उनका परिचय उनकी कलम देती है, उनका लिखा हुआ देता है।
अनामदास का चिट्ठा हिंदी के कुछ बहुत लोकप्रिय और पढ़े जाने वाले चिट्ठों में से है। अलग हटकर चुने गए विषयों पर लिखी हर पोस्ट की भाषा में एक खास रवानी है। विषयों का चुनाव बस यूँ ही कुछ लिखने के लिए लिख दिया गया जैसा मसला नहीं है। हर पोस्ट के पीछे एक विचार है, एक बात है, जो कहने की कोशिश की जा रही है।
बौद्धिक रूप से थोड़ी भी समृद्ध और बेहतरीन पठनीय सामग्री की तलाश कर रहे लोगों के लिए इस अनाम चिट्ठे पर बहुत कुछ है। एक पोस्ट 'जो हो न सका, उसकी तलाश है मुझे' में वे लिखते हैं :
कुछ लोग दावा करते हैं कि उन्हें उनके जीवन का उद्देश्य मिल गया है-- देशसेवा, गौसेवा, जनसेवा, हिंदीसेवा से लेकर कारसेवा और अब नेटसेवा तक। मुझे कोई उद्देश्य नहीं मिला है, जिस तरह जीता हूँ उसे उद्देश्य कहने का हौसला मुझमें नहीं है।
मुझे जीवन का उद्देश्य तो नहीं पता लेकिन जिसे आभासी दुनिया कहा जाता है वहाँ मैंने स्वेच्छा से जन्म लिया। स्वयंभू हूँ, हर्मोफ़र्डाइट हूँ--एककोशीय जीव, जो ख़ुद से टूटकर बना है।
अलग हटकर चुने गए विषयों पर लिखी हर पोस्ट की भाषा में एक खास रवानी है। विषयों का चुनाव बस यूँ ही कुछ लिखने के लिए लिख दिया गया जैसा मसला नहीं है। हर पोस्ट के पीछे एक विचार है, एक बात है, जो कहने की कोशिश की जा रही है।
ऐसी ही एक और रोचक पोस्ट 'नवरात्र में शेर और स्कूटर पर सवार माताएँ' में वे लिखते हैं :
'नवरात्र चल रहा पुण्यभूमि भारत में। नारी शक्ति की आराधना उत्कर्ष पर है। एक ऐसे देश में जहाँ शाम ढलने के बाद बाहर निकलने में महिलाओं को डर लगता है। भारत विडंबनाओं और विरोधाभासों का देश है, इसकी सबसे अच्छी मिसाल नवरात्र में देखने को मिलती है जब लोग हाथ जोड़कर माता की प्रतिमा को प्रणाम करते हैं और हाथ खुलते ही पूजा पंडाल की भीड़ का फ़ायदा उठाने में व्यस्त हो जाते हैं। भारत का कमाल हमेशा से यही रहा है कि संदर्भ, आदर्श, दर्शन, विचार, संस्कार सब भुला दो लेकिन प्रतीकों को कभी मत भुलाओ।'
इसी पोस्ट में आगे वे लिखते हैं, - 'स्त्री स्वरूप की पूजा तभी हो सकती है जब वह शेर पर सवार हो, उसके हाथों में तलवार-कृपाण-धनुष-बाण हो या फिर उसे जीते-जी जलाकर सती कर दिया गया हो, दफ़्तर जाने वाली, घर चलाने वाली, बच्चे पालने वाली, मोपेड चलाने वाली औरतें तो बस सीटी सुनने या कुहनी खाने के योग्य हैं।'
ये तो कुछ थोड़े से उदाहरण हैं। ऐसे तमाम मुद्दों पर अनामदास की पैनी और सटीक नजर है। किसी भी मुद्दे का एक सही, पूर्वाग्रह मुक्त और ईमानदार विश्लेषण अनामदासजी के चिट्ठे की खासियत है। भावुकतापूर्ण कविताएँ, आत्माख्यान से मुक्त ये ब्लॉग उन तमाम सवालों पर बात करता है, जिस पर आमतौर पर बात नहीं की जाती, या कि जिस पर बात न किए जाने के लिए भी एक मौन सहमति है।
भारत की नैतिकता गई तेल लेने, कृषि प्रधान देश की सेवा प्रधान संस्कृति और हमारी अपनी जबान की साठवीं बरसी जैसी कुछ पोस्ट इस ब्लॉग की बेहतरीन पोस्ट हैं। समाज, जीवन और संस्कृति की विडंबनाओं, जीवन के दोहरे चेहरों और चरित्रों पर अनामदास उँगली रखते हैं।
'स्त्री स्वरूप की पूजा तभी हो सकती है जब वह शेर पर सवार हो, उसके हाथों में तलवार-कृपाण-धनुष-बाण हो या फिर उसे जीते-जी जलाकर सती कर दिया गया हो, दफ़्तर जाने वाली, घर चलाने वाली, बच्चे पालने वाली औरतें तो बस सीटी सुनने या कुहनी खाने के योग्य हैं।'
बातें बहुत बार व्यंग्य की शैली में होती हैं, लेकिन उसे उस तरह के हास्य व्यंग्य का नाम नहीं दिया जा सकता, जिसे आप सुनें और हँसी में उड़ा दें। ये जरूर मखौल है उस दुनिया का, जिसमें रहते हैं और जिसके गुण गाते हैं, लेकिन जिसका असली चेहरा समाज के पॉपुलर महिमामंडित चेहरे से ठीक उलट है।
जो चीजों को ठीक-ठीक वैसा ही समझना चाहते हैं, जैसी कि वे हैं, जो गौरव-गाथाओं में, महिमामंडन में आकंठ डूबे हुए नहीं हैं, जिनके भीतर एक ऑब्जर्वर है, जो बारीकी से दुनिया को देखना और समझना चाहता है, जो कुछ बेहतर और ईमानदार-सा पढ़ना चाहते हैं, वे इस अनाम ब्लॉग पर आएँ, जो यूँ तो अनामदास का ब्लॉग है, लेकिन जिसके साथ परिचय और अपनापे का रिश्ता बनने में बहुत वक्त भी नहीं लगता।
ब्लॉग - अनामदास का चिट्ठा URL - http://anamdasblog.blogspot.com/